4 June 2023

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- ' कर्तव्य  की  चोरी  सबसे  बड़ी  चोरी  है  l  '  कलियुग  में  कर्तव्यपालन  को  ही  सबसे  बड़ा  तप  कहा  गया  है  l  जो  जहाँ  हैं , जिस  भी  क्षेत्र  में  है  , वहां  अपना  कर्तव्यपालन  ईमानदारी  से  करे  तो   यही  सबसे  बड़ी  पूजा  है , तप  है  l   कर्तव्य  धर्म  को  मनीषियों  ने   ' ऋण  से  मुक्ति  '  माना  है  l    ऋण  चुका  दिया  तो  उसका   कोई  पुरस्कार  नहीं  ,  नहीं  चुकाया  तो  वह  अपराध  है  और  उसका  दंड  मिलेगा  l   कर्तव्य  का  ईमानदारी  से  पालन  करना   धर्म  है  , उस के  लिए  किसी  पुरस्कार  या  सम्मान  का  दावा  नहीं  किया  जा  सकता    लेकिन  कर्तव्यपालन  में  चूक  करने  पर   लिया  गया  ऋण  नहीं  चुकाने  की  तरह  ही  अपराध  है  l   योग  की  विभिन्न  साधनाएं  भी  तप  के  बिना  अधूरी  हैं  l  पहले  लोग  हिमालय  पर   जाकर   , एकांत  में  तप  किया  करते  थे   लेकिन   यदि  मन  को  नहीं  साधा  गया  तो  वह  एकांत  साधना  व्यर्थ  है   l  इसलिए   भगवान  ने  गीता  में  कर्मयोग  को  प्रधानता  दी  l  संसार  में  रहकर  ईमानदारी  से  अपना  कर्तव्य  करना  ही   सबसे  बड़ा  तप  है  l  ऋषियों  का  कहना  है --- कर्तव्यपालन  में  नैतिकता  अनिवार्य  है   l  कलियुग  में  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होने  के  कारण   और  धन -वैभव  को  बहुत  अधिक  महत्त्व  देने  के  कारण  व्यक्ति  बेईमानी , भ्रष्टाचार , जालसाजी , हेराफेरी  , आर्थिक , सामाजिक  अपराध  में  लिप्त  हो  जाता  है   और  इसे  ही  अपना  कर्तव्य  समझकर  इसमें  ही  विशेषज्ञ  हो  जाता  है  l  ऐसे  अनैतिक  और  अमर्यादित  कार्यों  के  कारण  ही   विभिन्न  बीमारियाँ , तनाव , दुःख , पर्यावरण   प्रदूषण , बड़े  पैमाने  पर  धन-जन  की  हानि , आपदाएं  आती  हैं  l  प्रकृति  का  क्रोध  कब  और  किस  रूप  में  सामने   आ  जाए     , यह  कोई  नहीं   जानता  l  आचार्य श्री  कहते  हैं --- मनुष्य  जन्म  बार -बार  नहीं  मिलता   इसलिए  सन्मार्ग  पर  चलो , सत्कर्म  कर  अपने  जीवन  को  सार्थक  करो  l