काम , क्रोध , लोभ , मोह , मनुष्य की वो कमजोरियाँ हैं जिनमे फँसकर मनुष्य भटकता रहता है , उसे न मुक्ति मिलती है , न शांति l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी इसे स्पष्ट करने के लिए एक कथा कहते हैं ----- भँवरे को यों तो सभी फूलों से प्यार होता है , लेकिन उसे कमल के फूल से सबसे अधिक प्यार होता है l वह फूलों के पराग - रस का मतवाला होता है l कमल के फूल में जैसे उसके प्राण बास्ते हैं और इस अतिमोह में वह अपने प्राण गँवा देता है l सुबह से शाम तक कमल के सौंदर्य और स्वाद में खोया हुआ भंवरा सांझ होने पर भी उसके मोह से नहीं निकल पाता l सांझ होने पर सूर्य अस्त की वेला में कमल की पंखुड़ियाँ बंद होने लगती हैं , पर कमल की माया में बंधा भंवरा वहीँ जस का तस बैठा रहता है l कमल के पूरी तरह बंद होने पर भंवरा उसी में कैद हो जाता है l जो भ्रमर अपने पराक्रम से कठोर काष्ठ को भी काटकर चूर -चूर कर देता है , वही मोहवश कमल की कोमल पंखुड़ियों को नहीं काट पाता , बस , उन्ही के बीच सहमा , सिकुड़ा बैठा रहता है l उसे प्रतीक्षा रहती है सुबह होने की , पर यह सुबह उसके जीवन में कभी नहीं आती l कमल के अंदर प्राणवायु के अभाव में उसके प्राण ही निकल जाते हैं अथवा सरोवर में स्नान करने आये हाथी उस समूची कमलनाल को उखाड़ कर ही खा जाते हैं l उस भ्रमर के भाग्य में मृत्यु के अलावा और कुछ नहीं होता l