आज की समस्त समस्याएं इसलिए हैं क्योंकि हम अपनी कृषि , अपनी चिकित्सा , अपनी कला , अपनी संस्कृति , अपनी भाषा और अपनी क्षमता को महत्व न देकर पराई चीजों को महत्व देते हैं l इसलिए हम बीच में फँसे हैं , न घर के रहे , न घाट के l
अभी भी वक्त है , यदि हम संभल जाएँ , जागरूक हो जाएँ , हमारा स्वाभिमान जाग जाये , तो फिर हमारा मुकाबला कोई नहीं कर सकता l यदि हम केवल चिकित्सा के बारे में बात करें ---- तो हम कितने भाग्यवान हैं कि हमारे पास अपनी वैकल्पिक चिकित्सा है l यद्द्पि एलोपैथी का बोलबाला है , लेकिन यदि ये अंग्रेजी दवाइयाँ हमें रिएक्शन करती हैं तो हम घरेलू चिकित्सा , आयुर्वेदिक , होम्योपैथी , प्राकृतिक , सूर्य चिकित्सा आदि हमारे प्राचीन साहित्य में चिकित्सा के विशेषज्ञों से चिकित्सा करा के स्वस्थ हो सकते हैं l
आज उन लोगों की और उन देशों की स्थिति बहुत दयनीय है जो पूरी तरह एलोपैथी पर निर्भर है l यह पद्धति भी अच्छी है लेकिन इसकी अपनी सीमायें हैं जैसे --- एक व्यक्ति को पेट दर्द हुआ तो एक गोली खाई , फिर ब्लड प्रेशर है , डाइबिटीज है तो उसकी दवाई खाई , फिर हाथ - पैरों में दर्द है तो उसकी एक गोली , तनाव है सिर दर्द है तो उसकी एक गोली ------ शरीर चलता - फिरता मेडिकल स्टोर बन जाता है l फिर विभिन्न दवाइयों के साइड इफेक्ट l बीमारियाँ पीछा नहीं छोड़तीं l
लेकिन यदि हम अपनी संस्कृति , अपना मूल्य समझेंगे तो बीमारी हमसे दूर भागेगी l
जैसे --- सुबह जल्दी उठे , सूर्य देवता के दर्शन किये , गायत्री मन्त्र जपा , प्राणायाम किया तो आधी बीमारी तो वैसे ही चली गई l और शेष का इलाज हमारी रसोई में और प्रकृति में , आयुर्वेद में मिल जाता है जैसे --- पेट दर्द है तो हींग , अजवाइन खा ली , गुनगुने पानी से एक चम्मच हल्दी फाँक ली l , लहसुन , नीम की पत्ती , जामुन की पत्ती , अर्जुन की छाल, आंवला ----- आदि का सेवन या इनसे बनी औषधि का सेवन करने से ही व्यक्ति स्वस्थ हो सकता है l खरचा भी कम , बजट संतुलित और कोई रिएक्शन भी नहीं l जब लोगों पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तो बीमारी भी
स्टेट्स सिंबल बन जाती है , व्यक्ति उसमें अंधाधुंध पैसा खर्च कर के , और फिर से एक नई बीमारी लेकर भी गर्व महसूस करता है l इसलिए हम ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें , जिससे हमारे जीवन को सही दिशा मिले l
अभी भी वक्त है , यदि हम संभल जाएँ , जागरूक हो जाएँ , हमारा स्वाभिमान जाग जाये , तो फिर हमारा मुकाबला कोई नहीं कर सकता l यदि हम केवल चिकित्सा के बारे में बात करें ---- तो हम कितने भाग्यवान हैं कि हमारे पास अपनी वैकल्पिक चिकित्सा है l यद्द्पि एलोपैथी का बोलबाला है , लेकिन यदि ये अंग्रेजी दवाइयाँ हमें रिएक्शन करती हैं तो हम घरेलू चिकित्सा , आयुर्वेदिक , होम्योपैथी , प्राकृतिक , सूर्य चिकित्सा आदि हमारे प्राचीन साहित्य में चिकित्सा के विशेषज्ञों से चिकित्सा करा के स्वस्थ हो सकते हैं l
आज उन लोगों की और उन देशों की स्थिति बहुत दयनीय है जो पूरी तरह एलोपैथी पर निर्भर है l यह पद्धति भी अच्छी है लेकिन इसकी अपनी सीमायें हैं जैसे --- एक व्यक्ति को पेट दर्द हुआ तो एक गोली खाई , फिर ब्लड प्रेशर है , डाइबिटीज है तो उसकी दवाई खाई , फिर हाथ - पैरों में दर्द है तो उसकी एक गोली , तनाव है सिर दर्द है तो उसकी एक गोली ------ शरीर चलता - फिरता मेडिकल स्टोर बन जाता है l फिर विभिन्न दवाइयों के साइड इफेक्ट l बीमारियाँ पीछा नहीं छोड़तीं l
लेकिन यदि हम अपनी संस्कृति , अपना मूल्य समझेंगे तो बीमारी हमसे दूर भागेगी l
जैसे --- सुबह जल्दी उठे , सूर्य देवता के दर्शन किये , गायत्री मन्त्र जपा , प्राणायाम किया तो आधी बीमारी तो वैसे ही चली गई l और शेष का इलाज हमारी रसोई में और प्रकृति में , आयुर्वेद में मिल जाता है जैसे --- पेट दर्द है तो हींग , अजवाइन खा ली , गुनगुने पानी से एक चम्मच हल्दी फाँक ली l , लहसुन , नीम की पत्ती , जामुन की पत्ती , अर्जुन की छाल, आंवला ----- आदि का सेवन या इनसे बनी औषधि का सेवन करने से ही व्यक्ति स्वस्थ हो सकता है l खरचा भी कम , बजट संतुलित और कोई रिएक्शन भी नहीं l जब लोगों पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तो बीमारी भी
स्टेट्स सिंबल बन जाती है , व्यक्ति उसमें अंधाधुंध पैसा खर्च कर के , और फिर से एक नई बीमारी लेकर भी गर्व महसूस करता है l इसलिए हम ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें , जिससे हमारे जीवन को सही दिशा मिले l