हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीना सिखाते हैं l महर्षि वाल्मीकिजी ने रामायण की रचना की l वे त्रिकालदर्शी थे , वे जानते थे कि सोने की लंका में रहने वाले रावण के परिवार की जो समस्या है , वह कलियुग में घर -घर में होगी l हम इनका जितना अध्ययन करेंगे , हमें जीवन जीने के विभिन्न सूत्रों का ज्ञान होगा l रामायण का प्रसंग है ---- जब विभीषण ने रावण को समझाया कि माँ सीता स्वयं जगदम्बा है , रावण का यह हठ उचित नहीं है l तब रावण ने भरी सभा में विभीषण को लात मारी , अपमानित किया l फिर विभीषण ने रावण को त्याग दिया और भगवान राम की शरण में आ गया l आज के युग में हम देखते हैं कि भाई -भाई में विवाद है , पारिवारिक विवादों के केस से ही अदालतें भरी हैं , घरेलू हिंसा , उत्पीड़न है , जीवन सुरक्षित नहीं है , अब मनुष्य , मनुष्य से ही भयभीत है l ऐसे में विभीषण का चरित्र हमारी आँखें खोलने के लिए है l यह प्रसंग हमें शिक्षा देता है कि जो अत्याचारी है , अन्यायी है उसे त्याग दो फिर चाहे वह रिश्ते में कोई भी हो l जिस व्यक्ति के पास अपार सम्पदा है , विद्वान् भी है लेकिन वह अत्याचारी है , दूसरे की पत्नी पर कुद्रष्टि रखता है l वन के कष्टों में भी राम -सीता प्रेम से रहते थे , रावण ने उन्हें एक दूसरे से दूर कर दिया , ऐसे अत्याचारी का त्याग करना ही उचित है l आज तो अत्याचार के विभिन्न रूप , विभिन्न तरीके समाज में हैं इसलिए जागरूक रहकर ऐसे रावण को त्याग देना जरुरी है l विभीषण का चरित्र एक बात और सिखाता है कि जब दसों दिशाओं में रावण का अत्याचार है , आतंक है , तब जाएँ तो जाएँ जहाँ ? एकमात्र ईश्वर की शरण में रहो , अपने आत्मविश्वास को जगाओ l जो ईश्वर की शरण में रहेगा उसका राजतिलक होगा और जो अत्याचारी , अन्यायी का साथ देगा उसकी दुर्गति और अंत निश्चित है l सूपर्णखा रावण का आदेश मानकर राम , लक्ष्मण को लुभाने गई तो अपने नाक , कान कटवा बैठी , पापी का साथ देने से दुर्गति हुई l विभीषण का चरित्र हमें सिखाता है कि जागरूक रहकर और समय पर सही निर्णय लेकर हम भविष्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं से स्वयं को सुरक्षित कर सकते हैं l
16 December 2022
WISDOM----
पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- विनम्रता व्यक्ति को ग्रहणशील , संवेदनशील बनाती है l विनम्रता से व्यक्ति का विवेक जाग्रत होता है , वह औचित्य् पूर्ण कार्य कर पाता है l विनम्रता से ही व्यक्ति के अंदर सद्गुणों का समावेश होता है l ' ये सद्गुण ही व्यक्ति को महानता के पथ पर ले जाते हैं l पुराण की एक कथा है ----- किसी समय भीलों की शबर जाति में कृपालु नाम का व्यक्ति था जो ' वृक्ष नमन ' मन्त्र विद्या जानता था l यह मन्त्र उसके अलावा केवल उसके पुत्र को ही पता था l उसकी विद्या में ऐसा प्रभाव था कि खजूर के ऊँचे -ऊँचे वृक्ष भी झुक जाते थे और उनका रस वह सरलता से एकत्र कर लेता था l एक दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने उसे इस विद्या का प्रयोग करते देख लिया तो उनके मन में इस मन्त्र को जानने की जिज्ञासा हुई l वे कृपालु के नजदीक गए ताकि उससे नम्रता से मन्त्र सीख लें लेकिन कृपालु उन्हें देखकर भाग गया l वे उसके पीछे उसके घर गए तो वह वहां से भी भागने लगा l व्यास जी समझ गए कि कृपालु उन्हें मन्त्र नहीं देना चाहता और सामने आने से कतरा रहा है l इसलिए वह शांत भाव से वापस लौटने लगे l कृपालु के बेटे को उन पर दया आ गई और उसने कुछ कर्मकांड कर के उन्हें वह मन्त्र सिखा दिया l रास्ते में व्यास जी ने नारियल के वृक्ष को लक्ष्य कर के मन्त्र जपा तो वह वृक्ष झुक गया , उन्होंने एक नारियल तोड़ लिया फिर ऐसा मन्त्र जपा कि वह वृक्ष फिर अपनी जगह पर हो जाये l कृपालु जब घर लौटा तो उसके पुत्र ने उसे बताया कि उसने वह मन्त्र उन्हें सिखा दिया l इस पर कृपालु नाराज होकर कहने लगा --- " मूर्ख है तू ! वेदव्यास जी इतने बड़े महापुरुष हैं