लघु कथा ---- एक राजा के यहाँ एक संत आए l प्रसंग वश बात चली 'हक की रोटी ' की l राजा ने पूछा ---- ' महाराज , हक की रोटी कैसी होती है ? ' महात्मा ने बताया कि आपके नगर में अमुक जगह एक बुढ़िया रहती है , उसके पास जाकर पूछना चाहिए और उससे हक की रोटी मांगनी चाहिए l राजा पता लगाकर उस बुढ़िया के पास पहुंचे और बोले --- " माताजी , मुझे हक की रोटी चाहिए l " बुढ़िया ने कहा --- " राजन , मेरे पास एक रोटी है , पर उसमें आधी हक की और आधी बेहक की है l " राजा ने पूछा ---- " आधी बेहक की कैसे ? " बुढ़िया ने बताया --- " एक दिन मैं चरखा कात रही थी l शाम का वक्त था l अँधेरा हो चला था l इतने में उधर से जुलूस निकला l उसमें मशालें जल रही थीं l अपना चिराग न जलाकर उन मशालों की रोशनी में सूत कातती रही और मैंने आधी पूनी कात ली l आधी पूनी पहले की ही कती थी l उस पूनी से आटा लाकर रोटी बनाई l इसीलिए आधी रोटी तो हक की है और आधी बेहक की है l इस आधी पर उस जुलूस वाले का हक है l " वृद्धा की कर्तव्यपरायणता और सत्य निष्ठा को देखकर राजा ने उनको सिर नवाया l
31 July 2023
30 July 2023
WISDOM -----
हमारे महाकाव्य जिस युग में भी लिखे गए हों , वे हर युग की समस्याओं के अनुरूप मार्गदर्शक हैं l उनमे हर समस्या का समाधान है l लेकिन कलियुग में लोगों में विवेक या सद्बुद्धि का अभाव होता है इसलिए वो इनसे प्रेरणा लेना ही नहीं चाहते l महर्षि को पता था कि कलियुग में धर्म और जाति के नाम पर बहुत दंगे होंगे , ये मनुष्य की स्वार्थ पूर्ति का साधन होंगे l उन्हें यह भी पता था कि कलियुग में भगवान राम बहुतों के आदर्श होंगे , उनकी पूजा करेंगे इसलिए उन्होंने बताया कि भगवान राम ने शबरी के झूठे बेर खाए , निषादराज से मित्रता की l ईश्वर की निगाह में कोई ऊँच -नीच नहीं है l लेकिन कलियुग में केवल लोग चाहे किसी भी धर्म के हों वे केवल कर्मकांड करते हैं , अपने धर्म की शिक्षाओं पर कोई आचरण नहीं करता l रामायण से एक और सत्य सामने आता ही कि अत्याचारी , अन्यायी से सब लोग डरते तो हैं , लेकिन उन्हें अपने सुख वैभव की बड़ी तीव्र लालसा होती है इसलिए वे अत्याचार , अन्याय को देखते हुए भी अपना मुंह , आंख बंद रखते हैं l केवल विभीषण ने ही उस सुख वैभव का त्याग किया l भगवान राम का साथ तो मानव समाज में से किसी ने नहीं दिया , वे वनवासी थे l उन्होंने रीछ , वानरों की मदद से लंका पर विजय प्राप्त की l रावण का आतंक तो दसों दिशाओं में था , वह स्वयं राक्षसों को भेजता था कि जाओ , ऋषियों के हवन , यज्ञ और सत्कार्यों को नष्ट करो , अत्याचार कर के भय का वातावरण बनाओ जिससे सब नियंत्रण में रहें l
28 July 2023
WISDOM ------
सम्राट अशोक अपने सेनापति के साथ राज्य में भ्रमण के लिए गए l देखा एक पेड़ के नीचे एक भिक्षुक बैठा है l राजा उससे बात करते रहे फिर अपना सर उसके चरणों में झुकता , दंडवत प्रणाम किया l सेनापति ने यह सब देखा उसे अच्छा नहीं लगा l महल आकर सम्राट से कहा --- आपकी अनुमति हो तो एक बात पूछूं l ' सम्राट ने कहा --पूछो l सेनापति बोला ---- आप इतने बड़े सम्राट हो , सब आपके सामने सिर झुकाते हैं , फिर आपने उस भिक्षुक के चरणों में अपना सिर क्यों रखा ? ' सम्राट ने उस समय कुछ उत्तर नहीं दिया l दूसरे दिन सेनापति को एक थैला दिया और कहा कि इसमें जो सामान है उसे आज बेच आओ l सेनापति ने देखा उसमें चार सिर थे --घोड़े का , भैंसे का , बकरी का और आदमी का l तीन सिर तो बिक गए , आदमी का सिर किसी ने नहीं खरीदा l सेनापति बड़ा परेशान कि सम्राट आखिर क्या बताना चाहते हैं l राजा ने उससे कहा --तुम फिर से बाजार जाओ बिना किसी कीमत के फ्री में ही यह आदमी का सिर किसी को दे दो l सेनापति पुन: बाजार गया लेकिन किसी ने भी उस सिर को नहीं लिया और सेनापति को बुरा -भला कहा कि कोई हम पर हत्या का इल्जाम लगा देगा , इसे तुम ही रखो l सेनापति वापस लौट आया l सम्राट ने उसे समझाया --- यह सिर किसी के काम का नहीं है , इसकी कोई कीमत नहीं है l यह हमारा अहंकार है जो सिर पर चढ़कर बोलता है l अहंकारी व्यक्ति न तो स्वयं चैन से जीता है और न ही दूसरों को चैन से जीने देता है l इस अहंकार को समय रहते मिटा देने में ही कल्याण है क्योंकि यदि इस अहंकार को पोषण नहीं मिला तो यह घाव की भांति रिसने लगता है l
26 July 2023
WISDOM ------
हमारे देश में अनेक महान आत्माओं ने जन्म लिया और हमारी संस्कृति को जीवित रखने का अथक प्रयास किया l आदि शंकराचार्य की इच्छा थी कि इस देश में ज्ञानक्रांति के केंद्र बनें l इसके लिए उन्होंने चार स्थानों का चयन किया ---पूर्व में जगन्नाथपुरी , पश्चिम में द्वारका , उत्तर में बद्रिकाश्रम एवं दक्षिण में श्रंगेरी l इन केन्द्रों को स्थापित करने के लिए धन की आवश्यकता थी l राजा व श्रेष्ठि वर्ग कहते थे कि आप आदेश करें धन की कोई कमी नहीं होगी लेकिन आचार्य का कहना था कि जन सहयोग से कार्य हो l सबके द्वार पहुँचने से ज्ञान का सहज वितरण होगा l इस प्रयास में पद यात्रा करते हुए वे एक गाँव में पहुंचे l वहां कच्चे माकन व फूस की झोंपड़ियाँ थीं l लेकिन आचार्य का यश तो यहाँ तक , जन -जन तक पहुँच गया था l जिसके पास जो था वह बड़ी उदारता से दान कर रहा था l वे लोग सोच रहे थे कि जिन्हें देने के लिए राजा , महाराजा , संपन्न वर्ग उनके पीछे -पीछे घूमते हैं , वे आज हमारे द्वार पर आए हैं , यह हमारा सौभाग्य है l आचार्य एक झोंपड़ी के द्वार पर भिक्षा के लिए पुकार लगाईं l उस झोंपड़ी में एक वृद्धा थी जिसके पति व पुत्र दोनों का ही आकस्मिक निधन हो गया था l उसके स्वयं के भोजन पर संकट था l आचार्य को द्वार पर देख वह झोंपड़ी खंगालने लगी कि वह आचार्य को क्या दे l कुछ भी नहीं था उसके पास ! उसने फिर बाहर झांककर देखा तो आचार्य अभी तक खड़े थे l उसे अपनी गरीबी पर तरस आ रहा था , व्याकुल होकर वह ईश्वर से कहने लगी --- हे ईश्वर ! तूने मुझे इतना गरीब क्यों बनाया ? ईश्वर को उलाहना देते हुए वह फिर ढूंढने लगी कि कुछ तो मिल जाये l इस बार उसे कोने में पड़ा हुआ एक सूखा आंवला मिला l उसने आंवला उठा लिया और बड़े जातन से दौड़ते हुए द्वार पर आई l आचार्य वहीँ खड़े थे l उसने उनके हाथों पर वह सूखा आंवला रख दिया l इस आंवले के रखते ही आचार्य की हथेली पर आँसू की चार बूंदे गिरी l इनमे से दो आँसू वृद्धा के थे और दो आचार्य के l आंवले के रूप में वृद्धा अपनी सम्पूर्ण संपत्ति दान कर रही थी l ऐसी उदारता और ऐसी दरिद्रता के विरल संयोग को देखकर आचार्य भावुक हो गए , उन्होंने विकल होकर माता महालक्ष्मी को पुकारा --- " हे माता ! इस उदारता को सम्पन्नता का वरदान दो ! " उनके मुख से स्वत: स्फुरित स्तवन के स्वर फूटने लगे --------- आचार्य द्वारा किए जाने वाले इस स्तवन के प्रारम्भ होते ही सम्पूर्ण वातावरण में प्रकाश छा गया और सुगंध बिखर गई l स्तवन के पूर्ण होते ही वृद्धा की झोंपड़ी में आकाश से स्वर्ण आंवलों की कनक धाराएँ बरसने लगीं l महालक्ष्मी की कृपा और आचार्य की भक्ति के सभी साक्षी बने l आचार्य द्वारा कहा गया स्तोत्र --- कनकधारा स्तोत्र के नाम से सिद्ध स्तोत्र के रूप में वंदित हुआ l
25 July 2023
WISDOM -----
वक्त के साथ सब कुछ बदलता जाता है , यदि कोई परिवर्तन नहीं हुआ है तो वह है मनुष्य की मानसिकता l काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा --- ये सब बुराइयाँ पहले भी मनुष्य में थीं और आज भी हैं l इनका रूप अब और भी अधिक विकृत हो गया है l आज स्थिति ये है कि मनुष्य को मनुष्य से ही डर लगने लगा है l धन -दौलत को इतना अधिक महत्त्व देने के कारण अब रिश्तों का भी महत्त्व नहीं रहा l कब किस पर पशुता हावी हो जाए , कहा नहीं जा सकता l व्यक्ति के भीतर जो बुराइयाँ हैं , वे बड़ी श्रंखलाबद्ध तरीके से समाज को पतन की ओर ले जाती हैं जैसे एक व्यक्ति का स्वभाव षडयंत्र रचने का है , छल , कपट उसके स्वभाव में है तो वह ऐसा किसी एक के साथ नहीं करता , वह अनेक लोगों को अपना निशाना बनाता है l उसके लिए रिश्ते , मित्रता कोई मायने नहीं रखती l लालची व्यक्ति बेईमानी और भ्रष्टाचार को बढाता है l कामी व्यक्ति पूरे समाज को पतन के गर्त में धकेल देता है l कामना , वासना और लोभ की दूषित मानसिकता का परिणाम ही आज की फ़िल्में हैं जिनमे अश्लीलता , अपराध को ऐसे चित्रित किया जाता है कि वह लोगों के दिलो,-दिमाग में बैठ जाती है l भीतर की पशुता को उभारने में फिल्मों का बहुत बड़ा योगदान है l ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी है और उसे चयन की स्वतंत्रता दी है l यह मनुष्य को ही चयन करना है कि वह पशु बने या इनसान बने l इस बात का ध्यान अवश्य रखना होगा कि यदि वह पशु बनना पसंद करता है तो वह अपने चारों ओर अपनी ही जैसी प्रवृत्ति के लोगों को आकर्षित करेगा l ऐसे में वह स्वयं , उसका परिवार , उसके अपने कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा l
23 July 2023
WISDOM ------
कहते हैं कोई भी संस्कृति तभी तक जीवित रहती है जब तक उस देश के लोगों का चरित्र श्रेष्ठ होता है l सारे सद्गुण जैसे --सत्य , अहिंसा , कर्तव्यपालन , ईमानदारी , संवेदना , रिश्ते में शुचिता , दया , करुणा , परस्पर प्रेम आदि सभी सद्गुण मिलकर व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करते हैं l जब व्यक्ति पतन की राह पर चल देता है तब उसका पतन इतनी तेजी से होता है जैसे कोई गेंद बड़ी तेजी से नीचे गिरती है l पुरुष और नारी से मिलकर ही यह समाज बना है जिसमे अमीर , गरीब , ऊँच -नीच , विभिन्न जाति और धर्म के लोग हैं l अब यह मनुष्य को ही चुनाव करना है कि उसे कौन सी राह पसंद है --- उत्थान की या पतन की l समाज का पतन जब होता है तो चारों दिशाओं से ही होता है --कहीं गरीबी , मज़बूरी , दंगे , युद्ध आदि के समय मौके का फायदा उठाना आदि अनेक कारण है जो पीड़ित को तरक्की की राह में आगे नहीं बढ़ने देते l दूसरी ओर समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो शिक्षित है , समर्थ है लेकिन दूषित सामाजिक वातावरण , अश्लील फिल्म , सस्ते साहित्य का असर और अपनी मानसिक कमजोरियों के कारण स्वेच्छा से ही चारित्रिक पतन के रास्ते पर चल देता है l मुखौटा लगाकर सभ्य होने का ढोंग रचता है l इन सब कारणों से व्यक्ति का आत्मबल कम हो जाता है और पीढ़ी -दर -पीढ़ी पतन होता जाता है l भगवान श्रीकृष्ण का पूरा वंश अति धन वैभव के कारण भोग -विलास में लिप्त हो गया था , वे सब आपस में ही लड़ मरे और पूरी द्वारका समुद्र में डूब गई l आज जरुरी है कि हर व्यक्ति अपने ही अंतर में , अपने ह्रदय में झांके कि वह आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने जीवन के कौन से उदाहरण पेश कर के जा रहा है और कौन से संस्कार दे कर जा रहा है l बबूल के पेड़ में कभी आम नहीं लगता l
22 July 2023
WISDOM ----
पुराणों में अनेक कथाएं हैं जिनमें यह बताया गया है कि असुर बड़े तपस्वी होते हैं , वे कठोर तपस्या कर के ईश्वर से वरदान प्राप्त कर लेते हैं l तपस्या से शक्ति तो प्राप्त हो जाती है लेकिन असुर संवेदनहीन होते हैं इसलिए वे अपनी शक्ति का दुरूपयोग करते हैं l असुर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होता जिसके बड़े -बड़े सींग हों , डरावनी शक्ल हो l व्यक्ति में यदि दुर्गुण ज्यादा हैं , उसके कर्म दूसरों को कष्ट देने वाले हैं तो वह असुर है l पुराण में कथा है ---- भस्मासुर की l इसने कठिन तपस्या कर के शिवजी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह जिसके सिर पर हाथ रख दे , वह भस्म हो जाये l ऐसा वरदान पाकर वह अहंकार से मतवाला हो गया और प्रजा पर अत्याचार करने लगा l असुरता के राज्य की सबसे बुरी बात यह होती है कि वह असुर स्वयं तो प्रजा पर अत्याचार करता है , उसके राज्य में उसके आधीन जितने भी अधिकारी , कर्मचारी और राज्य के अन्य ताकतवर लोग होते है वे अपने -अपने तरीके से प्रजा का शोषण व अत्याचार करते हैं l प्रजा पर दोहरी मार हो जाती है l भस्मासुर के अत्याचार से दुःखी होकर प्रजा ने भगवान से प्रार्थना की कि इस अत्याचारी से हमारी रक्षा करो l क्योंकि कोई भी उसके विरुद्ध एक शब्द बोलता , , उसकी आज्ञानुसार नहीं चलता , वह उसके सिर पर हाथ रख देता और वह व्यक्ति भस्म हो जाता l अहंकार व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट कर देता है , उसने सोचा कि वह क्यों न शिवजी को ही भस्म कर दे और पार्वती जी से विवाह कर ले l उसके चापलूसों ने भी उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया l अब क्या था , वह चला शिवजी के सिर पर हाथ रखकर उन्हें भस्म करने l शिवजी क्या करें , वरदान देकर वह बंधे थे l अपनी समाधि से उठकर भागे l आगे -आगे शिवजी और पीछे -पीछे भस्मासुर ! भागते -भागते वे विष्णु लोक पहुंचे और भगवान से कहा कि मुझसे वरदान पाकर यह तो मुझे ही भस्म करना चाहता है , अब आप ही कोई तरकीब निकालो , जिससे इस असुर से मुझे और इसकी प्रजा को छुटकारा मिले l विष्णु भगवान मोहिनी रूप बनाकर बैठ गए l जैसे ही भस्मासुर शिवजी का पीछा करते विष्णुलोक पहुंचा , वहां इस मोहिनी रूप को देखकर अपनी सुधबुध खो बैठा l अब शिव -पार्वती सबको भूलकर वह इस मोहिनी रूप पर बावला हो गया l मोहिनी बने विष्णु जी ने कहा ---मुझे पाना है तो मेरे साथ नृत्य करो जैसी मेरी मुद्रा हो वैसी ही तुम करो l नृत्य करते -करते विष्णु जी ने अपने सिर पर हाथ रखा l भस्मासुर तो मोहिनी रूप में खो चुका था , उसने भी अपने सिर पर हाथ रखा , और वह तत्काल ही भस्म हो गया l शक्ति के साथ सद्बुद्धि और संवेदना भी जरुरी है , अन्यथा वह उसे पाने वाले को भस्मासुर की तरह ही नष्ट कर देती है l
21 July 2023
WISDOM -----
20 July 2023
WISDOM -----
पुराण की कथाएं मनुष्य को जीवन जीने की शिक्षा देती हैं l ---- ' योगवासिष्ठ ' में भगवान राम को महर्षि वसिष्ठ उपदेश दे रहे थे l इसी बीच वे लघुशंका हेतु गए l लघुशंका के दौरान वे जोर से हँसे l रामचंद्र जी ने सोचा, इतने बड़े महर्षि लघुशंका के दौरान हँस रहे हैं ! क्या उन्हें इतना ज्ञान नहीं है कि इस समय कोई भी क्रिया नहीं करनी चाहिए l जब लौटकर आए तो श्रीराम ने पूछा ---- " भगवान क्या बात थी , आप हँसे क्यों ? ऐसे समय में आपको हँसी आना किसी विशेष रहस्य का कारण है ? " महर्षि बोले ---- " मैं एक द्रश्य देखकर हँस पड़ा l एक चींटा नीचे नदी के प्रवाह में बहा जा रहा था l वह चींटा नौ बार इन्द्रपद पर रह चुका है , पर अपने भोग के कारण वह चींटे की योनि को प्राप्त हुआ है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- हम -आप कल्पना कर सकते हैं कि जब इन्द्रपद प्राप्त करने वाले की यह स्थिति है तो हमारी -आपकी क्या स्थिति होगी l " यह सत्य है कि मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मों द्वारा यह तय कर लेता है कि उसको अगले जन्म में कौन सी योनि मिलेगी l मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है l मनुष्यों से मिलकर ही परिवार , समाज और राष्ट्र बना है l एक मनुष्य को उसके कर्मों का फल तो मिलता ही है , लेकिन उसके कर्म उसके परिवार , समाज और राष्ट्र की दिशा को भी तय करते हैं l छल , कपट , षडयंत्र , धोखाधड़ी , अनैतिक , अमर्यादित कार्य , विभिन्न अपराध कोई अकेला नहीं करता , उसमे समाज का बहुत बड़ा तबका जुड़ा होता है l भौतिक द्रष्टि से चाहे उनके पास धन -वैभव हो लेकिन मानवीय द्रष्टि से वे परिवार और समाज को पतन के गर्त में और निम्न योनियों में ले जाते हैं l संसार में सुख शांति के लिए जरुरी है कि ' विकास ' को भौतिक द्रष्टिकोण से नहीं , इंसानियत के आधार पर परिभाषित किया जाये l इस आधार पर यदि विभिन्न देशों का निष्पक्ष सर्वेक्षण किया जाये तो यह सत्य सामने आएगा कि विकास ने मनुष्य को क्या बना दिया --- पशु , नर पशु , पिशाच या खूंखार पशु ! इनसान तो बहुत ही कम होंगे l विभिन्न योनियाँ तो मृत्यु के बाद ही मिलती हैं लेकिन व्यक्ति के गलत कार्य उसे पशु और जिन्दा प्रेत बना देते हैं जो न तो स्वयं चैन से रहता है और न दूसरों को चैन से जीने देता है l मनुष्य बुद्धिमान है इसलिए वह अपने इस रूप पर आदर्शवादी और समाजसेवी होने का आवरण डाल लेता है l आज जरुरी है कि हर व्यक्ति ईश्वर से सद्बुद्धि की प्रार्थना करे , ईश्वर हमें विवेक दें जिससे हम किसी व्यक्ति की सच्चाई को , उसके असली रूप को समझकर जागरूक रहें l
18 July 2023
WISDOM -----
यदि आपको तनाव रहित जीवन जीना है , संसार में निडर होकर , निश्चिन्त रहकर जीना है तो ईश्वर के सच्चे भक्त बनिए l क्योंकि जो सच्चा ईश्वर भक्त है , उसके लिए ईश्वर ही पर्याप्त है , वह संसार में किसी से कोई उम्मीद नहीं रखता l उसे मृत्यु का भी डर नहीं होता क्योंकि उसे पता है कि उसके जीवन की डोर भगवान के हाथ में है l भगवान और भक्त का एक अटूट रिश्ता होता है l भक्त हर पल भगवान का स्मरण करता है तो भगवान भी अपने भक्त का स्मरण करते हैं l -------- यह अधिकार मात्र नारद जी को प्राप्त था कि वे जब चाहे श्रीकृष्ण के अंत:पुर तक चले जाते थे , कहीं भी कोई उन्हें टोकता नहीं था l एक बार नारद जी द्वारका पहुंचे तो देखा भगवान कहीं दीख नहीं रहे हैं l रुक्मणी जी के पास पहुंचे और पूछा ---- " प्रभु कहाँ विराज रहे हैं ? दिखाई नहीं दे रहे हैं l " रुक्मणी जी ने पूजा घर की ओर संकेत किया और कहा ----" वहां बैठे जप कर रहे हैं l " नारद जी को बड़ा आश्चर्य हुआ l वे पूजा घर पहुंचे तो देखा भगवान ध्यानस्थ हैं l थोड़ी देर में उन्होंने आँखें खोली और देवर्षि का हँसकर स्वागत किया l नारद जी ने पूछा ---- " भगवान ! सारी दुनिया आपका ध्यान करती है l आप किसका ध्यान करते हैं ? " भगवान श्रीकृष्ण ने गंभीर होकर कहा ---- " देवर्षि ! मैं सदा अपने भक्तों को स्मरण करता हूँ l " देवर्षि को एक नई अनुभूति हुई कि भक्त , भगवान के ह्रदय में बसते हैं , भगवान अपने भक्तों को कभी नहीं भूलते l
WISDOM --------
कांची नरेश की राजकुमारी प्रेत बाधा से पीड़ित हुई l भूत सामान्य नहीं , ब्रह्मराक्षस था l तब श्री रामानुज को बुलाया गया l उन्होंने वहां जाकर पूछा ---- " आपको यह योनि क्यों मिली l " रोकर ब्रह्मराक्षस बोला ---- " मैं विद्वान् था , किन्तु मैंने अपनी विद्या छिपा कर रखी l किसी को भी मैंने विद्या दान नहीं किया , इससे ब्रह्मराक्षस हुआ l आप समर्थ हैं , मुझे इस प्रेतत्व से मुक्ति दिलाइये l " श्री रामानुज ने राजकुमारी के मस्तक पर हाथ रखकर , जैसे ही भगवान का स्मरण किया , वैसे ही ब्रह्मराक्षस ने उसे छोड़ दिया , और वह प्रेत योनि से मुक्त हो गया l उस दिन से श्री रामानुज ने प्रतिज्ञा की कि वह स्वाध्याय का लाभ समाज को भी देंगे l आज संसार में इतनी नकारात्मकता है , युद्ध , दंगे , तनाव , छल कपट , षड्यंत्र , प्राकृतिक आपदाएं - नकारात्मक शक्ति प्रबल है l दो विश्व युद्ध हुए , बीते युग में अनेक छोटे , बड़े युद्ध , विभाजन की त्रासदी और युद्ध के नाम पर निर्दोष और कमजोर को सताना , अकाल मृत्यु --- इन सबके कारण कितनी ही अशांत आत्माएं हैं , जो मुक्त नहीं हो पायीं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- गायत्री मन्त्र से प्रकृति को पोषण मिलता है , प्रकृति में व्याप्त नकारात्मकता दूर होती है l इसलिए व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो उसे गायत्री मन्त्र का जप अवश्य करना चाहिए l मनुष्य तो अपनी महत्वाकांक्षा , ईर्ष्या , द्वेष के कारण युद्ध आदि से पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है , लेकिन गायत्री मन्त्र से जब प्रकृति में व्याप्त नकारात्मकता दूर होगी तब संसार में भी सुख -शांति स्वत: आ जाएगी l
15 July 2023
WISDOM ------
बुझते दीपक को देखकर अंधकार ने ठहाका लगाया और कहा ---- " क्यों आ गया न तेरा अंत l छोटा सा दीपक और अंधकार को चुनौती देने चला था l " दीपक बोला --- " बंधु ! अंत तो इस संसार में हर एक का निश्चित है l यदि हमेशा उजाला नहीं रहता तो हमेशा अँधेरा भी नहीं रहता l प्रश्न इस बात का है कि हमने किस उदेश्य के लिए जीवन जिया और अंत में कैसी भावनाएं रखीं l मुझे संतोष है कि मैं औरों के हित जिया और औरों के हित मरा l ' ---- जार्ज बर्नार्ड शा का जब अंत निकट आ गया तो उन्होंने अपने सेक्रेटरी से कहा कि वह कोर्ट से एक वकील को बुलाएँ l वकील के आने पर उन्होंने डाक्टरों के सामने ही अपनी वसीयत लिखवाई ---- मैं जार्ज बर्नार्ड शा शपथ पूर्वक कहता हूँ कि मेरी अंतिम इच्छा है कि जब मैं इस संसार से और अपने इस भौतिक शरीर से आजाद हो जाऊं और जब मेरे शव को कब्रिस्तान ले जाया जाए तो उस वक्त मेरी शव यात्रा में प्रथम श्रेणी में पक्षी , द्वितीय में भेड़ें , मेमनें , गायें और अन्य सभी तरह के चौपाये और तृतीय में पानी में रहने वाले जीव होंगे l इन जीवों के गले में एक विशेष कार्ड बंधा होगा l जिस पर अंकित होगा ---' हे प्रभु ! हमारे हितचिन्तक जार्ज बर्नार्ड शा पर दया करना , जिसने दूसरे जीवों की रक्षा के लिए अपना जीवन निछावर कर दिया l " कहा जाता है कि अपनी इस इच्छा को लिखवाने के बाद जार्ज बर्नार्ड शा ने प्राण त्याग दिए और उनकी अंतिम इच्छा को ध्यान में रखते हुए उन्हें कब्रिस्तान तक पशु -पक्षियों के एक जुलूस के साथ पहुँचाया गया l जार्ज बर्नार्ड शा जीवन भर अंडा और मांसाहार से दूर रहे l एक बार बहुत बीमार होने पर डॉक्टर ने उन्हें अंडा और मांस का शोरबा लेने को कहा लेकिन उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया l उनके ह्रदय की संवेदना , करुणा और प्रेम संसार के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं l
14 July 2023
WISDOM -----
श्रीमद भगवद्गीता में कहा गया है कि कर्म करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है , वह जैसे चाहे वैसे कर्म कर सकता है , लेकिन उसके परिणाम से नहीं बच सकता l कर्मों का फल तो देर -सवेर भोगना ही पड़ता है l इस संसार में रहते हुए कर्मों का फल तो मिलता ही है , मृत्यु के बाद व्यक्ति की क्या गति होगी यह भी उसके कर्म ही तय करते हैं l अहंकारी सोचता है कि वह धन से सब कुछ खरीद सकता है लेकिन मृत्यु के बाद उसे कौन सा लोक मिलेगा या अतृप्त आत्मा युगों तक भटकती रहेगी ---- इस संबंध में उसका धन , पद -प्रतिष्ठा कुछ काम नहीं आते , यहाँ कर्म का और उससे जुड़ी पवित्र भावनाओं का सिक्का चलता है l एक कथा है ------ पिता की मृत्यु के बाद उसका पुत्र उनकी अस्थियों का कलश लेकर एक संत के पास गया और उनसे प्रार्थना की कि वह कोई ऐसा अनुष्ठान कर दें कि उसके पिता को उच्च लोक की प्राप्ति हो जाये l संत बोले --- " ऐसा करो कि तुम एक कलश में घी और पत्थर भरकर ले आओ और उसे पानी में डुबोकर फोड़ दो l " पुत्र ने सोचा कि यह अनुष्ठान के लिए जरुरी होगा तो उसने ऐसा ही किया l संत ने उससे पूछा ---- " घी और पत्थर का क्या हुआ ? ' वह युवक बोला ---- " महाराज ! घी तैरने लगा और पत्थर डूब गए l " संत ने कहा ---- " अब तुम किसी पंडित को ले आओ और उससे ऐसा मन्त्र पढ़ने को कहो जिससे घी डूब जाए और पत्थर ऊपर आ जाएँ l " युवक ने कहा ---- " महाराज ! क्यों मजाक करते हैं , ऐसा कैसे संभव है ? " संत बोले ---- " बेटा ! फिर ऐसा कैसे संभव है कि तुम्हारे पिता को उनके कर्मों के अतिरिक्त प्रकृति में स्थान दिला दिया जाये l यदि उन्होंने शुभ कर्म किए होंगे तो वे बिना किसी अनुष्ठान के श्रेष्ठ लोक को प्राप्त करेंगे लेकिन यदि उन्होंने अशुभ कर्म किए होंगे तो स्रष्टि की कोई शक्ति उन्हें उच्च लोक में आरुढ़ नहीं कर सकती l इसलिए इस संबंध में चिंता छोड़कर श्रेष्ठ कर्म करने में जीवन लगाओ , यही श्रेयस्कर मार्ग है l "
13 July 2023
WISDOM -----
एक वृद्धा नियम से चर्च जाती और पादरी का प्रवचन मन लगाकर सुनती , जब भगवान का नाम आता तो बुढ़िया बड़े भक्ति भाव से सिर झुकाती और जब जब शैतान का प्रसंग आता तो भी बुढ़िया उसी भाव से सिर झुकाती l पादरी चकित हुआ l उसकी उत्सुकता बड़ी l वह अपने को रोक नहीं सका l एक दिन प्रवचन समाप्त होते ही चर्च के बाहर बुढ़िया को रोक कर पूछने लगे --- माँ , परमात्मा का नाम आने पर सिर झुकाने की बात तो समझ में आती है , किन्तु शैतान का नाम आने पर जो सिर झुकाती हो यह बात समझ में नहीं आती l ' बुढ़िया बोली --- ' कौन जाने किस वक्त किससे काम पड़ जाए ? '
11 July 2023
WISDOM -----
ऋषियों का वचन है कि --- दुष्ट लोगों का साथ हमेशा दुःख देने वाला होता है l दुष्ट लोगों का कभी कोई एहसान न ले और उनकी संगत से हमेशा दूर रहे l ' दुष्ट की संगत यदि हम छोड़ भी दें , तो वे अपनी दुष्टता के कारण हमारा पीछा नहीं छोड़ते क्योंकि दूसरों को कष्ट पहुँचाना ही उनका स्वभाव होता है l ---- हकीम लुकमान ने अपने अंतिम समय में अपने बेटे को जीवनोपयोगी शिक्षा देने के लिए उसे एक कोयला और एक चन्दन का टुकड़ा लाने के लिए कहा l वह दोनों को लेकर पिता के पास पहुंचा l पिता ने दोनों को नीचे फेंक देने के लिए कहा l बेटे ने उन्हें नीचे फेंक दिया तो लुकमान ने बेटे से हाथ दिखाने के लिए कहा l फिर वह उसका कोयले वाला हाथ पकड़ कर बोले ---- "बेटा ! देखा तुमने l कोयला पकड़ते ही हाथ काला हो गया l उसे फेंक देने के बाद भी हाथ में कालिख लगी रह गई l गलत लोगों की संगति ऐसी ही दुःखदाई होती है l दूसरी ओर सज्जनों का संग इस चन्दन की लकड़ी की तरह है ---- जो साथ रहते हैं तो दुनुया भर का ज्ञान मिलता है और उनका साथ छूटने पर भी उनके विचारों की महक जीवन भर साथ रहती है l सदैव अच्छे लोगों की संगति में रहना , तुम्हारा जीवन भी सुखद रहेगा l " महाभारत में भी इसी सत्य को बताया गया है ----- दुर्योधन को तो बाल्यकाल से ही शकुनि की संगत मिली इसलिए वह उसके साथ मिलकर पांडवों के विरुद्ध छल , कपट और षडयंत्र करने लगा लेकिन पितामह भीष्म , गुरु द्रोणाचार्य , कृपाचार्य महाज्ञानी , वीर और विद्वान् थे लेकिन दुर्योधन आदि कौरवों की संगति के कारण , और दुर्योधन युवराज था उसके शासन से मिली सुविधाओं को भोगने के कारण वे उसकी हर अनीति और षड्यंत्र का मौन रहकर समर्थन करते रहे l भीष्म पितामह को तो इच्छा मृत्यु का वरदान था , जिस हस्तिनापुर साम्राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्होंने ली थी , उसी कौरव वंश का अंत उन्होंने अपनी आँखों से देखा l दुर्योधन की संगत ने उन्हें शर शैया पर पहुंचा दिया l वर्तमान समय में भी हम देखें तो अधिकांश लोग क्षणिक लाभ के लिए , अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए दुष्टों का साथ देते हैं l इसका दूरगामी परिणाम क्या होगा इसे वे समझ नहीं पाते l जब ईश्वरीय न्याय होता है तब विलाप करते हैं l
10 July 2023
WISDOM ------
संसार में अनेक धर्म और अनेक जातियाँ हैं , इन सभी में अनेक रूढ़िवादी परम्पराएँ और अन्धविश्वास हैं l रूढ़िवादिता में जकड़ा व्यक्ति सबसे पहले अपना और अपने परिवार का ही अहित करता है , वक्त के साथ बदलना नहीं चाहता l ऐसी रूढ़िवादी विचारधारा के साथ जब अहंकार भी जुड़ जाए तब स्थिति और भी विकट हो जाती है l आचार्य श्री लिखते हैं ---- यदि मान्यता उचित है तो उसे करने में कोई परहेज नहीं है लेकिन यदि वह असंगत और अनुचित है तो भले ही वह सदियों से क्यों न चली आ रही हो , उससे परहेज करना ही श्रेयस्कर है , परन्तु इसे करने में विवेक के साथ साहस की भी आवश्यकता है l हमें उचित का वरण करना चाहिए और दुराग्रही मान्यताओं को द्रढ़ता के साथ त्याग देना चाहिए l ' भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बाल -लीला के माध्यम से बताया कि हमें परंपराओं और परिपाटियों में बंधना नहीं चाहिए l ईश्वर चाहते हैं कि हम उन बेड़ियों से निकलें और विवेक व साहस का वरण करें l ----------- ' नंदबाबा इंद्र यज्ञ की तैयारी कर रहे थे l सभी गोप उसी में लगे थे l श्रीकृष्ण ने नंदबाबा से पूछा ---" यह आप क्या कर रहे हैं ? यह शास्त्र सम्मत है या लौकिक ? ' नंदबाबा बोले ---- " बेटा ! इंद्र मेघों के स्वामी हैं l उन्हें प्रसन्न करने के लिए हम यज्ञ करते हैं l यह क्रम हमारी कुल परंपरा से चला आया है l " श्रीकृष्ण बोले ---- " पिताजी ! यह त्रिविध जगत ईश्वर की स्रष्टि है , उसी की प्रेरणा से मेघ जल बरसाते हैं l इसमें भला इंद्र का क्या लेना -देना ! हम तो सदा वनवासी हैं l हम गौ व गिरिराज का भजन करें l गिरिराज को भोग लगाया जाए व उनकी प्रदक्षिणा की जाए l " नंदबाबा ने वही किया जो उनके लाड़ले पुत्र ने उन्हें विद्वतापूर्ण ढंग से समझाया l स्वर्ग के राजा इंद्र का अहंकार अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था , उस पर चोट पहुंची तो उन्होंने मेघों से कहा ---" ब्रज पर जल की अनंत राशि बरसाओ , वहां जल प्रलय आ जाए l " भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से जल प्रलय से ओत -प्रोत व्रज की रक्षा गोवर्धन धारण कर की l इंद्र का अहंकार चूर -चूर हो गया l ईश्वर अवतार लेकर अपनी लीलाओं से मानव जाति को प्रेरणा देने , उसे जीवन जीने की कला सिखाने और अपनी चेतना को विकसित करने की प्रेरणा देने के लिए ही इस धरती पर आते हैं l
5 July 2023
WISDOM ----
श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा है कि कोई भी कार्य बड़ा या छोटा नहीं होता , उस कार्य को करने के पीछे हमारी भावना क्या है , हमारे मनोभाव क्या हैं , इस पर उस का परिणाम निर्भर करता है l यज्ञ को एक सात्विक कर्म माना जाता है लेकिन उसके करने के पीछे यज्ञ करने की भावना क्या है , उसी के अनुरूप उसे परिणाम मिलता है l राम -रावण युद्ध में भगवान श्री राम और रावण दोनों ने ही युद्ध की शुरुआत यज्ञ से की थी l भगवान राम का उदेश्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश था l असुरों के आतंक से मानवता की रक्षा करना था l इसके विपरीत रावण का उदेश्य अपने अहंकार का पोषण करना था l जैसे मनोभाव थे वैसा ही परिणाम मिला श्रीराम की विजय हुई और रावण का अपने नाती -पोतों सहित अंत हुआ l पुराण में कथा है कि दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ किया l इस यज्ञ को करने का उनका एकमात्र उदेश्य अपने दंभ का प्रदर्शन करना था l परिणाम स्वरुप माता सती को उस यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी और अंततः भगवान शिव के रूद्र रूप ने उस यज्ञ को विनष्ट कर दिया l
3 July 2023
WISDOM ----
' सच्चे गुरु के लिए सैकड़ों जन्म समर्पित किए जा सकते हैं l सच्चा गुरु वहां पहुंचा देता है , जहाँ शिष्य अपने पुरुषार्थ से कभी नहीं पहुँच सकता l ' केवल गुरु का नाम लेना ही पर्याप्त नहीं है , गुरु के विचारों को अपने जीवन में उतार कर और उसके अनुरूप आचरण कर के ही सच्चा शिष्य बना जा सकता है l गुरु ही हैं जो हमारी चेतना को जगाते हैं ताकि हम अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ सकें l ---- एक प्रसंग है ---नाथ परंपरा में दीक्षित योगी माणिकनाथ के जीवन का l उन्हें अपनी सिद्धियों का बहुत अहंकार हो गया था l उनका आश्रम गुजरात में माणिक नदी के तट पर था l उन दिनों वहां के शासक अहमदशाह थे , वे अपने नाम पर ' अहमदाबाद ' नगर बसाना चाहते थे , इसके लिए उस स्थान का चयन हुआ जहाँ माणिकनाथ का आश्रम था l जब आश्रम के सामने निर्माण कार्य शुरू हुआ तो माणिकनाथ को बहुत गुस्सा आया कि यदि कोई निर्माण कार्य करना था तो हम से पूछ लिया होता l बिना पूछे करने से योगी का अपमान होता है l अब वे अपनी सिद्धियों के बल पर निर्माण कार्य में रूकावट डालने लगे l सुल्तान परेशान होकर उनके पास गए , उनकी बहुत प्रशंसा की और कहा आप तो सिद्धियों के स्वामी है , कार्य में अड़चन डालना आपको शोभा नहीं देता l अपनी प्रशंसा सुनकर योगीजी का अहंकार और बढ़ गया l वे कहने लगे --मैं चाहूँ तो आकाश में उड़ जाऊं , मैं चाहूँ तो तुम्हारे सामने रखे इस गंगासागर लोटे में समा जाऊं , तुमने मेरा अपमान किया ! सुलतान चतुर थे , उन्होंने कहा --- इतनी बड़ी काया और इतना छोटा सा लोटा , आप कैसे इसमें समा सकते हैं , हमें दिखाइए l सुलतान ने उनकी तारीफ़ कर के उन्हें उकसाया l योगी माणिक नाथ भी फूले नहीं समाये l अपनी सिद्धियों का प्रयोग कर के उन्होंने अपने को एकदम लघु बना लिया और लोटे में प्रवेश कर गए l सुल्तान ने अपने दीवान को इशारा किया कि लोटे का मुँह बंद कर दो l अब तो योगी लोटे में बंद बड़ी मुश्किल में फंस गए l अन्दर से धमकी देने लग गए कि मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा , राज्य को नष्ट कर दूंगा l जब सुल्तान नहीं माने तो योगी ने कहा --- सावधान ! मैं लोटा फोड़कर बाहर आ रहा हूँ और तुम्हे सबक सिखाऊंगा l माणिक नाथ वज्रास्त्र का प्रयोग करने को तत्पर हुए , लेकिन यह क्या ! वे तो सब सिद्धियाँ भूल गए क्योंकि उनके गुरु ने उनको पहले ही समझा दिया था कि सामान्य मनुष्य हो या योगी , उसे अहंकार से दूर रहना चाहिए , यदि तुम अहंकार प्रदर्शन करोगे तो संपूर्ण विद्या भूल जाओगे l अपनी ऐसी हालत देखकर योगी रो पड़े और अपने गुरु गोरखनाथ जी का स्मरण किया l बाबा गोरखनाथ जी उनके लोटे में प्रकट हुए और कहा --- अहंकार उचित नहीं है , सुल्तान के काम में विध्न पैदा न करो l इतना कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए l माणिक नाथ ने सुल्तान से निवेदन किया कि लोटे का मुँह खोल दो , मेरे गुरु मुझे समझा गए , अब मैं तुम्हारे कार्य में बाधा नहीं डालूँगा l सुल्तान के संकेत पर लोटे का मुँह खोल दिया गया , वे उससे बाहर आ गए l सुल्तान उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे l योगी ने उन्हें अभयदान और आशीर्वाद दिया l इसके बाद उसी स्थान पर उन्होंने अपने शरीर का परित्याग कर दिया l उनकी स्मृति में सुलतान ने नगर के परकोटे के एक बुर्ज का नाम माणिक बुर्ज और नगर के मुख्य चौक का नाम माणिक चौक रखा l अहमदाबाद का माणिक बुर्ज और माणिक चौक आज भी योगी माणिकनाथ की याद दिलाते हैं l
1 July 2023
WISDOM --
1 . शिष्य ने पूछा --- " काँसा आवाज करता है , सोना क्यों नहीं ? " गुरु ने उत्तर दिया --- " आडंबर की आवश्यकता निस्सार वस्तुओं को ही पड़ती है l जिनके पास स्व -अर्जित ज्ञान होता है , उन्हें व्यर्थ हल्ला करने की आवश्यकता नहीं होती l "
WISDOM ----
लघु कथा ----गिरगिट , कछुए और गिलहरी में वार्तालाप चल रहा था l अपनी शेखी बघारते हुए गिरगिट बोला ---- "देखो ! मैं कितना चतुर हूँ , जब चाहे अपना रंग बदल लेता हूँ और मेरी असलियत कोई नहीं जान पाता l " कछुआ कहाँ पीछे रहने वाला था , वो कहने लगा ---- " " अरे मित्रों ! मेरी जैसी विशेषता तो किसी में भी नहीं है l बाहर नगाड़े पिटते रहें , पर एक बार मैं अपने खोल में समा जाता हूँ तो मैं अलग और जमाना अलग l " गिलहरी बोली ---- " भाइयों ! मैं तुम दोनों की तरह स्वार्थी और अवसरवादी तो नहीं कि अपने को दुनिया से अलग मानने और मौका देखकर रंग बदलने को कोई गुण मानूँ l मुझे इतना पता है कि ऊँचे उदेश्य के लिए कार्य करने वाली मेरी ही जैसी गिलहरी की पीठ पर भगवान के हाथ पड़े थे l मेरी पीठ पर जो तीन रेखाएं तुम देख रहे हो , वह उन्हीं सत्कार्यों के लिए ईश्वर का वरदान है , जो पीढ़ी -दर -पीढ़ी हमारे साथ चला आ रहा है l " गिरगिट और कछुए के सिर यह सुनकर शरम से झुक गए l