24 June 2022

WISDOM -------

   पुराण  की  अनेक  कथाएं  हैं  जो  यह  बताती  हैं  कि  छल -कपट ,  ईर्ष्या -द्वेष , लोभ , पद  का  लालच ,  महत्वाकांक्षा ,--  ये  सब  बुराइयाँ  केवल  धरती  पर  ही  नहीं  है ,  स्वर्ग  भी  इनसे  अछूता  नहीं  है   l  वहां  भी  षड्यंत्र ,    धोखा   , छल  है  l  ये  कथाएं  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाती  हैं   कि  कैसे  इन  विपरीत  परिस्थितियों   के  साथ  तालमेल    बैठाकर    धैर्य  और  शांति  से  रहा  जाये  l  --------  दैत्यकुल  के  राजा  बलि  अपनी  तपस्या , भक्ति   और  सद्गुणों  के  कारण  स्वर्ग  में  इंद्र के  पद  पर  सुशोभित   थे  l  देवताओं  को  यह  बात  सहन  नहीं  हो  रही  थी   l    उन्होंने  भगवान  विष्णु   से  प्रार्थना  की  कि  कोई  उपाय  करें   जिससे  महाराज  बलि  उस  पद  से  हट  जाएँ   l  जिसे  बल  से  न  हराया  जा  सके  उसे  हराने  के  लिए  स्वर्ग  में  भी  छल -कपट  होता  है   l  भगवान  विष्णु  वामन  रूप  धरकर  बलि  को  छलने  आए  l  महाराज  बलि  को  उनके  गुरु  शुक्राचार्य  ने   भगवान  विष्णु  के  इस  छल  के  प्रति  आगाह  किया , समझाया  कि  वे  उन्हें  दान  न  दें  ,  परन्तु  बलि  ने  कहा ---- " हे  गुरुवर  ! जब  भगवान  स्वयं  वामन  बनकर  मेरे  दरवाजे  याचक  बन  कर   ,  हाथ  फैलाकर  कुछ  मांगने  आए  हैं  , तो  मैं  उन्हें  मना    कैसे  कर  सकता   हूँ  ?  मैं  अपना  दान  का  कर्म  अवश्य  पूरा  करूँगा  l "  वामन  बनकर  भगवान  विष्णु  ने  कहा --- " बलि  !  दान  में  मुझे  केवल  तीन  पग  जमीन  ही  चाहिए   l  "   जैसे  ही  बलि  ने  संकल्प  लेकर  कहा --- " मैं  आपको  तीन  पग  जमीन  दान  देता  हूँ  ,  "   भगवान  विष्णु  ने  वामन  से  विरत  रूप  धरकर  दो  पग  में  सारी  धरती  और  आसमान  नाप  लिया  l  अब  तीसरा  पग  कहाँ  धरें  ?  बलि  ने  कहा ---   अब  कहाँ  बताएं  ?  तीसरा  पग  मेरे  सिर  पर  धर  लो  l   भगवान  ने  उसके  सिर  पर  पग  धरकर  बलि  को  सीधा   पाताल  भेज  दिया   l  बलि  ने  समझ  लिया  कि  यह  तो  काल  चक्र  की  विपरीतता  है  l  वे  तो  भगवान  के  भक्त  थे   l   एक  साधारण  इनसान  बनकर  पाताल  में  भी  प्रसन्न  रहने  लगे  l   परिजनों  को   यह    मंजूर  नहीं  था  , तब  महाराज  बलि  ने  परिजनों  को   काल  की  महत्ता   को  स्पष्ट  करते  हुए  कहा ---- " काल  की  महिमा  से  जो  अवगत  होते  हैं  ,   वे  उसे  प्रणाम  कर  के  स्वयं  को   उसके  अनुकूल  ढाल  लेते  हैं   l  बड़े -बड़े  साम्राज्य   जिनका  सूर्य  कभी  ढलता  नहीं  है ,  उन्हें  काल  क्षण  भर  में   धूल  -धूसरित  कर  देता  है  l   काल  उठाता  है  तो  एक  तिनका  भी  पहाड़  बन  जाता  है  l  एक  गरीब  कुबेर  जैसा  समृद्ध , संपन्न  बन  जाता  है   l  काल  साथ  देता  है  तो  कठिन  परिस्थितियां  भी  सरल  हो  जाती  हैं  l     आज  काल  हमारे  साथ   नहीं  खड़ा  है   l  ऐसे  विपरीत  समय  में  कोई  साधन , तप , ज्ञान  काम  नहीं  आता  l  सब  कुछ  धरा - का -धरा  रह  जाता  है   l  अत:  ऐसे  विपरीत  समय  हमें  शांत  और  स्थिर  रहना  चाहिए   और  प्रभु  द्वारा  निर्धारित  स्थान  पर    अपनी  भक्ति  के  सहारे  अनुकूल  समय   की  प्रतीक्षा  के   अलावा  और  कोई  विकल्प  नहीं  है   l  ऐसे  समय  कोई  अपना  साथ  नहीं  देता ,  केवल  भगवान  ही  सुनते  हैं  l  "