19 June 2021

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है  ---- "  व्यक्तित्व  को  प्रखर , प्रामाणिक   और  पवित्र  बनाने  की  प्रक्रिया   जीवन  साधना  है   l   धन  संबंधी   ईमानदारी   और  कर्तव्य  संबंधी   जिम्मेदारी   का  समन्वय  किसी  व्यक्ति  को   प्रामाणिक  और  प्रतिष्ठित  बनाता   है   l  "                                                                                                                   जिसका  व्यक्तित्व  प्रामाणिक  होता  है   उसके  द्वारा  किया  जाने  वाला   छोटे - से  छोटा   कार्य  भी  संसार  को  प्रभावित  करता  है    l   कोई  व्यक्ति  हो  या  वस्तु   ,  उसके  प्रामाणिक  होने  पर  ही   लोग  उसका  विश्वास  करते  हैं  ,  यदि  वस्तु  है   तो   प्रमाणिकता  की  कसौटी  पर  खरा  उतरने  पर  ही   लोग  उसको  उपयोग  में   लाते      हैं  l   उसके  लिए  किसी  को  बाध्य  नहीं  करना  पड़ता  ,  वह  बिना  संदेह  स्वीकार  की  जाती  है  l   इसी  तरह  जिनके  व्यक्तित्व  प्रामाणिक  होते  हैं  ,  उनका  आचरण  लोगों  के  जीवन  को  सही  दिशा  देता  है  ,   जिनमें    विवेक  है  वे  उनका    अनुसरण  करते  हैं   और  अपने  जीवन  को  सँवारते   हैं   l 

WISDOM -------

     लोकमान्य  तिलक  से  किसी  ने  आश्चर्य चकित  होते  हुए  पूछा  ---- "कई  बार  आपकी  बहुत  निंदापूर्ण  आलोचनाएं   होती  हैं  ,  लेकिन  आप  तो  कभी  विचलित  नहीं  होते   l "  उत्तर  में  लोकमान्य तिलक  मुस्कराए   और  बोले  ---- "  निंदा  ही  क्यों  कई  बार  लोग  प्रशंसा  भी  करते  हैं   l "  वे   कहने  लगे ---- "  ये  है  तो  मेरी  जिंदगी  का   रहस्य ,  पर  मैं  आपको  बता  देता  हूँ   l   निंदा  करने  वाले मुझे  शैतान  समझते  हैं   और  प्रशंसक  मुझे  भगवान  का  दरजा   देते  हैं  ,  लेकिन  सच  मैं  जानता   हूँ   और  वह  यह  है  कि  मैं  न  तो  शैतान  हूँ   और  न  ही  भगवान  l   मैं  तो  एक  इनसान   हूँ  ,  जिसमें  थोड़ी  कमियां    हैं  और  थोड़ी  अच्छाइयाँ   हैं  l   मैं  अपनी  कमियों  को  दूर  करने  में    और  अच्छाइयों  को   बढ़ाने  में  लगा  रहता  हूँ   l   एक  बात  और  भी  है    जब     अपनी  जिंदगी  को    मैं  ही    ठीक   से  नहीं  समझ   पाया   तो  भला  दूसरे  क्या  समझेंगे  l   इसलिए  जितनी  झूठ  उनकी  निंदा    है ,  उतनी  ही  उनकी  प्रशंसा  है    l   इसलिए  मैं    उन  दोनों  बातों  की   परवाह  न  कर  के    अपने  आपको    और  अधिक  संवारने  - सुधारने   की  कोशिश  करता  रहता  हूँ   l  "   सुनने  वाले  व्यक्ति  को  इन  बातों  को  सुनकर   लोकमान्य  तिलक  के  स्वस्थ  मन   का  रहस्य  समझ  में  आया   l