लघु कथा ----- एक पंडित जी गंगा में स्नान कर के निकल रहे थे कि उनका स्पर्श एक निम्न जाति के व्यक्ति से हो गया l स्पर्श होते ही उन्हें क्रोध आ गया और वे उसे जोर से डांटने -डपटने लगे l उनका क्रोध इतना बढ़ गया कि उन्होंने उस व्यक्ति को दो छड़ियाँ भी जमा दीं l फिर यह कहते हुए दोबारा स्नान करने चले गए कि इस व्यक्ति ने मुझे अपवित्र कर दिया l नहाते समय उन्होंने देखा कि वह व्यक्ति भी स्नान कर रहा है l उसे स्नान करते देख पंडित जी को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने उससे पूछा ---- ' मैं तो तुम्हारे से स्पर्श होने के कारण दोबारा स्नान करने गया , लेकिन तुम क्यों नहाने गए ? " वह व्यक्ति बोला --- " पंडित जी ! मानव मात्र तो एक समान हैं , जाति से पवित्रता तय नहीं होती , लेकिन सबसे अपवित्र तो क्रोध है l जब आपके क्रोध ने मुझे स्पर्श किया तो उन नकारात्मक भावों से मुक्त होने के लिए मुझे गंगा स्नान करना पड़ा l " यह सुनकर पंडित जी बहुत लज्जित हुए और उनका जाति -अभिमान दूर हो गया l