23 May 2021
WISDOM------ भगवान तीन रूप में मनुष्य को दर्शन देते हैं ---- सर्जक , पोषक और संहारक
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- 'भगवान तीन रूप में दर्शन देते हैं ----- सर्जक , पोषक और संहारक l जो उनको सर्जक और पोषक के रूप में देखने को तैयार नहीं होते उनको वे संहारक के रूप में ही दर्शन देते हैं l एक प्रसंग है ----- बम्बई के एक बड़े सेठ थे l वे ईश्वर पर विश्वास नहीं करते थे l जब उनकी पत्नी उनसे कहतीं कि कभी ईश्वर का स्मरण किया करो तो वे कहते कि मुझे पूजा - पाठ की घंटी की अपेक्षा टेलीफोन की घण्टी विशेष मधुर जान पड़ती है क्योंकि उससे पैसा मिलता है l ' एक बार सेठानी के आग्रह पर एक महात्मा उनके घर आए l सेठजी ने महात्मा से यही कहा कि मुझे तो भगवान कहीं मिले नहीं , अन्यथा मैं उनसे बातें करता l तब महात्मा ने कहा --- तुम उन्हें सर्जक और पोषक के रूप में नहीं मानते तो वे तुम्हे संहारक के रूप में दर्शन देंगे , तब तुम मुझे याद करना l " कुछ दिनों बाद सेठ को बम्बई से दिल्ली जाना पड़ा l ट्रेन में वे अपनी सीट पर लेटे थोड़ी देर में उन्हें नींद आ गई , स्वपन में उन्होंने देखा ----- भगवान का दरबार लगा है , चित्रगुप्त महाराज ने उनका नाम पुकारा , फिर भगवान से कहा --- भगवान ! इसका खाता तो बिलकुल कोरा है , इसने न तो सत्कर्म किये और न दुष्कर्म और आपके अस्तित्व से भी इंकार किया l ' भगवान सोचने लगे कि इस बेवकूफ का क्या करें , कहाँ जन्म दें ? उन्होंने चित्रगुप्त महाराज से कहा --- इसे कोरा जन्म दो , देह धारण कर ये सिर्फ पैसा कमाए , नींद , आराम के इसे जरुरत ही न रहे जीवन में आनंद , उल्लास भी न हो l अमावस की रात्रि जब यह ट्रेन में यात्रा करे तो दुर्घटना में इसकी मृत्यु हो जाये l ' वे हड़बड़ाकर उठ गए लेकिन कुछ ही देर में उनका सपना सच हो गया , बड़ौदा के आगे उनकी ट्रेन का भयंकर एक्सीडेंट हो गया पूरे वातावरण में चीत्कार -हाहाकार मच गया l सेठ भी घायल हो गए उन्हें बेहोशी आ रही थी ; उन्होंने फिर चित्रगुप्त को भगवान के दरबार में खाता पढ़ते देखा , उन्होंने भगवान से कहा ----' भगवान , मैंने आपके संहारक के रूप में दर्शन किये , मेरी गलती क्षमा करो और मुझे दयामय प्रभु के रूप में दर्शन दो जिससे मेरे मन को शांति मिले l भगवान ने कहा --- वत्स ! तेरी सम्पति का तू स्वामी नहीं , व्यवस्थापक है , लोक कल्याण के लिए उसका उपयोग कर , तो तुझे मेरे दयालु रूप के भी दर्शन होंगे l " सेठ की आँख खुली तो देखा कि वे घायल अस्पताल में पड़े हैं l दस दिन अस्पताल में रहने के बाद वे घर पहुंचे तो सबसे पहले उन्होंने अपने नास्तिक होने की क्षमा मांगी , अब वे आस्तिक हो गए और उन्होंने अपना धन और जीवन लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया l
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