2 December 2020

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' हर  व्यक्ति  के  व्यक्तित्व  की   एक  संरचना  होती  है  ,  और  उसमें  अनेक  दृश्य  और  अदृश्य  तत्व  होते  हैं  l   जो  दृश्य  है  वह  हमारा  व्यवहार  है  और  जो  अदृश्य  है  उसमे  हमारी  आस्था , विश्वास , विचार  व  भाव   सम्मिलित  होते  हैं  l   सज्जन  और  श्रेष्ठ  व्यक्तियों  की  इमेज  ( छवि ) परिष्कृत  होती  है   क्योंकि  उनका  हृदय  संवेदनशील  होता  है  ,  वे  सबके  कल्याण  , सबकी  भलाई  के  बारे  में  सोचते  हैं  l  ऐसे  श्रेष्ठ  व्यक्तियों  से   जो  भी  मिलता  है  उसके   हृदय  में  उनकी  अमिट   छाप  पड़   जाती  है  l   लेकिन   अनेक  व्यक्ति   नकारात्मक  सोच  और  नकारात्मक   विचारों    वाले  होते  हैं  l  वे  किसी  को  सुखी    व  स्वस्थ  देख  नहीं  पाते  l   किसी  को  असफल  होते  देख   इनको  आंतरिक  प्रसन्नता  होती  है  l   इनके  पास  आसुरी  शक्तियों  एवं  अँधेरे  का  जमघट  होता  है  l   इनका  व्यक्तित्व  ही  आसुरी  शक्तियों  द्वारा  संचालित   होता  है  l   ऐसे  नकारात्मक   चिंतन  और  व्यवहार  से  जितनी  दूरी   बनाई  जा  सके  ,  उतना  ही  श्रेयस्कर  है   l '                                                                                                                                         रामायण   में  यदि  हम  रावण  के  चरित्र  को  देखें   तो  रावण   ऋषि  विश्रवा   का  पुत्र   और  ऋषि   पुलस्त्य  का  पौत्र  था   l   ऋषि   विश्रवा   के  सगे   भाई  थे  अगस्त्य  ऋषि  l   ऋषि  कुल  में   पैदा  होकर  भी  वह  स्वयं  को  गर्व  से  ' राक्षसराज  रावण  '  कहता  था  l   शिव भक्त  था  l  वेद  शास्त्रों  का  बड़ा  विद्वान्  था    लेकिन  उसने  दसों   दिशाओं  में  आतंक  फैला  रखा  था   l   ऋषियों  को  सताता  ,  उनके  यज्ञ  आदि  पवित्र  कार्यों  को  नष्ट  करता  l   लोगों  को  कष्ट  पहुँचाने  में  ही  उसको  आनंद  आता   था  l  अपने  आसुरी  कार्यों  के  लिए  उसने  हर  दिशा  में  अनेक  राक्षस  नियुक्त  कर  रखे  थे  ,  इसके  अतिरिक्त   लोगों  को  कष्ट  देने  के  लिए   अनेक  राक्षसियों  को  भी  नियुक्त  कर  रखा  था  l   जब  श्री  हनुमान जी  समुद्र  पार  कर  रहे  थे   तो  उनका  सामना   सुरसा   नामक    राक्षसी  से  हुआ   l   लंका  के  द्वार  पर  पहुंचे  तो  वहां  पहरा  देती  लंकिनी  मिल  गई  l   सीताजी  को  सताने  व  डराने  के  लिए  त्रिजटा  आदि  अनेक  राक्षसियों  को  रखा  था  l   मंदोदरी  जैसी  पतिव्रता  पत्नी  के  होते  हुए  भी  उसने  सीता -हरण  किया  l   उच्च   कुल में  पैदा  होकर  भी   उसका  व्यक्तित्व  आसुरी  था  l   भगवान  राम  से  युद्ध  से  पूर्व  जब  उसने  शक्ति   की  उपासना  की    तो देवी  ने  उसे  आशीर्वाद  दिया  ' कल्याण   हो '  l   क्योंकि  रावण   का  ,     राम  के  हाथों  मिट  जाने  में  ही   कल्याण  था  l   अपने  अंतिम  समय  में  वह  भी  समझ  गया    कि   राम  साक्षात्  भगवान  हैं   , वह  कहने  लगा  -- भगवन  !  मेरे  जीते  जी  आप  मेरे  धाम  लंका  नहीं  आ   सके   लेकिन   आपके  हाथों  मृत्यु  को  प्राप्त  कर  मैं   आपके  जीते  जी   आपके  धाम  जा  रहा  हूँ   l  '

WISDOM -----

   औरंगजेब  मुग़ल  सल्तनत  का  क्रूरतम  बादशाह  था   l   सत्ता  हथियाने  की   चाह    में   उसने  सर्वप्रथम    अपने  दोनों  भाइयों  शुजा  और  मुराद  को  मौत  के  घाट   उतरवा  दिया    और  फिर  अपने  बड़े  भाई  दाराशिकोह  को  गिरफ्तार  कर  लिया  l   पहले  तो  उसने  दारा   को  अमानवीय  यातनाएं  दीं   और  फिर  उसके  लहूलुहान  बदन  को  हाथी  की  पीठ   पर  डालकर   शहर  में  मजमा  दिखाने  के  लिए  छोड़  दिया  l   यह  दृश्य  देखने  के  लिए  बाजार  में  भारी   भीड़  इकट्ठी  हो  गई   l   दारा   नीची  नजरें  किए   लेटा   था  कि   उसे  एक  आवाज  सुनाई  पड़ी  --- " दारा  !  तू  जब  भी  यहाँ  से  गुजरता  था    तो  खैरात  बाँटता   हुआ  जाता  था  l   आज  क्या  इस  गरीब  को   तेरी  सखावत  का  मौका  नहीं  मिलेगा   l "  दाराशिकोह  ने  नजरें  उठाईं   तो  उसे  एक  फकीर   खड़ा  दिखाई  पड़ा  l   दारा   ने  अपने  कंधे  पर  पड़े   दुशाले  को  उठाया   और  फकीर   की  गोद   में  डाल   दिया  l   सारा  शहर    ' दारा   जिंदाबाद  '  और ' औरंगजेब   मुरदाबाद  '  के  नारों  से  गुंजायमान  हो  उठा   l