संसार के सारे सुख हमें इसी शरीर से मिल सकते हैं , लेकिन यदि शरीर ही अस्वस्थ है , रोग से घिरा हुआ है तो सारे सुख उपलब्ध होते हुए भी हम उनका उपभोग नहीं कर पाएंगे l
आयुर्वेद के अनुसार वात , पित्त और कफ के कुपित होने के परिणाम को ही रोग कहते हैं , किन्तु इनमे से किसी का प्रकोप तब होता है जब व्यक्ति विषम तथा अनुचित , अन्नपान , अनुपान , अशास्त्रीय आचार एवं जीवन की गतिविधियों में असावधानी बरतता है l
मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है ---- भूमि , जल , अग्नि , वायु और आकाश l जिस देश में हमारा जन्म हुआ है , हमारा शरीर उसी की प्रकृति के अनुकूल है l जैसे हमारा जन्म भारत में हुआ है तो यहीं के खाद , बीज से तैयार अन्न , फल , सब्जी हमें फायदा करेगी , इसी भूमि में प्राप्त कच्चे माल से तैयार दवाइयाँ आदि विभिन्न पदार्थ हमारे शरीर के अनुकूल होंगे लेकिन यदि हम दूसरे देशों के खाद , बीज से उगी हुई सब्जी , फल , अन्न आदि का उपयोग करेंगे , दूसरे देशों की दवा , आदि सामग्री का उपयोग करेंगे तो शरीर पर उनका साइड इफेक्ट अवश्य होगा l यही कारण है कि देश में ऐसे असंख्य लोग मिलेंगे जो नशा नहीं करते , गुटका नहीं खाते , संयम से रहते हैं , उनके आचार - विचार सही हैं , सेवा - परोपकार भी करते हैं फिर भी कैंसर आदि किसी न किसी भयानक रोग से ग्रस्त हैं l
इसका कारण है -- विषमता या अनुचित l हमारा शरीर जिस प्रकृति का बना हुआ है , उसमे हमने अन्य देशों के ऐसे पदार्थों को डाल दिया जो हमारी प्रकृति से मेल नहीं खाते l इसलिए हम कभी भी पूर्ण स्वस्थ नहीं हो पाते l एक न एक बीमारी बनी रहती है l
संसार के प्रत्येक देश के लोगों को यदि स्वस्थ रहना है , ईश्वर ने हमें जो सुख - सुविधाएँ दी हैं , उनका उपभोग करना है तो जागरूक होना होगा l प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति है , अपने चिकित्सा के तरीके हैं , अपनी ही प्रकृति की ओर लौटना होगा l आपस का मेलजोल अच्छा है लेकिन जो आधार है , नींव है , वह वही हो जहाँ हम पैदा हुए हैं l
आयुर्वेद के अनुसार वात , पित्त और कफ के कुपित होने के परिणाम को ही रोग कहते हैं , किन्तु इनमे से किसी का प्रकोप तब होता है जब व्यक्ति विषम तथा अनुचित , अन्नपान , अनुपान , अशास्त्रीय आचार एवं जीवन की गतिविधियों में असावधानी बरतता है l
मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है ---- भूमि , जल , अग्नि , वायु और आकाश l जिस देश में हमारा जन्म हुआ है , हमारा शरीर उसी की प्रकृति के अनुकूल है l जैसे हमारा जन्म भारत में हुआ है तो यहीं के खाद , बीज से तैयार अन्न , फल , सब्जी हमें फायदा करेगी , इसी भूमि में प्राप्त कच्चे माल से तैयार दवाइयाँ आदि विभिन्न पदार्थ हमारे शरीर के अनुकूल होंगे लेकिन यदि हम दूसरे देशों के खाद , बीज से उगी हुई सब्जी , फल , अन्न आदि का उपयोग करेंगे , दूसरे देशों की दवा , आदि सामग्री का उपयोग करेंगे तो शरीर पर उनका साइड इफेक्ट अवश्य होगा l यही कारण है कि देश में ऐसे असंख्य लोग मिलेंगे जो नशा नहीं करते , गुटका नहीं खाते , संयम से रहते हैं , उनके आचार - विचार सही हैं , सेवा - परोपकार भी करते हैं फिर भी कैंसर आदि किसी न किसी भयानक रोग से ग्रस्त हैं l
इसका कारण है -- विषमता या अनुचित l हमारा शरीर जिस प्रकृति का बना हुआ है , उसमे हमने अन्य देशों के ऐसे पदार्थों को डाल दिया जो हमारी प्रकृति से मेल नहीं खाते l इसलिए हम कभी भी पूर्ण स्वस्थ नहीं हो पाते l एक न एक बीमारी बनी रहती है l
संसार के प्रत्येक देश के लोगों को यदि स्वस्थ रहना है , ईश्वर ने हमें जो सुख - सुविधाएँ दी हैं , उनका उपभोग करना है तो जागरूक होना होगा l प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति है , अपने चिकित्सा के तरीके हैं , अपनी ही प्रकृति की ओर लौटना होगा l आपस का मेलजोल अच्छा है लेकिन जो आधार है , नींव है , वह वही हो जहाँ हम पैदा हुए हैं l