पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---" आज की परिस्थितियों पर द्रष्टिपात करें तो चारों ओर ईर्ष्या का ही साम्राज्य फैला दिखेगा l समाज में फैले संघर्षों का मूल ईर्ष्या ही होती है l ईर्ष्या का जन्म सामाजिक जीवन की विषमता से होता है l किसी के पास बहुत धन -वैभव है , लेकिन उसे समाज में अधिक प्रतिष्ठा , विशेष सुविधाएँ नहीं हैं तो उसके प्रति ईर्ष्या नहीं होगी l लेकिन दूसरों को मिल रही प्रशंसाओं , -सुविधाओं और सम्मान से अपनी कोई वास्तविक हानि नहीं हो रही है , तब भी उसके प्रति ईर्ष्या भड़क उठती है l ' ईर्ष्या बलवती होने पर व्यक्ति षड्यंत्रकारी हथकंडे अपनाने लगता है l स्वयं के पास धन -वैभव सब है लेकिन दूसरों को आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकता , दूसरों की सफलता से ईर्ष्या होती है l ईर्ष्या के कारण परिवार हो या समाज -- सम्पूर्ण वातावरण जहरीला हो जाता है