पुराणों की कथाएं हमें बहुत कुछ सिखाती हैं l ईश्वर हमारे सामने वरदान देने आ भी जाएँ , व्यक्ति उनसे वही मांगता है जैसी उसकी प्रवृति , उसके आचार - विचार होते हैं , सद्बुद्धि न होने के कारण उसको मिला हुआ वरदान ही उसके नाश का कारण बन जाता है l कथा है ----
भस्मासुर ने कठिन तपस्या की , शिवजी प्रसन्न होकर उसे वरदान देने आये l वह चाहता तो बहुत कुछ अच्छा मांग सकता था लेकिन स्वयं की प्रवृति दूषित होने के कारण दुर्बुद्धि हावी हो जाती है , भगवान से मांग बैठा कि जिसके सिर पर हाथ रख दे वह भस्म हो जाये l शंकरजी तो भोलेनाथ हैं , कह दिया तथास्तु ! इस वरदान से भी वह चाहता तो दुष्टों का दमन करता , लोगों का कल्याण कर के राज्य में सुख - शांति स्थापित करता लेकिन वह तो इस वरदान के बल पर अपने को महा शक्तिशाली बताना चाहता था l उसने लोगों को भस्म करना शुरू कर दिया , चारों और त्राहि - त्राहि मच गई l अनेक विचारशील लोगों ने मिलकर सलाह की कि कैसे इस अत्याचारी से छुटकारा मिले ?
उन्होंने भस्मासुर को सलाह दी --- ' इस तरह लोगों को भस्म कर के उसे क्या मिलेगा ? इससे अच्छा है कि शंकरजी के सिर पर हाथ रख दो , उन्हें भस्म करके पार्वतीजी से विवाह कर लो , कैलाश पर्वत भी तुम्हारा होगा l ' दुर्बुद्धिग्रस्त भस्मासुर को यह सलाह बड़ी पसंद आई l वह चला शिवजी के सिर पर हाथ रखने ---- जिसने वरदान दिया उन्ही को भस्म करने चला l कथा आगे है ---- शिवजी स्वयं अपने वरदान के आधीन थे , अत: अपनी रक्षा के लिए विष्णु लोक पहुंचे और विष्णुजी को अपने वरदान की बात बताई कि अब वह यहाँ भी पहुँच रहा है l------- जब भस्मासुर वहां पहुंचा तो विष्णु भगवान ' मोहिनी ' रूप में उसके सामने थे l ' मोहिनी ' का अप्रतिम सौन्दर्य देखकर वह अपनी सुध - बुध खो बैठा , मोहिनी रूपधारी भगवान ने उससे कहा ---जैसा मैं नृत्य करूँ , वैसा ही तुम करो l बेसुध होकर भस्मासुर उनके जैसी नृत्य की मुद्रा में नृत्य करने लगा l नृत्य करते - करते जब मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा तो भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा और वरदान के अनुसार उसी समय जलकर भस्म हो गया l
कथा का अभिप्राय यही है कि सद्बुद्धि के आभाव में व्यक्ति स्वयं को मिले हुए सुख - साधनों का दुरूपयोग करता है और
भस्मासुर ने कठिन तपस्या की , शिवजी प्रसन्न होकर उसे वरदान देने आये l वह चाहता तो बहुत कुछ अच्छा मांग सकता था लेकिन स्वयं की प्रवृति दूषित होने के कारण दुर्बुद्धि हावी हो जाती है , भगवान से मांग बैठा कि जिसके सिर पर हाथ रख दे वह भस्म हो जाये l शंकरजी तो भोलेनाथ हैं , कह दिया तथास्तु ! इस वरदान से भी वह चाहता तो दुष्टों का दमन करता , लोगों का कल्याण कर के राज्य में सुख - शांति स्थापित करता लेकिन वह तो इस वरदान के बल पर अपने को महा शक्तिशाली बताना चाहता था l उसने लोगों को भस्म करना शुरू कर दिया , चारों और त्राहि - त्राहि मच गई l अनेक विचारशील लोगों ने मिलकर सलाह की कि कैसे इस अत्याचारी से छुटकारा मिले ?
उन्होंने भस्मासुर को सलाह दी --- ' इस तरह लोगों को भस्म कर के उसे क्या मिलेगा ? इससे अच्छा है कि शंकरजी के सिर पर हाथ रख दो , उन्हें भस्म करके पार्वतीजी से विवाह कर लो , कैलाश पर्वत भी तुम्हारा होगा l ' दुर्बुद्धिग्रस्त भस्मासुर को यह सलाह बड़ी पसंद आई l वह चला शिवजी के सिर पर हाथ रखने ---- जिसने वरदान दिया उन्ही को भस्म करने चला l कथा आगे है ---- शिवजी स्वयं अपने वरदान के आधीन थे , अत: अपनी रक्षा के लिए विष्णु लोक पहुंचे और विष्णुजी को अपने वरदान की बात बताई कि अब वह यहाँ भी पहुँच रहा है l------- जब भस्मासुर वहां पहुंचा तो विष्णु भगवान ' मोहिनी ' रूप में उसके सामने थे l ' मोहिनी ' का अप्रतिम सौन्दर्य देखकर वह अपनी सुध - बुध खो बैठा , मोहिनी रूपधारी भगवान ने उससे कहा ---जैसा मैं नृत्य करूँ , वैसा ही तुम करो l बेसुध होकर भस्मासुर उनके जैसी नृत्य की मुद्रा में नृत्य करने लगा l नृत्य करते - करते जब मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा तो भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा और वरदान के अनुसार उसी समय जलकर भस्म हो गया l
कथा का अभिप्राय यही है कि सद्बुद्धि के आभाव में व्यक्ति स्वयं को मिले हुए सुख - साधनों का दुरूपयोग करता है और