16 September 2022

WISDOM------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " ईर्ष्या  एक  घातक  विष  है , मनोविकार  है  l यह  बहुत  ही  जहरीली  और  नकारात्मक  भावना  है l  यह  अंगीठी  की  उस  आग  की  तरह  है  , जो  ईर्ष्यालु  व्यक्ति  के  मन -मस्तिष्क  में  सदैव  जल  रही  होती  है  l  ईर्ष्या  मनुष्य  की  एक  हीन  भावना  है  , वह  दूसरों  की  अच्छाई  से , सफलता  से  प्रेरणा  लेने  के  बजाय  हमेशा  दूसरों  के  सुख -शांति ,सफलता  और  समृद्धि  को  देख-देखकर  जलता -भुनता  रहता  है  l  वह  हमेशा  यही  सोचता  है  कि  आगे  बढ़ते  लोगों  की  राह  में  रोड़ा  कैसे  बना  जाए ? उनको  कैसे  नीचा  दिखाया  जाये , जिससे  समाज  में  उनका  मजाक  बने  और  कैसे  उनकी  खुशियाँ  छीनी  जाएँ  l "   ईर्ष्या  के  घातक  परिणाम  को  लेकर  एक  रोचक  कथा  है ---- ' एक  बार  एक  महात्मा  ने  अपने  प्रवचन  में  शिष्यों  से  अनुरोध  किया  कि  वे  अगले  दिन  अपने  साथ  एक  थैली  में  बड़े  आलू  साथ  लेकर  आएं  और  उन  आलुओं  पर  उन  व्यक्तियों  के  नाम  लिखकर  लाएं  जिनसे  वे  ईर्ष्या  करते  हैं  , नफरत  करते  हैं  l  सभी  शिष्यों  ने  उनकी  आज्ञा  मानकर  ऐसा  ही  किया  l  अब  महात्मा जी  ने  कहा  कि  थैले  में  ये  आलू  वे  सात  दिनों  तक  हर  पल  अपने  साथ  रखें  l  वे  सभी  शिष्य  सोते -जागते , उठते -बैठते  हर  समय  उन  आलुओं  का  बोझा  ढो  रहे  थे  l  जिसके  पास  जितने  अधिक  आलू  थे  वह  उतना  ही  अधिक  परेशान  था  l  जैसे -तैसे  सात  दिन  बीते , आठवें  दिन  वे  महात्मा  के  पास  पहुंचे  और  कहा  कि  हम  तो  इन  आलुओं  से  परेशान  हो  गए  l  महात्मा जी  के  कहने  पर  उन्होंने  अपने -अपने  थैले  नीचे  रख  दिए  और  चैन  की  साँस  ली   क्योंकि  उन  आलुओं  से  बहुत  बदबू  आने  लगी  थी  l  महात्मा जी  ने  कहा ---मैंने  आपको  यही  महसूस  करने  के  लिए  ऐसा  करने  को  कहा  था  l  जब  मात्र  सात  दिनों  में  ये  आलू  बदबू  देने  लगे , बोझ  लगने  लगे  , तब  जरा  सोचिए  जी  लोगों  से  आप  ईर्ष्या  करते  हैं  , नफरत  करते  हैं , उनका  आपके  मन  व  दिमाग  पर  कितना  बोझ  होगा  l  उन  आलुओं  की  तरह  आपका  मन व  दिमाग  भी  बदबू  से  भर  जाता  है  ,  यह  बोझ  आप  केवल  सात  दिन  नहीं , सारी  जिन्दगी  ढोते  हैं  l  इसलिए  ईर्ष्या  जैसी  नकारात्मक  भावनाओं  के  बोझ  को  अपने  मन  से  निकाल  फेंकिये  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---ईर्ष्या  के  रोग  से  बचने  के  लिए   आप  ईश्वर  पर  विश्वास  रखें , उनकी  शरण  में  जाएँ l  ईश्वर  ने  जो  आपको  दिया  है  ,उसे  देखें , उसका  महत्त्व  समझें  l  अपनी  शक्ति  और  सामर्थ्य  को  पहचाने  और  सही  दिशा  में  लगायें  l  सबसे  बढ़कर  निष्काम  कर्म  करें ,   सेवा  के  कार्यों  से  मन  के  विकार  दूर  होने  लगते  हैं  और  मन  निर्मल  हो  जाता  है  l