13 February 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- ' वाणी  को  विराम  देना  मौन  कहलाता  है  ,  परन्तु  सार्थक  मौन  उसे  कहते  हैं  ,  जब  मन  में  सद्चिन्तन  होता  रहे  l   जिह्वा  को  बंद  रखकर  मन  में  ईर्ष्या -द्वेष  का  बीज   बोते  रहने  को  मौन  नहीं  कहा  जा  सकता   l   यह  तो  और  भी  खतरनाक   एवं  हानिकारक  सिद्ध  हो  सकता  है   l   मौन  के  साथ  श्रेष्ठ  चिंतन   और  ईश्वर  स्मरण  आवश्यक  है    तभी  मौन  की  सार्थकता  है   l   महर्षि  रमण   सदैव  मौन  रहते  थे   l   वे  बिना  बोले  ही  हर  एक  की  जिज्ञासा  को   शांत  करते  और  हर  कोई   उनसे  अपनी   गंभीर  समस्या   का  समाधान  अनायास   पा  जाता  था   l     महात्मा  गाँधी  के  मौन   का  प्रभाव  सर्वव्यापक  था   l   महान  दार्शनिक  बंट्रेंड  रसेल  ने  भी   मौन  की  महत्ता  को   स्वीकार  किया   है  l