' अन्याय को सहन करना , जो कुछ हो रहा है उसे अनुचित और अस्वाभाविक मानते हुए भी ऐसे चुपचाप बैठना मानव - धर्म नहीं है l '
जब भारत पर ब्रिटिश शासन था तो देशी राज्यों की जनता की दशा बड़ी शोचनीय थी l इन राजाओं ने ब्रिटिश गवर्नमेंट की आधीनता स्वीकार कर ली थी , इसके बदले उसने इनको ' सुरक्षा की गारंटी ' दे रखी थी l इसका नतीजा हुआ वे निर्भय होकर प्रजा का शोषण करने लगे और उस धन को दुर्व्यसनों और अपने शौक की पूर्ति में उड़ाने लगे l जब ' स्वामी ' की यह दशा तो ' सेवक ' लोग क्यों पीछे रहते l रियासती अधिकारी और छोटे - बड़े राज्य कर्मचारी दोनों हाथों से प्रजा को लूटते - मारते थे l
ऐसे समय में श्री गणेश शंकर विद्दार्थी ( 1890 - 1931 ) ने कानपुर से ' प्रताप ' साप्ताहिक प्रकाशित करना आरम्भ किया l उसका उद्देश्य था --- दीन - दुःखी , अत्याचार - पीड़ितों की आवाज को बुलंद करना और उनके कष्टों को मिटाने के लिए आन्दोलन करना l ----
अवध के किसान तालुकेदारों के अत्याचारों से कराह रहे थे l ये ' लुटेरे ' तरह -तरह के लगानों और करों के नाम पर गरीबों के पसीने की कमाई का इस प्रकार अपहरण करते कि दिन - रात मेहनत करने पर भी उनको दो वक्त भरपेट रोटी नसीब नहीं होती l जब कानपुर के निकटवर्ती रायबरेली के किसान बहुत पीड़ित हुए और उन्होंने तालुकेदार वीरपाल सिंह के विरुद्ध सिर उठाया तो उसने गोली चलवाकर कितनो को ही हताहत कर दिया l जब विद्दार्थी जी के पास खबर पहुंची तो उन्होंने एक प्रतिनिधि भेजकर जांच कराई और वीरपाल सिंह की शैतानी का पूरा कच्चा चिटठा ' प्रताप ' में प्रकाशित कर दिया l
तालुकेदार साहब ऐसी बातों को कैसे सहन करते , उन्होंने विद्दार्थी जी को नोटिस भेजा ' या तो माफ़ी मांगो , नहीं तो अदालत में मानहानि का दावा किया जायेगा l विद्दार्थी जी ने उत्तर दिया ---- ' आप खुशी से अदालत की शरण लें l हम वहीँ आपकी करतूतों का भांडाफोड़ करेंगे l माफी मांगने वाले कोई और होते हैं l "
छह महीने तक मुकदमा चला , तीस हजार रुपया उसमे बर्बाद करना पड़ा , तीन माह की सजा भी भोगी , पर किसानों की दुःख गाथा और तालुकेदारों के अन्याय संसार के सम्मुख प्रकट हो गए l और उस समय से जो किसान - आन्दोलन शुरू हुआ तो उसने जमीदारी प्रथा को जड़मूल से उखाड़ कर ही दम लिया l
जब भारत पर ब्रिटिश शासन था तो देशी राज्यों की जनता की दशा बड़ी शोचनीय थी l इन राजाओं ने ब्रिटिश गवर्नमेंट की आधीनता स्वीकार कर ली थी , इसके बदले उसने इनको ' सुरक्षा की गारंटी ' दे रखी थी l इसका नतीजा हुआ वे निर्भय होकर प्रजा का शोषण करने लगे और उस धन को दुर्व्यसनों और अपने शौक की पूर्ति में उड़ाने लगे l जब ' स्वामी ' की यह दशा तो ' सेवक ' लोग क्यों पीछे रहते l रियासती अधिकारी और छोटे - बड़े राज्य कर्मचारी दोनों हाथों से प्रजा को लूटते - मारते थे l
ऐसे समय में श्री गणेश शंकर विद्दार्थी ( 1890 - 1931 ) ने कानपुर से ' प्रताप ' साप्ताहिक प्रकाशित करना आरम्भ किया l उसका उद्देश्य था --- दीन - दुःखी , अत्याचार - पीड़ितों की आवाज को बुलंद करना और उनके कष्टों को मिटाने के लिए आन्दोलन करना l ----
अवध के किसान तालुकेदारों के अत्याचारों से कराह रहे थे l ये ' लुटेरे ' तरह -तरह के लगानों और करों के नाम पर गरीबों के पसीने की कमाई का इस प्रकार अपहरण करते कि दिन - रात मेहनत करने पर भी उनको दो वक्त भरपेट रोटी नसीब नहीं होती l जब कानपुर के निकटवर्ती रायबरेली के किसान बहुत पीड़ित हुए और उन्होंने तालुकेदार वीरपाल सिंह के विरुद्ध सिर उठाया तो उसने गोली चलवाकर कितनो को ही हताहत कर दिया l जब विद्दार्थी जी के पास खबर पहुंची तो उन्होंने एक प्रतिनिधि भेजकर जांच कराई और वीरपाल सिंह की शैतानी का पूरा कच्चा चिटठा ' प्रताप ' में प्रकाशित कर दिया l
तालुकेदार साहब ऐसी बातों को कैसे सहन करते , उन्होंने विद्दार्थी जी को नोटिस भेजा ' या तो माफ़ी मांगो , नहीं तो अदालत में मानहानि का दावा किया जायेगा l विद्दार्थी जी ने उत्तर दिया ---- ' आप खुशी से अदालत की शरण लें l हम वहीँ आपकी करतूतों का भांडाफोड़ करेंगे l माफी मांगने वाले कोई और होते हैं l "
छह महीने तक मुकदमा चला , तीस हजार रुपया उसमे बर्बाद करना पड़ा , तीन माह की सजा भी भोगी , पर किसानों की दुःख गाथा और तालुकेदारों के अन्याय संसार के सम्मुख प्रकट हो गए l और उस समय से जो किसान - आन्दोलन शुरू हुआ तो उसने जमीदारी प्रथा को जड़मूल से उखाड़ कर ही दम लिया l