10 February 2019

WISDOM ---- बाहरी दुनिया में काम करने वाली न्याय व्यवस्था को झांसा देना कितना ही आसान हो , दिव्य प्रकृति में कोई झांसेबाजी नहीं चलती , वहां शुद्ध ईमानदारी ही काम आती है ------ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य जी  ने  अपने  एक  लेख  में  कहा  है -----    अकारण  दया  और  क्षमा  का  नियम  बना  लिया  जाये  तो  प्रत्येक  अपराधी  और  पापी   को  मनमाना  आचरण  करने  की  छूट  मिल  जाएगी  l  वह  इस  आधार  पर  गलत  रास्ते  पर  चलता   रहेगा  कि  क्षमा  तो  मिल  ही  जाएगी  l 
  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता ,  प्रारब्ध को  बदला  भी  नहीं  जा  सकता   l  आचार्यश्री  का ,  ऋषियों  आदि  का मत  है   कि  -- यदि  हम  अपने  आपको   दिव्य  प्रयोजनों  के  लिए  समर्पित  कर  सकें   तो  भागवत  चेतना  हमारी  नियति  अपने  हाथ  में  ले  लेती  है   l  इससे  पिछले  जन्मों  में  किये  गए  कर्म  केंचुली  की  तरह   उतर  जाते  हैं  l   अपने  आपको बदलने  और  विश्व  को  अधिक  सुन्दर ,  उन्नत ,  व्यवस्थित  बनाने  के  लिए  समर्पण  का  मन  बना  लिया  जाये   तो नियति  में  बदलाव  आने  लगता  है  l  तब  प्रकृति  एक  अवसर  देती  है   l         
   हमारे  मन  के  तार  ईश्वर  से  जुड़े  हैं  ,  वे  हमारे  ह्रदय  के  हर  भाव  को  समझते  हैं   इसलिए  बदलने  या  सुधरने  का  ढोंग  कर  के  अपने  लिए  क्षमा  नहीं  बटोरी  जा  सकती  l  बाहरी  दुनिया  में  काम  करने  वाली  न्याय  व्यवस्था  को झांसा  देना  कितना  ही  आसान  हो  ,  दिव्य  प्रकृति  में  कोई  झांसे   बाजी  नहीं  चलती  l   वहां  शुद्ध  ईमानदारी  ही  काम  आती  है   l   अहंकार  को  त्याग  कर  स्वयं  को  ईश्वर  के  हाथों  का ' यंत्र '   मान  लेने  से ,  सुख  और  दुःख  को  ईश्वर  की इच्छा  समझकर  स्वीकार  करने  से  नियति  में  परिवर्तन   संभव  है  l