स्वामी दयानन्द सरस्वती ने राष्ट्रीय स्वाभिमान को जगाया , विशुद्ध भारतीयता पर बल दिया l सत्य - असत्य - विवेक की प्रवृति को जगाया l अन्धविश्वास और रूढ़िवाद का खंडन किया l स्वामीजी मूर्ति पूजा का विरोध करते थे l जुलाई 1869 की बात है l कानपुर में पं. गुरुप्रसाद ने प्रयागनारायण में ' कैलास ' और ' वैकुण्ठ ' नमक दो मंदिर बहुत धन लगाकर बनवाये थे l स्वामीजी ने उनसे कहा था ----" आपने लाखों रुपया व्यर्थ गँवा दिया l इससे अच्छा था कि कान्यकुब्ज कन्याओं को , जो 30 -30 वर्ष की कुमारी बैठी हैं , विवाह करवा देते , जिससे देश और जाति का भला होता l "
10 October 2020
WISDOM ----
गाँधीजी के जीवन की एक घटना है --- बात चंपारण जिले की है l गाँधीजी उस क्षेत्र में असहयोग आंदोलन का वातावरण बनाने के लिए गाँव - गाँव घूम रहे थे l एक गाँव में उन्होंने पशुबलि का जुलूस निकलते देखा l देवी को बकरा चढ़ाने एक समूह गाता - बजाता जा रहा था l गाँधीजी ने दृश्य देखा , तो उन्होंने एकत्रित लोगों को वैसा न करने के लिए समझाया l न माने तो एक नया प्रस्ताव रखा -- गाँधीजी ने कहा -- पशु के रक्त से मनुष्य का रक्त उत्तम ही होगा l तुम लोग अपने देवता पर मेरी बलि चढ़ा दो l उन्होंने सिर नीचे झुका लिया और वहां जा खड़े हुए , जहाँ बकरा कटना था l सन्नाटा छा गया , ग्रामीण लौट गए और उस क्षेत्र से बलि - प्रथा सदा के लिए समाप्त हो गई l