10 March 2021

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- रिश्तों  की  डोर  बहुत  नाजुक  होती  है  l   इन  पर  कड़ाई , सख्ती   आजमाने  से  यह  डोर  टूट  जाती  है  l   हर  व्यक्ति  अपनी  मरजी   से   दूसरों  को  चलाना   चाहता  है   , उसे  लगता  है  कि  जैसा  वह  चाहता  है  ,  वैसा  ही  दूसरा  व्यक्ति  करे  l   यदि  कार्य  उसकी  मरजी   का  नहीं  होता    तो  वह  नाराज  होता  है ,  चीखने - चिल्लाने  लगता  है  l  '     -------- एक  संन्यासी   अपने  शिष्यों  के  साथ  नदी  के  तट   पर  नहाने  पहुंचा  l   वहां  एक  ही  परिवार  के  कुछ  लोग    अचानक  बात  करते करते  एक  - दूसरे  पर  क्रोधित  हो  उठे   और  जोर - जोर  से  चिल्लाने  लगे  l   संन्यासी  ने  यह  देखकर  शिष्यों  से  पूछा  --- " क्रोध  में  लोग  एक - दूसरे  पर  चिल्लाते  क्यों  हैं  ?  जब  दूसरा  व्यक्ति  हमारे  सामने  ही  खड़ा  है   तो  भला   उस  पर  चिल्लाने  की  क्या  जरुरत  है  ,  जो  कहना  है  वह  आप  धीमी  आवाज  में  भी  तो  कह  सकते  हैं   l  "  शिष्य  कुछ  उत्तर  न  दे  पाए  l   तब  संन्यासी  ने  समझाया  ---- "  जब  दो  लोग  आपस  में  नाराज  होते  हैं   तो  उनके  हृदय   एक  दूसरे  से  बहुत  दूर  हो  जाते  हैं   और  इस  अवस्था  में   वे  एक - दूसरे  को  बिना  चिल्लाए ,  नहीं  सुन  सकते   l   वे  जितना  अधिक  क्रोधित  होंगे ,  उनके  बीच   की  दूरी   उतनी   ही अधिक  हो  जाएगी   और  उन्हें  उतनी  ही  तेजी  से  चिल्लाना  पड़ेगा   l                                                                                                                              लेकिन   जब  दो  लोग  प्रेम  में  होते  हैं  ,  तब  वे  चिल्लाते  नहीं  ,  बल्कि  धीरे - धीरे  बात  करते  हैं    क्योंकि   उनके हृदय  करीब  होते  हैं   ,  उनके  बीच  की  दूरी   नाममात्र  की  रह  जाती  है   l     और  जब  वे  एक -दूसरे  को  हद  से  ज्यादा   चाहने  लगते  हैं  ,  तब  वे  बोलते  ही  नहीं  ,  वे  सिर्फ  एक  दूसरे  की  तरफ  देखते  हैं    और  सामने  वाले  की  बात  समझ  जाते  हैं   l    इसलिए   ऐसे  शब्द  किसी  से  मत  बोलो  ,  जिससे  हमारे  बीच  की  दूरियाँ   बढ़ें  ,  नहीं  तो  एक  समय  ऐसा  आएगा   कि   ये  दूरी   इतनी  अधिक  बढ़  जाएगी   कि   हमें   वापस  लौटने  का  रास्ता  भी  नहीं  मिलेगा   l '  आचार्य  श्री  लिखते  हैं   पारिवारिक  जीवन  में  भी  रिश्ते  निभाते  समय  हमें  इस  बात  का  ध्यान  रखना  चाहिए   कि   सदस्यों  में  आपस  में  बहस  चाहे  हो  ,  लेकिन  दिलों  में  दूरियाँ   न  हों  ,  सब  प्यार  व  सम्मान  से  रहें   l