14 August 2020

WISDOM ------- हम जागरूक हों , यह विश्व बाजार है , इसकी पहुँच हमारी भावनाओं तक है l

   एक  पुरानी   कथा  है --- डाकू  खड़ग  सिंह   और   भोले  संत  बाबा  भारती   की   l    साधु  स्वभाव   के  बाबा  भारती   के  पास  एक  अच्छी   नसल   का  बेशकीमती  घोड़ा  था  l   जिसे   उनसे  छीनने  के  लिए    डाकू  खड़ग  सिंह  ने   हर  जतन   किए , छल - बल  की  युक्ति   और  कुटिलता  ,  सभी  का  सहारा  लिया  ,  परन्तु  सचेत - सावधान   बाबा  भारती  ने  उसकी  हर  चाल  को   नकामयाब  कर  दिया   l   फिर  अंत  में  उसने  बाबा  की  भावनाओं  को    छलने  के  लिए  व्यूह  रचा   l   एक  दिन  शाम  को   जब  बाबा  भारती   अपने  घोड़े  की  पीठ  पर  बैठे   सैर  पर  जा  रहे  थे  ,  उन्होंने  एक  लंगड़े  की  दर्द  भरी  पुकार  सुनी  ---- " अरे  ! मुझसे  चला  नहीं  जाता ,  मुझ  लंगड़े  की   मदद  करो  बाबा  ! "  बाबा  भारती   इस दर्द  भरी  पुकार  पर   अपने  को  रोक  न  सके   और  उन्होंने  घोड़े  पर  खड़ग  सिंह  को  बैठा  दिया  l   कथा  कहती  है  कि   डाकू  खड़ग   सिंह  अपनी  सफलता  पर  हँसा   और  बोला --- ' तुमने  आसानी  से  मुझे  यह  घोड़ा  नहीं  दिया  ,  मैंने  तुम्हारी  भावनाओं   को छल कर  इस  घोड़े  पर  अपना  कब्ज़ा  कर  लिया  l "

  तब  बाबा  भारती  ने  दरद   भरे  स्वर  में  कहा ---- "  अपनी  यह  चालबाजी  किसी  को  मत  कहना   खड़ग  सिंह    अन्यथा  कोई  किसी  लंगड़े  की  मदद   नहीं  करेगा  l  "       लेकिन   लगता  है  डाकू  खड़ग   सिंह  ने  अपनी  सफलता  की  कथा    सबको  विशेष  रूप  से  कॉरपोरेट  जगत  को  सुना  दी  l   उस  ज़माने  में  एक  से  एक अमीर  थे , राजे - महाराजा  थे  , डाकू   खड़ग   सिंह  ने  उनका  किसी  का  घोड़ा  नहीं  छीना  l  सीधे  - सरल ,  भावुक  बाबा  भारती  के  साथ  ही  छल  किया  l    यही  स्थिति  आज  है    सीधी - सरल  ,  रोजी - रोटी  की  चिंता  में  डूबी  हुई  जनता   की  भावनाओं  को  छलकर ,  कभी  भय  दिखाकर ,  कभी  सपने  दिखाकर   कुछ   मुट्ठी भर  लोग   अमीर  व  शक्तिशाली  हो  जाते  हैं  -----