3 November 2019

प्रशंसा सकरात्मक हो

  अपनी  प्रशंसा  सभी  को  अच्छी  लगती  है  l   कुछ  लोग  ऐसे  होते  हैं  ,  जिनके  काम  करने  का  उद्देश्य  प्रशंसा  प्राप्त  कारना ,  यश  कमाना  होता  है  l ----- एक  राजा  को  दयालु  कहलाने  और  अपनी  प्रशंसा  सुनने  की  ललक  लगी  l   उसने  एक  दिन  ऐसा  निश्चय    किया  कि   पक्षी  पकड़ने  वाले  लोग  दरबार  में  आएं  और  बंदी  पक्षियों  के  मूल्य  लेकर   उन्हें  स्वतंत्र  कर  दें  l   राजा  की  दयालुता  का  यश  फैला  l   निश्चित  दिन  पर  हजारों  पिंजड़े  खाली   होते   और  राज्य - कोष  से  उन्हें  धन  मिलता  l 
  एक  मुनि - मनीषी  वहां  पहुंचे  l  दृश्य  देखा  तो  बहुत  दुःखी   हुए  l   मुनि  ने  राजा  को  समझाया  --- " आपकी  यश- कामना   इन  निरीह  पक्षियों  को  बहुत  महँगी  पड़ती  है  l   लालच  की  पूर्ति  के  लिए  असंख्य  नए  शिकारी  पैदा  हो  गए   और  पकडे  जाने  के  कुचक्र  में  अगणित  पक्षियों  को  त्रास  मिलता   और  प्राण  जाते  l   यदि  दयालुता  का  प्रदर्शन  नहीं , पालन  अभीष्ट  है   तो  आप  पक्षी  पकड़ने  पर  प्रतिबन्ध  लगाएं  l   राजा  ने  अपनी  भूल  समझी   और  दयालुता  का  प्रदर्शन  छोड़कर  वह  नीति   अपनायी  ,  जिससे  वस्तुत;  दया - धर्म  का  पालन  होता  था  l