29 September 2020

WISDOM -------

 इनसान   बनना  बहुत  कठिन  है  ,  लेकिन  पशु  बनना  , पाशविक  कार्य  करना  बहुत  सरल  है   l    और  ऐसा  कर  के  मनुष्य  अपनी  ही  जाति,   अपनी  ही  संस्कृति   और   अपने  ही  देश  के  गौरव  को  कलंकित   करता  है  l 

लंदन   प्रवास  में  एक  सभा  के  बीच  जब  स्वामी  विवेकानंद  भारत  के  गौरव  का  वर्णन  कर  रहे  थे  ,  तब  एक   आलोचक  ने  उठकर  पूछ  लिया  ---- " भारत  के  हिन्दुओं  ने  क्या  किया  है   ?  वे  आज  तक  किसी  जाति   पर  विजय  प्राप्त  नहीं  कर  सके  l "  तब  स्वामीजी  ने  कहा --- " नहीं  कर  सके  नहीं  ,  कहिए   कि   उन्होंने   की  नहीं  l  यही  हिन्दू  जाति       का    गौरव  है   कि   उसने  कभी  दूसरी  जाति   के  रक्त  से  पृथ्वी  को  रंजित   नहीं  किया   l   वे  दूसरों  के  देश  पर  अधिकार  क्यों  करेंगे   l   भारत  को  भगवान  ने   दाता   के  महिमामय  आसन   पर  प्रतिष्ठित   किया   l   वह  देगा  की  छीनेगा   ?  भारतवासी  आप  लोगों  की  तरह  रक्तपिपासु  दस्यु  नहीं   थे   l   इसलिए  मैं  अपने  पूर्वजों  के  गौरव  से   स्वयं  को  गौरवान्वित  महसूस  करता  हूँ    l "   ऐसा  जवाब  योद्धा  संन्यासी    स्वामी  विवेकानंद   ही   दे  सकते  थे  l 

WISDOM ----- प्राणी का आंतरिक स्तर उठाए बिना उसे उत्तम स्थिति में नहीं पहुँचाया जा सकता ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

      भौतिक  प्रगति  के  साथ  चेतना   का स्तर  भी   उच्च हो  l      एक  कथा  है  --- देवर्षि  नारद  सबका  सुख - दुःख  जानने  के  लिए   संसार  में  भ्रमण  करते  हैं  l   उनकी  इच्छा  हुई  कि   पृथ्वी  पर  जो  प्राणी  घिनौना  , नारकीय  जीवन जीवन  जी  रहे  हैं  , उन्हें  स्वर्ग  पहुंचा  दें  l   इस  क्रम  में  उन्होंने  सबसे  पहले  कीचड़  में   लोटते  , गंदगी  चाटते   सुअर   को  देखा  ,  उन्हें  बड़ी  दया  आई  l  नारद जी  ने  उससे  कहा  --- ' ऐसा  जीवन  किस  काम  का  ! चलो  हम  तुम्हे  स्वर्ग  पहुंचा  देते  हैं  l '  नारद जी  की  बात  सुनकर  वाराह  तैयार  हो  गया   l   रास्ते  में  उसने  पूछ  ही  लिया  ---- " वहां  खाने , भोगने  और  लोटने   के  क्या  साधन  हैं  l "  नारद जी   वहां  के  सब  सुख  बताने  लगे ,  वह  बीच  में  ही  पूछ  बैठा --- " महाराज  !   वहां  खाने  के  लिए  गंदगी , लोटने   के  लिए  कीचड़   और  साथ  में  क्रीड़ा - कल्लोल  हेतु   वाराह  कुल  वहां  है  या  नहीं  l  '  महर्षि  ने  कहा  ---- "  मूर्ख  !  इन  चीजों  की  वहां  क्या  जरुरत  है  l   वहां  तो  देवताओं  के  अनुरूप  स्वर्ग  का   वातावरण  है  l "  वाराह   ने   आगे  बढ़ने  से  मना   कर    दिया   और  कहा -- 'जहाँ  ये  सब  नहीं  ,    वहां  जाकर   मैं  क्या  करूँगा  l "  देवर्षि  ने  अपना  सिर   पीट  लिया  ,  वे  समझ  गए   कि  जब  तक  आंतरिक  स्तर   उच्च  नहीं  है  ,  प्राणी  को  उच्च  स्थिति  में  पहुँचाना    व्यर्थ  है  l