17 October 2021

WISDOM -----

 ' जो  ईश्वर  से  भय  खाता   है  ,  उसे  दूसरा  भय  नहीं  सताता   l '  अध्यात्मवेत्ताओं  के  अनुसार   संकीर्ण   स्वार्थ  ,.








































जो    ईश्वर  से  भय  खाता  है  उसे  दूसरा  भय  नहीं  सताता   l  '  अध्यात्मवेत्ताओं  के  अनुसार    संकीर्ण  स्वार्थ , वासना  एवं   अहंकार  से  युक्त   अनैतिक  जीवन    भय  का  प्रमुख  कारण  है   l  वैराग्य शतक  में  भतृहरि   ने   भय  की  स्थिति  का   सूक्ष्म  विश्लेषण  किया  है  --'  भोग  में  रोग  का  भय ,  ,सत्ता  में  गिरने  का  , शत्रुओं  का  भय ,  सौंदर्य  में  बुढ़ापे  का  भय  ,  शरीर  में  मृत्यु  का  भय   l  इस  तरह  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है   l   जब  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  तक  भयभीत  हैं   तो  इस  संसार  में  उच्च  पदों  पर  बैठे   लोग  कितने  भयभीत  होंगे  , इसका  अंदाजा  लगाया  जा  सकता  है   l    हर  व्यक्ति  इस  भय  से  निपटने  के  लिए  अपनी  मानसिक  स्थिति  और  अपनी  सामर्थ्य  के  अनुसार   प्रयास  करता  है   l   जितना  पाने  की  लालसा  है  ,  उतना  ही  खोने  का  भय  है   l     आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---'  देवराज  इंद्र  के  भय  का  कारण  सिर्फ  इतना  है   कि  वे  वासना  के  शिखर  पर  बैठे  हैं   ,  ऐसे  में  जब  भी  कोई  ऊपर  उठने  की  कोशिश  करता  है   तो  वे  घबराने  लगते  हैं   और  उसे  गिराने  के  लिए  अप्सराएं    उसके  पास  भेजते  हैं   l इससे  बेहतर  कोई  दूसरा  उपाय  नहीं  है   l l '  यह  भय  ही  तनाव  का  कारण  है   l   जितने  मजे  से  एक  सामान्य  आदमी  सोता  है  ,  उतने  मजे  से   वह  नहीं  सो  सकता    ,   दार्शनिक  लाओत्से  ने  कहा  है  --- ' अगर  मजे  से  रहना  है   तो  आखिरी  में  रहना  l    जो  अंतिम  में  खड़ा  है  ,  उसे  कोई  धक्का  देने  नहीं  आएगा   l  अगर  प्रथम  होने  की  कोशिश  होगी     तो  फिर  अनेकों  आ  जायेंगे   पीछे  खींचने    के  लिए