2 February 2022

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- अहंकार   एक  ऐसा  दोष  है  जिसके   उत्पन्न   होते  ही   काम , क्रोध , लोभ ,  मोह  ,  ईर्ष्या  द्वेष   आदि   विकार  उठ  खड़े  होते  हैं   l  ' अहंकार  का  सबसे  बड़ा   दोष  यह  है  कि   अहंकारी  चाहता  है  कि   सब  उसके  आगे  सिर   झुकाएं  ,  वही  सर्वश्रेष्ठ  है  l   अहंकार  को  जब  पोषण  नहीं  मिलता  तब  यही  अहंकार   उसे   काँटे   की  तरह   चुभता  है ,  घाव  की  तरह    रिसता     है  l    अहंकार  घाव  है  ,  फिर  हर  चीज  उसी  में  लगती  है  l   अहंकारी  स्वयं  अपने  लिए  नरक   की सृष्टि  करता  है  ,  उससे  किसी  की  हँसी ,  किसी  की  ख़ुशी  देखी     नहीं  जाती  l   वह  अपनी  पूरी  ऊर्जा   दूसरों  की  ख़ुशी  छीनने  में  ही  गँवा  देता  है     रावण , कंस , दुर्योधन ,   हिटलर   आदि     को  उनका  अहंकार  ही  खा  गया  l  हिरण्यकश्यप   तो  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  था  ,  उसके     अहंकार   को    तो  अपने  ही  पुत्र  प्रह्लाद    की   ईश्वर  भक्ति  से  ही  चोट  लगी  l   उसने  अपने  पुत्र  को   मृत्यु   के मुँह   में  धकलने  के  असंख्य  प्रयास    किए  l  कहते  हैं  जिसके  हृदय  में  ईश्वर  के  प्रति  अगाध  श्रद्धा  और   विश्वास हो  ,  वह  मृत्यु  को  दिन - रात  अपने  सामने  देखकर  भी  विचलित  नहीं  होता   क्योंकि  उसे  पता  है  कि   उसके  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथ  में  है   l   भगवान  भी  अपने  भक्त  को  कष्ट  देने  वाले  को    कभी  क्षमा   नहीं करते    l   जब  हिरण्यकश्यप  अपने  पुत्र  प्रह्लाद  को  मारने   दौड़ा  तो  नृसिंह   भगवान  खम्भे  से  प्रकट  हो  गए   और  हिरण्यकश्यप   को  अपनी  गोदी  में  लिटाकर  अपने  नाखूनों  से  उसका  पेट  चीर   डाला  l   जिस  वरदान  के  बल  पर  वह  इतना  अहंकारी  था  ,  उसी  से   उसका  अंत      हो  गया  l