नीति कहती है --- भय आधी मृत्यु है , इसलिए किसी को अकारण भय नहीं करना चाहिए , जो अवश्यम्भावी उसके लिए तो भय करना और भी मूर्खता है l उस परिस्थिति के लिए तो शूरवीरों की तरह तैयार रहना चाहिए l इस सम्बन्ध में एक कथा है ------- एक बार संसार की बिगड़ती हुई स्थिति को सुधारने पर विचार - विमर्श के लिए विष्णु जी को शिवजी ने बुलाया और यमराज को भी बुलाया l विष्णु जी के वाहन गरुड़ बाहर ही रुके , मीटिंग देर तक चलती इसलिए वे समय बिताने के लिए वहां दाना चुग रहे कबूतर से बात करने लगे l
निमंत्रण मिलते ही उसी समय वहां यमराज आ धमके , कबूतर को वहां देख उन्हें हंसी आ गई और अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराते हुए वे अंदर चले गए l
यमराज को देख कबूतर के तो प्राण सूख गए l उसने गरुड़ से कहा --- अवश्य ही मेरी मृत्यु आ गई है , इसलिए यमराज मुझे देखकर हँसे l तू मुझे किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दो l
गरुड़ ने उसे बहुत समझाया , पर भयभीत कबूतर ने कुछ न सुनी और कहा --- ' आप मुझे विंध्याचल की नीलाद्रि गुफा तक पहुंचा दो , मैं वहां छुप जाऊँगा , सुरक्षित रहूँगा l '
गरुड़ तो बहुत तीव्र गति से उड़ते हैं , कबूतर को अपनी पीठ पर बैठाकर विंध्याचल की नीलाद्रि गुफा में छोड़ आये l
उसी समय मीटिंग खत्म हो गई और यमराज बाहर निकले l वहां कबूतर को न देखकर उन्होंने गरुड़ से पूछा कि --- तुम्हारे साथ जो कबूतर था वह कहाँ गया ? गरुड़ ने हंसकर कहा --- महाराज ! आपकी विकराल दाढ़ , लम्बी मूंछ और भयंकर आकृति को देख वह भयभीत हो गया l मैंने बहुत समझाया , वह माना नहीं l इसलिए मैं अभी - अभी उसे विंध्याचल में एक सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आया हूँ l ' यमराज ने पूछा --- वहां आपने किसी और को तो नहीं देखा l
गरुड़ ने कहा --- जिस गुफा में मैं उसे छोड़कर आया , वहां एक बिल्ली के पंजे के निशान देखे l कोई बात है क्या l यमराज ने कहा ---- ' जब मैं यहाँ से निकला तो मैंने कबूतर के मस्तक पर एक लेख पढ़ा ,-- लिखा था -- एक घड़ी बाद उसे विंध्याचल की बिल्ली खा जाएगी l मैंने उसे शिवलोक में देखकर विचार किया कि ब्रह्मा जी भी कभी - कभी कितनी भूल करते हैं l कहाँ शिवलोक और कहा विंध्याचल , पर अब स्पष्ट हो गया , वैसे चाहे कबूतर बच जाता , पर उसके भय ने ब्रह्मा जी के लेख को सत्य कर दिया l कबूतर उस गुफा में भी न बच सका , यथासमय पर उसे बिल्ली ने खा लिया l
इस कथा से यही शिक्षा मिलती है कि विपरीत परिस्थितियों में हम धैर्य से काम लें l भयग्रस्त न हों l धैर्य , विवेक और आत्मविश्वास से समस्याओं पर विजय पाई जा सकती है l
निमंत्रण मिलते ही उसी समय वहां यमराज आ धमके , कबूतर को वहां देख उन्हें हंसी आ गई और अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराते हुए वे अंदर चले गए l
यमराज को देख कबूतर के तो प्राण सूख गए l उसने गरुड़ से कहा --- अवश्य ही मेरी मृत्यु आ गई है , इसलिए यमराज मुझे देखकर हँसे l तू मुझे किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दो l
गरुड़ ने उसे बहुत समझाया , पर भयभीत कबूतर ने कुछ न सुनी और कहा --- ' आप मुझे विंध्याचल की नीलाद्रि गुफा तक पहुंचा दो , मैं वहां छुप जाऊँगा , सुरक्षित रहूँगा l '
गरुड़ तो बहुत तीव्र गति से उड़ते हैं , कबूतर को अपनी पीठ पर बैठाकर विंध्याचल की नीलाद्रि गुफा में छोड़ आये l
उसी समय मीटिंग खत्म हो गई और यमराज बाहर निकले l वहां कबूतर को न देखकर उन्होंने गरुड़ से पूछा कि --- तुम्हारे साथ जो कबूतर था वह कहाँ गया ? गरुड़ ने हंसकर कहा --- महाराज ! आपकी विकराल दाढ़ , लम्बी मूंछ और भयंकर आकृति को देख वह भयभीत हो गया l मैंने बहुत समझाया , वह माना नहीं l इसलिए मैं अभी - अभी उसे विंध्याचल में एक सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आया हूँ l ' यमराज ने पूछा --- वहां आपने किसी और को तो नहीं देखा l
गरुड़ ने कहा --- जिस गुफा में मैं उसे छोड़कर आया , वहां एक बिल्ली के पंजे के निशान देखे l कोई बात है क्या l यमराज ने कहा ---- ' जब मैं यहाँ से निकला तो मैंने कबूतर के मस्तक पर एक लेख पढ़ा ,-- लिखा था -- एक घड़ी बाद उसे विंध्याचल की बिल्ली खा जाएगी l मैंने उसे शिवलोक में देखकर विचार किया कि ब्रह्मा जी भी कभी - कभी कितनी भूल करते हैं l कहाँ शिवलोक और कहा विंध्याचल , पर अब स्पष्ट हो गया , वैसे चाहे कबूतर बच जाता , पर उसके भय ने ब्रह्मा जी के लेख को सत्य कर दिया l कबूतर उस गुफा में भी न बच सका , यथासमय पर उसे बिल्ली ने खा लिया l
इस कथा से यही शिक्षा मिलती है कि विपरीत परिस्थितियों में हम धैर्य से काम लें l भयग्रस्त न हों l धैर्य , विवेक और आत्मविश्वास से समस्याओं पर विजय पाई जा सकती है l