13 May 2020

WISDOM ------ स्वस्थ रहना है , तो ' स्वदेशी ' को अपनाना होगा

  संसार  के  सारे  सुख  हमें  इसी  शरीर  से  मिल  सकते  हैं  ,  लेकिन  यदि  शरीर  ही  अस्वस्थ  है , रोग  से  घिरा  हुआ  है    तो   सारे  सुख  उपलब्ध  होते  हुए  भी  हम  उनका  उपभोग  नहीं  कर  पाएंगे  l
आयुर्वेद   के  अनुसार  वात  , पित्त  और  कफ   के  कुपित  होने  के   परिणाम    को  ही   रोग  कहते  हैं  ,  किन्तु  इनमे  से  किसी   का  प्रकोप  तब  होता  है  जब  व्यक्ति    विषम  तथा  अनुचित  ,     अन्नपान ,  अनुपान ,  अशास्त्रीय  आचार  एवं   जीवन  की  गतिविधियों  में  असावधानी  बरतता  है   l 
  मनुष्य   का  शरीर  पांच  तत्वों  से  मिलकर  बना  है ---- भूमि , जल , अग्नि , वायु  और  आकाश  l   जिस  देश  में  हमारा  जन्म  हुआ  है  ,  हमारा  शरीर  उसी  की  प्रकृति  के  अनुकूल  है   l  जैसे  हमारा  जन्म  भारत  में  हुआ  है   तो  यहीं  के  खाद , बीज  से   तैयार  अन्न , फल , सब्जी  हमें  फायदा  करेगी ,  इसी  भूमि  में  प्राप्त  कच्चे  माल  से  तैयार   दवाइयाँ  आदि  विभिन्न  पदार्थ  हमारे  शरीर  के  अनुकूल  होंगे  लेकिन  यदि  हम   दूसरे  देशों   के  खाद , बीज  से   उगी  हुई  सब्जी , फल , अन्न  आदि  का  उपयोग  करेंगे  ,  दूसरे  देशों  की  दवा ,  आदि  सामग्री  का  उपयोग  करेंगे  तो  शरीर  पर  उनका  साइड  इफेक्ट  अवश्य  होगा  l   यही  कारण  है   कि   देश  में  ऐसे  असंख्य  लोग  मिलेंगे  जो  नशा  नहीं  करते ,  गुटका  नहीं  खाते ,  संयम  से  रहते  हैं  ,  उनके   आचार  - विचार  सही  हैं ,  सेवा - परोपकार  भी  करते  हैं   फिर  भी  कैंसर   आदि  किसी  न  किसी  भयानक  रोग  से  ग्रस्त  हैं  l
  इसका  कारण  है  --  विषमता  या  अनुचित   l   हमारा  शरीर  जिस  प्रकृति  का  बना  हुआ  है  ,  उसमे  हमने  अन्य  देशों  के  ऐसे  पदार्थों  को  डाल   दिया  जो  हमारी  प्रकृति  से  मेल  नहीं   खाते  l   इसलिए  हम  कभी  भी  पूर्ण  स्वस्थ  नहीं  हो  पाते  l   एक  न  एक  बीमारी  बनी    रहती  है   l 
संसार  के  प्रत्येक  देश  के  लोगों  को   यदि  स्वस्थ  रहना  है  ,  ईश्वर  ने  हमें  जो  सुख - सुविधाएँ  दी  हैं ,  उनका     उपभोग  करना  है   तो    जागरूक  होना  होगा   l  प्रत्येक  देश  की  अपनी  संस्कृति  है  ,  अपने  चिकित्सा  के  तरीके  हैं  ,  अपनी  ही   प्रकृति  की  ओर   लौटना  होगा  l  आपस  का  मेलजोल  अच्छा  है  लेकिन    जो  आधार  है  , नींव  है  , वह   वही  हो   जहाँ  हम  पैदा  हुए  हैं   l 

WISDOM -----

    महाभारत  एक  दूसरे  को  सम्मान  न  दे  पाने  की  भीषण  प्रतिक्रिया  के  रूप  में  ही   उभरा  था   l   बचपन  में  दुर्योधन  राजमद  में   पांडवों  को  सम्मान  न  दे  सका   l   भीम  सहज  प्रतिक्रिया  के  रूप  में   अपने  बल  का  उपयोग  कर  के   उन्हें  अपमानित - तिरस्कृत  करने  लगे   l
द्रोपदी  सहज  परिहास  में  भूल  गई   कि   दुर्योधन  को   '  अंधों  के  अंधे  '  सम्बोधन  से  अपमान  का  अनुभव  हो  सकता  है   l   दुर्योधन  द्वेषवश  नारी  के  शील  का  महत्व   ही  भूल  गया   और  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  करने  पर  उतारू  हो  गया   l   यही  सब  कारण  जुड़ते  गए   तथा  छोटी - छोटी   शिष्टाचार  की  त्रुटियों   की  चिनगारियाँ   भीषण  ज्वाला  बन  गईं   l
यदि  परस्पर  सम्मान  का  ध्यान  रखा  जा  सका  होता  ,  अशिष्टता  पर  अंकुश  रखा  जाता  ,  तो  स्नेह  बनाये  रखने  में  कोई  कठिनाई  नहीं  होती   l  भीष्म  पितामह  और  वासुदेव  जैसे  युग - पुरुषों  का  लाभ  मिल  जाता   l   वह  पूरा  काल - खंड   छल - छद्द्म ,  षड्यंत्र  और   भाई - भाई  के  आपसी  झगड़ों  में  ही  व्यतीत  हो  गया   l
महाभारत  के  विभिन्न  प्रसंग  हमें  शिक्षा  देते  हैं  कि  हम  आपस  में  झगड़कर  अपना  ही  नुकसान  करते  हैं   l  अनमोल  जीवन  को  व्यर्थ  में  गँवा  देते  हैं   l