20 October 2020

WISDOM ----- कर्म की गति

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  --- हम  विश्व  ब्रह्माण्ड  में  जहाँ  कहीं   भी    हों  ,  हमारे  कर्म  हमारा  पीछा  करते  ही  रहते  हैं   और  तब  तक  समाप्त  नहीं  होते  ,  जब  तक  हम  उन्हें  भोग  नहीं  लेते  l  '     महाभारत  का  युद्ध  समाप्त  हुआ  ,  भीष्म  शरशैया  पर  लेटे   थे  l   भगवान  श्रीकृष्ण  सब  पांडव  सहित  उनसे  धर्म  का  उपदेश  लेने  गए   l   तब  भीष्म  पितामह  ने  कहा --- " आप  कहते  हैं  तो  उपदेश  मैं  अवश्य  दूंगा  ,  किन्तु  हे  केशव  !  मेरी  एक  शंका  का  समाधान  करें  l  मैं  जनता  हूँ  कि   कर्मों  का  फल   भोगना  पड़ता  है  l   मैंने  ध्यान  कर  के  देखा  कि   मैंने  इस  जन्म  में  और  पिछले  72  जन्मों  में  भी   ऐसा  कोई  क्रूर  कर्म  नहीं  किया  ,  जिसके  फलस्वरूप  मुझे   बाणों  की  शैया  पर  शयन  करना  पड़े  l  "  उत्तर  में  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  कहा  --- " पितामह  !   यदि  आप  पिछला   एक  और  जन्म  देख  लेते  तो  आपकी  जिज्ञासा   का समाधान  हो  जाता  l   पिछले  73  वें   जन्म  में  आपने  ओक   के  पत्ते  पर  बैठे   हुए  हरे  रंग  के  टिड्डे  को  पकड़कर   उसको  बबूल  के  काँटे   चुभोए   थे  ,  आज  आपको  वही  काँटे   बाण  के  रूप  में  मिले  हैं  l  "  पुराणों  में  एक  और  कथा  है  ----  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  के  पुत्र  जयंत  ने   माँ  सीता  के  पैर   में   कौवे  के  रूप  में  चोंच  मार  दी  l   उनके  पैर   से  रक्त  निकल  आया  l   भगवान  श्रीराम  ने  यह  देखकर   समीप  रखे  कुशा  के  एक  तिनके  को   उठाया  और  उसे  मंत्रसिक्त  कर  के   जयंत  की  ओर   फेंक  दिया   l   कुशा  के  उस  तिनके  ने  अभेद्य  बाण  का  रूप  ले  लिया  और  जयंत  के  पीछे   पड़    गया  l   इस  बाण  से  बचने  के  लिए  जयंत  सभी  लोकों  में  भागता  फिर  l   स्वयं  उसके  पिता  से  लेकर   भगवान  ब्रह्मा  ने    उसको  शरण  नहीं  दी  ,  उसकी  सहायता  करने  से  मना  कर  दिया  l   अंत  में  उसे  भगवान  राम  की  शरण  में  ही  आना  पड़ा  l   उन्होंने  उसे  क्षमा   तो किया    परन्तु  कर्मफल  के  रूप  में  उसे   अपनी  एक  आँख  गँवानी   पड़ी  l   कर्म   का फल  सबको  भोगना  पड़ता  है  l