8 April 2022

WISDOM -----

   श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं ----- ज्ञान  से  नौका  तो  पार  की  जा  सकती  है  पर  रूपांतरण  संभव  नहीं   l   भावनात्मक  रूपांतरण  तो  मात्र  भक्ति  से  ही   संभव  है  l    मात्र    कोरे  ज्ञान  से  यह  संभव  नहीं  , हृदय  परिवर्तन  होना  जरुरी  है  l   भगवान  कहते  हैं --- दुराचारी  से  दुराचारी  व्यक्ति  भी  ठान  ले  कि   प्रभु   मेरे हैं  , मैं  उनका  हूँ  ,  उनका  अंश  होने  के  नाते  अब  मुझसे  कोई  गलत  कार्य  नहीं  होगा   तो  वे  उसे  भी  तार  देते   हैं  l   अनन्य   भाव से  भगवान  को  भजने   से   जीवन  की  राह   बदल जाती  है   l   अंगुलिमाल  डाकू   अनेक  नागरिकों  की  उँगलियाँ  काटकर  उनकी  माला  पहन  कर  घूमता  था  ,  प्रसेनजित  की  सेनाएं  भी  उससे  हार  मान  गई  थीं   तब  उसके  पास  चलकर  गौतम  बुद्ध    आए ,  अंगुलिमाल  ने  उनसे   बार -बार  रुकने  को  कहा   तब  तथागत  बोले ---- ' रुकना  तो  तुझे  है  पुत्र ,  भाग  तो  तू  रहा  है  --अपनी  जिंदगी  से  , अपने  आप  से , अपने  भगवान   से   l   वह  कुछ  समझ  पाता  तब  तक   भगवान  बुद्ध  ने  उसके  नजदीक  जाकर  उसे  अपने  गले  लगा  लिया   l   अंगुलिमाल  को  लोग  ऊँगली  दिखा - दिखाकर  ताना   मारते   थे  , जिससे  उसके  मन  में   एक  ग्रंथि  बन  गई  थी  l  पहली  बार  उसे  सच्चा  प्यार  मिला   l   बुद्ध  ने  उसे  संघ  में  शामिल  कर  लिया   l   खतरनाक  डाकू  को  संघ  में  शामिल   करने से  संघ  की  बुराई  होने  लगी   l   कुछ  तो  मन  ही  मन  उसे  मार  डालने  का  भी  सोचने  लगे   l   सब  भिक्षुओं  ने  अपनी  बात  भगवान  के  सामने  रखी  कि   इसके  कारण  संघ  की  बदनामी  हो  रही  है   l   बुद्ध  बोले --- ' वह  पूर्व  में  डाकू  था  ,  अब  भिक्षु  है  ,  पर  अब  तुम  में  से   बहुत  सारे  डाकू  बनने  की  दिशा  में  चल  रहे  हो   l   उसे  मार  डालने  की  सोच  रहे  हो     उन  सब  को  जवाब  देने  का  सोचकर  उन्होंने   अंगुलिमाल   को    भिक्षा  लेने  भेजा   l   लोगो  में  उसके  लिए  बहुत  गुस्सा  था ,  उसे  बहुत  पत्थर  मारे  जिससे   वो मूर्च्छित  होकर   गिर पड़ा  l   और  तो  कोई  नहीं  आया  उसके  पास , स्वयं   भगवान बुद्ध  आए ,  उसकी  सेवा  की   l    जब उसे  होश  आया  तो  उससे  कहा --- " तुम  एक   घुड़की  दे  देते  ,  सब  भाग  जाते  ,  क्यों  मार  खाते   रहे   l  " अंगुलिमाल  बोला ---- "  प्रभु  !  कल  तक  मैं  बेहोश  था  ,  आज  ये  बेहोश  हैं  l  "