2 May 2022

WISDOM ------

 श्रीमद् भगवद्गीता  में  अर्जुन  ने   भगवान  से  पूछा ---- मैं  किस -किस  भाव  में  आपको  खोजूं  ?  कैसे  देखूं  ?   तो  भगवान  कहते  हैं --- उनके  लिए  कोई  निकृष्ट - श्रेष्ठ  नहीं  , कोई  छोटा - बड़ा  नहीं   l वह  तो  सभी  में  हैं , हर  स्थान  पर  हैं   l '  लेकिन  भगवान  को  पहचाने  कैसे  ?    भगवान  कहते  हैं -- जहाँ  कोई  व्यक्तित्व  पूरी  खिलावट  में  है  वही  ईश्वर  है   l  '  आचार्य श्री  लिखते  हैं  --  मान   लो  कहीं  पर  एक  बीज  पड़ा  है ,  और  वहीँ  पास  में  एक  फूल  पड़ा  है    तो  बीज  को  देखना  कठिन  है  लेकिन  फूल  को  पहचानना  आसान  है   क्योंकि  वहां  पर  व्यक्तित्व   खिला   हुआ  है   , सम्पूर्ण  विकसित  है  l    महाभारत  की  कथा  है --- जब  युद्ध  में    सभी  योद्धा  मारे   गए  तब  अंत  में    दुर्योधन   और  भीम  में  द्वंद  युद्ध  होना  था   l  दुर्योधन  अपनी  माँ  गांधारी  के  तपोबल  को  जानता  था  l  पतिव्रत  धर्म  से  उन्होंने  जो  बल  अर्जित  किया  था  ,  उसका  एक  अंश  वह  चाहता  था   l  गांधारी  ने  अनीति  का  कभी  साथ  नहीं  दिया  ,   लेकिन    पुत्र  प्रेमवश  उन्होंने  कहा  --- " तू  निर्वस्त्र  होकर  आ  ,  मैं   आँख  की  पट्टी  थोड़ी  देर  के  लिए  खोलूंगी   l  तू  खड़े  रहना  l  "  श्रीकृष्ण   से  कुछ  छुपा  नहीं  है  ,  जब  दुर्योधन  जा  रहा  था  तो  राह  में  उन्होंने  उसे  रोक  लिया   और  कहा ---- " दुर्योधन  !  तुम  इस  तरह  वस्त्रहीन  होकर  कहाँ  जा  रहे  हो   ?  उसने  कहा -- माँ  के  पास  l  भगवान  ने  कहा --- थोड़ी  तो  शर्म  करो  l  माँ  के  सामने  तुम  इतने  बड़े  वस्त्रहीन  खड़े  होगे  ,  अच्छा  लगेगा  क्या  ? लंगोटी  लगा  लो , पत्ता  लपेट  लो   l  "  उसे  सलाह  समझ  में  आ  गई    दुर्योधन  लंगोटी  पहनकर  माँ  के  सामने  खड़ा  हुआ  ,  गांधारी  ने  आँखें  खोली  ,  देखा  पूरा  शरीर  वज्र  का  नहीं  हो  पाया  l  वे  श्रीकृष्ण  की  लीला  को  समझ  गईं  कि  पुत्र  का  वध  होगा  और  कुल  का  सर्वनाश  l   अनीति  का  ऐसा  ही  अंत  होता  है   l   भीम  और  दुर्योधन  के  द्वंद  युद्ध  में  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  भीम  को  इशारा  किया   कि  गदा  वहीँ  मारनी  है  जो  हिस्सा  कमजोर  है  ,  जहाँ  परमात्मा  का  प्रकाश  नहीं  है  l   दुर्योधन  अनीति  , अधर्म   पर  था   इसलिए  गांधारी  के  तप  का  तेज   उसे  पूर्ण  रूप  से  नहीं  मिल  पाया   l  यही  सत्य  है   कि  नीति  और  सत्य  की  राह  पर   चलने  वाले  को  ही  परमात्मा  का  प्रकाश ,  उनकी  कृपा  मिल  पाती  है  l