14 February 2022

WISDOM -----

   श्रीमद्भगवद्गीता  में    भगवान   कहते  हैं   कि    आसुरी स्वभाव   वाले  व्यक्ति   ऐसे  कर्म  करते  हैं  जिनको  करने  से  उन्हें  सुख  मिलता  है ,  उनका  कोई  स्वार्थ  सिद्ध  होता  है   l   वे  ऐसा  सोचते  हैं  क़ि   कुकर्म  करने  से  यदि  उन्हें  सुख  मिलता  है   तो  उन्हें  कुकर्म   कर  लेना  चाहिए  l    आसुरी  प्रवृति  के  लोग  ईश्वर  में  और  कर्म- विधान  में  विश्वास  नहीं  करते  हैं   l   इसलिए  किसी  भी  तरह , कितना  सुख  भोग  लें  ,  यही  उनके  जीवन   का उद्देश्य  होता  है  l   '      असुर  चाहे  कर्मफल  में  विश्वास  करें   या न  करें  ,  उनके  कर्मों  का  परिणाम  तो  आखिर  सामने  आता  ही  है  l   पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  लिखते   हैं ----- ' संसार  के  समस्त  भोगों  को   पागल  की  तरह  भोग  लेने  का   भाव   रखने  वाले   व्यक्ति   का जीवन  भी  पागलपन  में ,  अराजकता  में  बदल  जाता  है  l   उनका  जीवन  लगभग   विक्षिप्त  के  सामान  हो  जाता  है  ,  जिसमे  न  कोई  दिशा  है  , न  गंतव्य   l   सुख   के  पीछे   भागने  की  दौड़  कभी  समाप्त  ही  नहीं  होती    l