1 November 2022

WISDOM -----

     जब  भगवान  श्रीराम  अयोध्या  के  राजा  थे  , तब  राम -राज्य  था  l  रावण  से  युद्ध  की  समाप्ति  पर  लगभग  सभी  असुर  सामाप्त  हो  गए  थे   लेकिन  असुरता  पूरी  तरह  कभी  समाप्त  नहीं  होती  वह  पीढ़ी -दर -पीढ़ी  चलती  रहती  है  l  कोई  असुर  तपस्या  आदि  करके   सन्मार्ग  पर  चले  भी  लेकिन  कोई -न -कोई  दुष्ट  संस्कार  उसकी  संतानों  में  आ  ही  जाता  है  यही  कारण  है  कि  त्रेतायुग  से  अब  तक  असुरता  कायम  है  l  असुर  को  तो  मार  सकते  हैं , दंड  दे  सकते  हैं   लेकिन  आने  वाली  पीढ़ियों  में  जो  संस्कार  आ  जाते  हैं  , उन्हें  परिवर्तित  करना , उनके  मन  और  विचारों  को  परिष्कृत  करना  अति  कठिन  है  l   पुराण  की  कथा  है  ---- भगवान  श्रीराम  के  शासन काल  में  मधु  नामक  एक  दैत्य  था  l  बहुत  दयालु , ईश्वर भक्त  और  अहिंसा  के  मार्ग  पर  चलने  वाला  था  l  उसके  पास  बहुत  बड़ा  साम्राज्य , धन , बल  सब  ऐश्वर्य  था  लेकिन  उसे  भय  था  कि  कहीं  कोई  उसके  राज्य  पर  आक्रमण  न  कर  दे   इसलिए  उसने  शिवजी  की  तपस्या  की  l  उसकी  कठोर  साधना  से  प्रसन्न  होकर  भगवान  प्रकट  हुए   तो  उसने  भगवान  से  उनकी  अलौकिक  शक्ति  वाला  त्रिशूल  मांग  लिया  और  कहा  कि  भगवान  ऐसा  वरदान  दें  कि  यह  त्रिशूल  हमारे  वंश  में  हमेशा  रहे  l  तब  शिवजी  ने  कहा ---- जब  तक  तुम्हारे  पास  यह  त्रिशूल  रहेगा  तुम्हे  कोई  हरा  नहीं  सकेगा   लेकिन  तुम्हारे  बाद  यह  त्रिशूल  केवल  तुम्हारे   एक  पुत्र  के  पास  रहेगा  l  यह  कहकर  शिवजी  अन्तर्धान  हो  गए  l  मधु  दैत्य  सद्गुण  संपन्न  था   इसलिए  उसने  त्रिशूल  की  महान  शक्ति  का  सदुपयोग  किया  l   दुष्टों  को  दंड  , कमजोर  की  रक्षा  और  राज्य  में  सुख -शांति  के  लिए  उसने  इस  महान  शक्ति  का  सदुपयोग  किया  l   मधु  की  मृत्यु  हो  जाने  पर   उसका  पुत्र  लवणासुर  त्रिशूल  का  अधिकारी  बना  l लवणासुर  अपने  पिता  से  विपरीत  क्रोधी , निर्दयी , दुराचारी  , अत्याचारी  था  l   त्रिशूल  हाथ  में  आने  से  उसकी  दुष्प्रवृत्तियां   और   अनेकों  गुनी  बढ़   गईं  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं ----  'जब  दुष्ट  व्यक्तियों  के  हाथ  में   सत्ता  और  शक्ति    आ  जाती  है  तो  वे  उसका  दुरूपयोग  करने  लगते  हैं  l  ' लवणासुर  अपनी  शक्ति  के  मद  में   लूट , क़त्ल , अन्याय , अत्याचार  करने  लगा  l  तब  सब  ऋषि , मुनियों  ने   अयोध्या  आकर  भगवान  राम  को  उसके  अत्याचारों  की   सब  बात  बताई  l  भगवान  राम  ने  कहा  --जब  तक  लवणासुर  के  पास  त्रिशूल  है  उसे  मारना  संभव  नहीं  है  l  ऋषियों  ने  बताया  कि  प्रात:काल  लवणासुर  आहार  के  लिए  जाता  है  , उस  समय  वह  अपने  साथ  त्रिशूल  नहीं  ले  जाता  , उसी  समय  उसे  मारा  जा  सकता  है  l  तब  भगवान  ने  शत्रुध्न  को  आज्ञा  दी  l  प्रात: काल  जब  लवणासुर  के  पास  त्रिशूल  नहीं  था  तब  शत्रुध्न  के  साथ  उसका  भयंकर  युद्ध  हुआ  , अंत  में  लवणासुर  मारा  गया  और  त्रिशूल  शिवजी  के  पास  चला  गया  l   यह  कथा  बताती  है  कि  अनाधिकारी  व्यक्ति  के  हाथ  में  सत्ता  और  शक्ति  आ  जाती  है  तो  वह  उसका  दुरूपयोग  करता  है  l