8 June 2021

WISDOM ----- शिवजी कहाँ से देते हैं

   एक  प्रेरणाप्रद  दृष्टांत  है  -----   एक  ब्राह्मण  थे  , शिवजी  के  अनन्य  भक्त  ,  साथ  ही  निर्धनता  की  साक्षात्  मूर्ति  l   सुबह  चार  बजे  से     शिवजी  की  पूजा  आदि  सब  करते  ,  उनकी  पत्नी  कूटना - पीसना  कर  घर  का  प्रबंध  करती  l   सावन  का  महीना  था  l   पंडित जी  एक  सहस्त्र  एक  बेलपत्र  पर  राम नाम   लिखकर  प्रतिदिन  अत्यंत  भक्ति पूर्वक  शिवजी  पर  चढ़ाते  थे   l   इस  प्रकार  उन्तीस  दिन  बीत  गए   l   तीसवें  दिन  पंडित जी   पूजा -पाठ  में  तल्लीन  थे  ,  संयोगवश   उधर  से  शिव - पार्वती   निकले  l  पार्वती जी  को  उस  ब्राह्मण  पर  बहुत  दया  आई  , उन्होंने  शिवजी  से  कहा  ---- " भगवान  !  यह  ब्राह्मण  बहुत  दिनों  से   आपकी  भक्ति - पूजा  कर  रहा  है  और  यह  बहुत  निर्धन  है   ,   इस  पर  कृपा  करें   l   शिवजी  ने  कहा  --- 'तुम  ठीक  कहती  हो  देवी  !   इसने  इस  प्रकार  जो  मेरी  सेवा  की  है  ,  उसका  पारिश्रमिक  इसे  आज  सांयकाल  तक  मिल  जायेगा    l   ठीक  उसी  समय  एक  सेठ   लोभीमल  वहां  से  निकला  ,  उसने  यह  वार्तालाप  सुना  तो  उसे  बहुत  लालच  आ  गया  l  वह  सोचने  लगा  कि   भगवान  सहस्त्रों  में  देंगे  तो  क्यों  न  अवसर  का  लाभ  उठाया  जाये   l   लोभिमाल  उस  ब्राह्मण  के  घर  पहुंचा  और  कहा  ---- " आप  अत्यंत  निर्धन  हैं  l  आपने  सावन  के   महीने   भर  जो  शिवजी  की  पूजा  की  है  उसका  पुण्य  मुझे  दे  दो  और  बदले  में  ये  सौ   रूपये  ले  लो  l  निर्धनता  के  कारण  ब्राह्मण  व  उसकी  पत्नी  राजी  हो  गए  कि   सौ   रूपये  से  कुछ  दिन  तो  काम  चलेगा  l   श्रावण   की  पूर्णिमा  थी  लोभीमल   बहुत  प्रसन्न   था  ,  वह  मंदिर  में  बैठ  गया   , उसे  उम्मीद  थी  कि   शिवजी  असंख्य  धन  देंगे   l   आखिर  रात  के  ग्यारह  बज   गए  ,  उसके  धैर्य  ने  जवाब  दे  दिया  उसने  क्रोध  में  अपने  दोनों  हाथ   शिवजी  की  मूर्ति  पर  पटक  दिए  और  बोला ----  " अरे  !  अब  तू  भी  झूठ  बोलने  लगा   ! "  उसके  दोनों  हाथ  मूर्ति  से  चिपक  गए  l   उसने  छुड़ाने  का  बहुत  परिश्रम  किया  किन्तु  वह  और  मजबूती  से  चिपक  गए  ,  वह  थक  गया  तो  उसे  नींद  आ  गई  l  स्वप्न  में  उसने  देखा  शंकर जी  त्रिशूल  लिए  खड़े  हैं  , उसने  भगवान  से  कहा  --- भगवान , कृपा कर  मेरे  हाथ   छुड़वाये   l  '   शिवजी  ने  कहा  ---- ' सुबह  तू  मेरे  ब्राह्मण  भक्त  को  पचास  हजार  दे  तो  ये  हाथ  छूट  जायेंगे   अन्यथा  ऐसे  ही   चिपके  रहेंगे  l  "    सुबह  हुई  वह  ब्राह्मण  पूजा  के  लिए  मंदिर  आया  तो  देखा  कि  लोभिमाल  मूर्ति   से  चिपका  है  l  उसने  अपनी  सारी   व्यथा - कथा  सुनाई  और  कहा  --- 'मेरे  पुत्र  को  कहलवाओ  कि   पचास  हजार  यहाँ  ले  आए  l   वह  रुपया  शंकर जी  ने  आपको  दिलवाया  है   l '  इस  प्रकार  उस  शिव भक्त  को  पचास  हजार  रूपये  मिले  तब  लोभीमल  का  हाथ  छूटा   l  ब्राह्मण  की  निर्धनता  दूर  हुई  और  शेष  धन  उसने  और  गरीबों  व  अपाहिजों  में  बाँट  दिया   l   एक  दिन  पारवती जी  ने  शिवजी  से  पूछा  --- ' भगवन  ! आपने  उस  ब्राह्मण  को  कुछ  दिया  नहीं  ? '  शंकर जी  बोले ---- ' क्यों  ?  दिए  तो  पचास  हजार  रूपये   l   '  पारवती  जी  ने  कहा --- ' वह  तो  लोभीमल  ने  दिए ,  आपने  क्या  दिया   ? '  शिवजी  बोले  ---- " इसी  प्रकार  से  तो  मैं  देता  हूँ   , अन्यथा  मेरे  पास   भांग , धतूरा   और  नंदी  बैल  के  सिवा   और  है  ही  क्या   l "