कहते हैं ' ईश्वर के घर देर है , अंधेर नहीं l '--- इस सम्बन्ध में एक रोचक कथा है ----- एक 5 - 6 वर्ष का बालक था , उसे समुद्र में सैर करने की बहुत इच्छा थी l माता - पिता के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसके इस शौक को पूरा कर सकें l फिर कहीं से पता चला कि कोई व्यवसायी अपनी नई मोटर बोट की खुशी में बहुत कम किराये में लोगों को सैर कराएगा l इस परिवार ने भी इस अवसर का लाभ लिया और सैर को चले l बहुत बड़ी बोट थी , और बहुत लोग थे उसमे l यह माँ अपने बालक में अच्छे संस्कार डालने और जीवन जीना सिखाने के लिए रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाया करती थी l
यह क्रम इस बोट में सैर के वक्त भी चल रहा था --- माँ समझा रही थी कि देखो रावण ने वेश बदल कर सीता का अपहरण किया , इसलिए हमें कोई व्यक्ति हो या वस्तु उसकी बाहरी चमक या बाहरी शालीनता देखकर विश्वास नहीं करना चाहिए l रावण बाहरी रूप में साधु बनकर आया , लेकिन उसके भीतर आसुरी प्रवृति थी और ऐसी आसुरी प्रवृति के लोगों को जब कोई पहचान लेता है तो वे उसे अपने रास्ते से हटा देते हैं जैसे रावण ने जटायु का वध कर दिया l इसलिए विकट परिस्थितियों में धैर्य और विवेक से काम लो , सत्य की जीत होती है और जिसके मन में लोक कल्याण की भावना होती है दैवी शक्तियां उसकी मदद करती हैं l उसी समय विस्फोट हुआ और वह मोटर बोट टूटकर बिखर गई और वह बालक भी अपनी माँ की गोद से छिटककर समुद्र में गिरा l उस बालक को किसी मछुआरे ने बचाया , उस बालक के कपड़े में बोट का टुकड़ा फंसा था , जिसे कुछ सोचकर वह वृद्ध मछुआरा अपने साथ ले आया l
बालक को होश आने पर , स्वस्थ होने पर मछुआरे ने उससे पूछा --- तुम सब इतनी पुरानी बोट में सैर को क्यों निकले ? ' बालक ने कहा --- वह बोट बिलकुल नई थी l नई बोट में सब लोग बहुत खुश थे l ' मछुआरे ने कहा --- बेटा ! यह हाथ बहुत अनुभवी हैं , इस टुकड़े को छूते ही समझ गए कि यह बहुत पुरानी बोट का टुकड़ा है , इसे तो टूटना ही था l खैर ! तुम इसे अपने पास रखो और ज्ञान हासिल करो जिससे सत्य को जान सको l अभी तो केवल बोट में बैठे लोग ही डूबे हैं यदि ये अपराध विस्तृत क्षेत्र में फ़ैल गया तो अनर्थ हो जायेगा l '
अब उस बालक के जीवन का एक ही लक्ष्य था ---सत्य को जानना l उसे माँ के अंतिम शब्द याद थे --रावण का बाहरी रूप ---- सत्य की जीत और लोक कल्याण की भावना हो तो दैवी शक्तियां मदद
करती हैं l मोटर बोट का वह टुकड़ा उसकी अमूल्य निधि था l दिन - रात अध्ययन कर के वह इस बात की तह में पहुँच गया कि मछुआरे ने सत्य कहा था , वह बोट बहुत पुरानी थी , धन की लालसा ने इतने लोगों की जान ले ली l वह बालक जो अब युवा हो गया था , उसने सबूत सहित
राजा के सामने अपनी बात रखी l उस समय तक वह बोट का मालिक बहुत संपन्न व् शक्तिशाली हो गया था l राजा न्यायप्रिय था , उसने कहा -- अपनी तृष्णा के लिए लोगों का जीवन छीनने की अनुमति किसी को नहीं है l सत्यमेव जयते l
यह क्रम इस बोट में सैर के वक्त भी चल रहा था --- माँ समझा रही थी कि देखो रावण ने वेश बदल कर सीता का अपहरण किया , इसलिए हमें कोई व्यक्ति हो या वस्तु उसकी बाहरी चमक या बाहरी शालीनता देखकर विश्वास नहीं करना चाहिए l रावण बाहरी रूप में साधु बनकर आया , लेकिन उसके भीतर आसुरी प्रवृति थी और ऐसी आसुरी प्रवृति के लोगों को जब कोई पहचान लेता है तो वे उसे अपने रास्ते से हटा देते हैं जैसे रावण ने जटायु का वध कर दिया l इसलिए विकट परिस्थितियों में धैर्य और विवेक से काम लो , सत्य की जीत होती है और जिसके मन में लोक कल्याण की भावना होती है दैवी शक्तियां उसकी मदद करती हैं l उसी समय विस्फोट हुआ और वह मोटर बोट टूटकर बिखर गई और वह बालक भी अपनी माँ की गोद से छिटककर समुद्र में गिरा l उस बालक को किसी मछुआरे ने बचाया , उस बालक के कपड़े में बोट का टुकड़ा फंसा था , जिसे कुछ सोचकर वह वृद्ध मछुआरा अपने साथ ले आया l
बालक को होश आने पर , स्वस्थ होने पर मछुआरे ने उससे पूछा --- तुम सब इतनी पुरानी बोट में सैर को क्यों निकले ? ' बालक ने कहा --- वह बोट बिलकुल नई थी l नई बोट में सब लोग बहुत खुश थे l ' मछुआरे ने कहा --- बेटा ! यह हाथ बहुत अनुभवी हैं , इस टुकड़े को छूते ही समझ गए कि यह बहुत पुरानी बोट का टुकड़ा है , इसे तो टूटना ही था l खैर ! तुम इसे अपने पास रखो और ज्ञान हासिल करो जिससे सत्य को जान सको l अभी तो केवल बोट में बैठे लोग ही डूबे हैं यदि ये अपराध विस्तृत क्षेत्र में फ़ैल गया तो अनर्थ हो जायेगा l '
अब उस बालक के जीवन का एक ही लक्ष्य था ---सत्य को जानना l उसे माँ के अंतिम शब्द याद थे --रावण का बाहरी रूप ---- सत्य की जीत और लोक कल्याण की भावना हो तो दैवी शक्तियां मदद
करती हैं l मोटर बोट का वह टुकड़ा उसकी अमूल्य निधि था l दिन - रात अध्ययन कर के वह इस बात की तह में पहुँच गया कि मछुआरे ने सत्य कहा था , वह बोट बहुत पुरानी थी , धन की लालसा ने इतने लोगों की जान ले ली l वह बालक जो अब युवा हो गया था , उसने सबूत सहित
राजा के सामने अपनी बात रखी l उस समय तक वह बोट का मालिक बहुत संपन्न व् शक्तिशाली हो गया था l राजा न्यायप्रिय था , उसने कहा -- अपनी तृष्णा के लिए लोगों का जीवन छीनने की अनुमति किसी को नहीं है l सत्यमेव जयते l