इतिहास की विभिन्न घटनाएँ हमें जीवन जीने की शिक्षा देती हैं ---- मित्रता नीतिसंगत और व्यवहारिक होनी चाहिए ---- जोधपुर के राजा जसवंतसिंह ने औरंगजेब से मित्रता की l उन्होंने यह सोचने का प्रयास ही नहीं किया कि यह क्रूर , निर्दयी , अन्यायी औरंगजेब जब अपने पिता को कैद कर सकता है , भाइयों का क़त्ल करवा सकता है तो समय आने पर उन्हें भी दगा दे सकता है , उनका राज्य हथिया सकता है l उन्होंने औरंगजेब के दरबार में रहना स्वीकार कर लिया l
जसवंतसिंह की वीरता और पराक्रम से औरंगजेब ने जी भर के लाभ उठाया l जसवंतसिंह ने उसके लिए कठिन से कठिन संग्राम जीते l शंकालु प्रवृति का औरंगजेब उनसे भीतर ही भीतर भयभीत रहता था कि यदि जसवंतसिंह बदल गया तो उसकी ' आलमगीरी ' धरी रह जाएगी l औरंगजेब ने धोखे से उन्हें मरवा दिया l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग ' में लिखा है --- कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान उनकी मृत्यु का कारण ही नहीं बना वरन उनके परिवार और राज्य पर संकट आने का कारण भी l यह मित्रता नीतिसंगत और व्यावहारिक नहीं थी l यह तो बेर और कदली के सामीप्य जैसी मित्रता थी l
आचार्य श्री ने आगे लिखा है --- आज समय में भी सच्चे और ईमानदार व्यक्तियों को यदि दीन - हीन देखा जाता है तो उसके पीछे एक कारण यह भी है कि उसका लाभ बुरे लोग उठा लेते हैं l सच्चे लोगों को संगठित होना चाहिए l यह भी देखना चाहिए कि उसका लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे हैं l नहीं तो यह अच्छाइयां भी राजा जसवंतसिंह के पराक्रम की तरह निरर्थक चली जाएँगी l
जसवंतसिंह की वीरता और पराक्रम से औरंगजेब ने जी भर के लाभ उठाया l जसवंतसिंह ने उसके लिए कठिन से कठिन संग्राम जीते l शंकालु प्रवृति का औरंगजेब उनसे भीतर ही भीतर भयभीत रहता था कि यदि जसवंतसिंह बदल गया तो उसकी ' आलमगीरी ' धरी रह जाएगी l औरंगजेब ने धोखे से उन्हें मरवा दिया l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग ' में लिखा है --- कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान उनकी मृत्यु का कारण ही नहीं बना वरन उनके परिवार और राज्य पर संकट आने का कारण भी l यह मित्रता नीतिसंगत और व्यावहारिक नहीं थी l यह तो बेर और कदली के सामीप्य जैसी मित्रता थी l
आचार्य श्री ने आगे लिखा है --- आज समय में भी सच्चे और ईमानदार व्यक्तियों को यदि दीन - हीन देखा जाता है तो उसके पीछे एक कारण यह भी है कि उसका लाभ बुरे लोग उठा लेते हैं l सच्चे लोगों को संगठित होना चाहिए l यह भी देखना चाहिए कि उसका लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे हैं l नहीं तो यह अच्छाइयां भी राजा जसवंतसिंह के पराक्रम की तरह निरर्थक चली जाएँगी l