2 June 2021

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ---- ' पराधीनता  मनुष्य  के  लिए  बहुत  बड़ा  अभिशाप  है   वह  चाहे  व्यक्तिगत  हो   अथवा  राष्ट्रीय ,  उससे  मनुष्य  के  चरित्र  का  पतन  हो  जाता  है    और  तरह - तरह  के  दोष  उत्पन्न  हो  जाते  हैं   l   इसलिए  कवियों  ने   पराधीनता  को   एक  ऐसी   पिशाचिनी    की   उपमा    दी   है   जो  मनुष्य  के  ज्ञान  ,  मान ,   प्राण   सब  का  अपहरण  कर  लेती  है   l   दूसरों  को  पराधीन  बनाना   संसार  में  सबसे  बड़ा  अन्याय  और  दुष्कर्म  है   l   आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ----  जो  कमजोर  को  अपना  भक्ष्य  समझे    और  छल - बल  से    उसके  स्वत्व  का  अपहरण  करने  को   ही  अपनी  विशेषता  समझते  हैं  ,  उन्हें  कम  से  कम   ' मानव  '  तो  नहीं  कहा  जा  सकता   l   इनकी  गणना  उन  क्रूर  हिंसक  पशुओं  में   ही  की  जा  सकती  है  ,  जिनका  स्वभाव   ही  खूंखार   बनाया  गया  है    और  जो  सबके  लिए  भय  का  कारण   होते  हैं   l  "                                                  शारीरिक  अथवा  भौतिक  दृष्टि  से  कोई  व्यक्ति  या  देश  पराधीन  है    तो  वह  प्रयास  करने  आजाद  हो  सकता  है   l   जैसा  कि   हमने  देखा   कि  पिछले  सौ  वर्षों  में  अनेक  देश  साम्राजयवाद  के  चंगुल  से  आजाद  हुए     लेकिन  मानसिक  पराधीनता  सबसे  बुरी  होती  है   l  जिस  देश  के  लोग  मानसिक  पराधीनता  से  ग्रस्त  होते  हैं  वे  अपनी  सभ्यता , अपनी  संस्कृति , अपनी  परंपरा   आदि  को  अपने  ही  हाथों  पतन  के  गर्त  में    डुबो    देते  हैं  l   ऐसी  दुर्भाग्यपूर्ण  स्थिति  तभी  होती  है  जब  उस  देश    के      विचारशील  और   बुद्धिजीवी  वर्ग    की  चेतना  सुप्त  होती  है  ,  स्वार्थ  और  लालच  उन  पर  हावी  होता  है   l   इसी  बात  का  फायदा  चालाक   लोग   उठाते  हैं    और  उन्हें  अपने  इशारों  पर    चलाकर   अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करते  हैं   l