11 February 2023

WISDOM -----

   श्रीमद् भगवद्गीता   में  भगवान  कहते  हैं कि  आसुरी  स्वाभाव  वाले  व्यक्तियों  में   बाहर  और  भीतर  की  पवित्रता  का  तो  अभाव  होता  ही  है  , इसके  साथ  ही  वे  निष्कपट , हितकर  और  सत्य  भाषण   को  भी  करने  से  विमुख  होते  हैं  l  उनमे  शुचिता , श्रेष्ठ  आचरण  तथा  सत्य  भाषण  का  सर्वथा  अभाव  होता  है  l   आसुरी  प्रकृति  वाले  व्यक्ति   उन्ही  कार्यों  को  करते  हैं  जिनसे  उन्हें  सुख  मिलता  है , उनका  स्वार्थ  साधता  है  l  '  महाभारत  में  दुर्योधन  का  चरित्र   प्रसिद्ध  है  l    दुर्योधन    और  युधिष्ठिर  दोनों  सहपाठी  थे ,  दोनों  को  पढ़ाने  वाले  आचार्य  भी   एक  ही  थे  l  एक  जैसा  परिवेश मिलने  पर  भी   युधिष्ठिर  धर्म  के  प्रतीक  हैं  , सदा  श्रेष्ठ  आचरण  करते  हैं   जबकि  दुर्योधन  सदा  अधर्म ,  अनीति   के  पथ  पर  चलता  और  दुराचरण    करता  दीखता  है  l   दुर्योधन  को  पितामह  भीष्म , , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य  , माता  गांधारी  और  महात्मा  विदुर  का  साथ  मिला   किन्तु  उसकी  अपनी  कुटिल   प्रवृतियां  और  जटिल  संस्कार   उसे  कुमार्ग  पर  धकेलती  रहीं  , वह  सारा  जीवन  षड्यंत्र  रचता  रहा   l  अंत  में  भगवान  कृष्ण   उसे  समझाने  गए  और   उससे  धर्म  व  नीति  की  बात   कही , द्वेष  का  पथ  छोड़कर   प्रेम  और  सद्भाव  से  चलने  का  पथ  सुझाया  l  प्रत्युत्तर  में  दुर्योधन  ने  कहा ---- जानामि  धर्म  न  च  में  प्रवृत्ति  ,  जानामि   अधर्म  न  च  में  निवृत्ति  l  '   "  आप  जो  कह  रहे  हैं  ,  वह  धर्म  मैं  जानता  हूँ  ,  लेकिन  उसमे  मेरी  प्रवृत्ति  नहीं  है  l  आप  जिसे  अधर्म  कहते  हैं  ,  उसे  भी  मैं  जानता  हूँ  ,  लेकिन  उसे  भी  मैं  छोड़  नहीं  पाता  l    आसुरी  प्रवृत्ति  हमेशा  दूसरों   को  दोष  देते  हैं , दुर्योधन  भगवान  से  कहता  है ---" लोग  तो  आपको  अंत: करण  का  स्वामी , हर्षिकेश   अन्तर्यामी  कहते  हैं  l  इसलिए   आप  ही  तो  मेरे   ह्रदय  में  बैठ  कर   जैसा  कराते  हो , वैसा  कर  लेता  हूँ  l  "  यह  सुनकर  भगवान  हँसने  लगे  l   दुर्बुद्धि  उस  पर  ऐसा  हावी  थी  कि  वह  भगवान  को  ही  बन्दी  बनाने  चला  l