आज संसार में अशांति है , कोहराम मचा है , इसके कारण देखें तो अनेक हैं लेकिन हमें समस्या पर नहीं , समाधान पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है --- " सभी समस्याओं का एकमात्र हल है ----- संवेदना l जिसके हृदय में संवेदना है , वह कभी किसी को कष्ट देने की बात सोच भी नहीं सकता l " आज संवेदना का ही अभाव है इसलिए युद्ध , तबाही जैसी दिल दहला देने वाली घटनाएं हो रही हैं l इन सबके मूल में एक कारण है कि संसार में धन - वैभव के आधार पर ही व्यक्ति और राष्ट्र को श्रेष्ठ माना जाता है , नैतिक मूल्यों का , मानवता का कहीं कोई स्थान नहीं है l इस कारण जीवन का हर क्षेत्र अंधकार और तनाव से भर गया है l हर व्यक्ति धन कमाने की अंधी दौड़ में भाग रहा है , उसका तरीका चाहे जो भी हो l कहते हैं हमारे विचारों में बहुत शक्ति है , जैसे हम विचार करते हैं , वैसे ही तत्वों को हम आकाश से आमंत्रित करते हैं l जब लोभ , लालच , स्वार्थ , उचित - अनुचित हर तरीके से अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा के विचार जब पूरे संसार में होंगे तो उसका दुष्परिणाम क्या होगा ? इसे इस ढंग से समझ सकते हैं ------ दवा , वैक्सीन आदि बनाने वाली कंपनियों को लाभ तभी होगा , जब वे दवाइयाँ बिकेंगी , और दवाइयाँ तभी बिकेंगी जब लोग बीमार होंगे l निरंतर ऐसे चिंतन से कि अधिक से अधिक लाभ हो , आकाश से वैसे ही आसुरी तत्व आकर्षित होते हैं , उनकी मदद करते हैं , इसका परिणाम होता है संसार एक से बढ़कर एक बीमारियों के चंगुल में फँस जाता है l इसी तरह हथियार , युद्ध सामग्री देश की सुरक्षा , के लिए जरुरी है लेकिन जब इससे अधिकाधिक लाभ कमाने का , लालच का भाव मन में आ जायेगा तो यह तभी संभव है जब इनका अधिकाधिक इस्तेमाल हो , उनकी बाजार में मांग बढे ---- युद्ध , दंगे इसी का परिणाम है l धन जीवन के लिए जरुरी लेकिन अरबपति --- और --- खरबपति ---- और ---- बनने की दौड़ ही संसार में अशांति उत्पन्न करती है l अति का लालच , लोक कल्याण की भावना को मिटा देता है l विचारों का परिष्कार जरुरी है l
1 March 2022
WISDOM ----
कभीी ऐसा वक्त आता है कि स्वयं को विकसित , सभ्य और आधुनिक कहने वाले व्यक्ति हों या राष्ट्र हों , उनकी असलियत , उनका असली चेहरा संसार के सामने आ जाता है l जो मुखौटा लगाकर वे अपने को सर्वश्रेष्ठ बताते थे , उन्ही की गलतियों के कारण उनका यह मुखौटा खिसक गया और उनका असली चेहरा सामने आ गया l अब विद्वानों और अर्थशास्त्रियों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई , विकसित देशों को कैसे परिभाषित करें ? जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय , राष्ट्रीय आय अधिक है और वे दूसरे देश पर आक्रमण करते हैं , लोगों का सुख - चैन छीनते हैं , निर्दोष बच्चों को भी नहीं छोड़ते , पर्यावरण प्रदूषित करते हैं , यदि यही सभ्यता का पैमाना है , विकास की परिभाषा है तो ये विकास उन्हीं को मुबारक ! हम जैसे हैं , बहुत अच्छे हैं l