श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ----- ज्ञान से नौका तो पार की जा सकती है पर रूपांतरण संभव नहीं l भावनात्मक रूपांतरण तो मात्र भक्ति से ही संभव है l मात्र कोरे ज्ञान से यह संभव नहीं , हृदय परिवर्तन होना जरुरी है l भगवान कहते हैं --- दुराचारी से दुराचारी व्यक्ति भी ठान ले कि प्रभु मेरे हैं , मैं उनका हूँ , उनका अंश होने के नाते अब मुझसे कोई गलत कार्य नहीं होगा तो वे उसे भी तार देते हैं l अनन्य भाव से भगवान को भजने से जीवन की राह बदल जाती है l अंगुलिमाल डाकू अनेक नागरिकों की उँगलियाँ काटकर उनकी माला पहन कर घूमता था , प्रसेनजित की सेनाएं भी उससे हार मान गई थीं तब उसके पास चलकर गौतम बुद्ध आए , अंगुलिमाल ने उनसे बार -बार रुकने को कहा तब तथागत बोले ---- ' रुकना तो तुझे है पुत्र , भाग तो तू रहा है --अपनी जिंदगी से , अपने आप से , अपने भगवान से l वह कुछ समझ पाता तब तक भगवान बुद्ध ने उसके नजदीक जाकर उसे अपने गले लगा लिया l अंगुलिमाल को लोग ऊँगली दिखा - दिखाकर ताना मारते थे , जिससे उसके मन में एक ग्रंथि बन गई थी l पहली बार उसे सच्चा प्यार मिला l बुद्ध ने उसे संघ में शामिल कर लिया l खतरनाक डाकू को संघ में शामिल करने से संघ की बुराई होने लगी l कुछ तो मन ही मन उसे मार डालने का भी सोचने लगे l सब भिक्षुओं ने अपनी बात भगवान के सामने रखी कि इसके कारण संघ की बदनामी हो रही है l बुद्ध बोले --- ' वह पूर्व में डाकू था , अब भिक्षु है , पर अब तुम में से बहुत सारे डाकू बनने की दिशा में चल रहे हो l उसे मार डालने की सोच रहे हो उन सब को जवाब देने का सोचकर उन्होंने अंगुलिमाल को भिक्षा लेने भेजा l लोगो में उसके लिए बहुत गुस्सा था , उसे बहुत पत्थर मारे जिससे वो मूर्च्छित होकर गिर पड़ा l और तो कोई नहीं आया उसके पास , स्वयं भगवान बुद्ध आए , उसकी सेवा की l जब उसे होश आया तो उससे कहा --- " तुम एक घुड़की दे देते , सब भाग जाते , क्यों मार खाते रहे l " अंगुलिमाल बोला ---- " प्रभु ! कल तक मैं बेहोश था , आज ये बेहोश हैं l "