12 December 2020

WISDOM ------

    मनुष्य  अपनी  प्रवृतियों  के  अनुसार  देवता   या असुर  कहलाता   है   l   देवताओं  की  यह  विशेषता  होती  है  कि  वे  सन्मार्ग  पर  चलते  हैं ,  कभी  किसी  का  अहित  नहीं  करते ,  किसी  का  दिल  नहीं  दुखाते  , नेक  कर्म  करते  हैं  l   वे  अमर  होने  का  कोई  प्रयास  नहीं  करते  ,  उनके  कर्म  उनका  नाम  युगों - युगों  तक  अमर  कर  देते  हैं  l   असुर   देखने  में   तो  मनुष्य  शरीर  में   होते  हैं   लेकिन  इन्हे  दूसरों  को  कष्ट  देने  में  बहुत  आनंद  आता  है  l   असुरों  की  एक  विशेषता  होती  है  कि   ये   कठिन  तपस्या  कर  लेते  हैं   जिससे  इन्हे  ईश्वर  से  वरदान  मिल  जाता  है  और  ये  अपार  धन - सम्पदा    के  स्वामी  होते  है   l   इस  कारण  ये  बहुत  शक्तिशाली  होते  हैं   और  अपनी  धन - सम्पदा  के  बल  पर  संसार  पर  अपनी  हुकूमत  चलाना   चाहते  हैं  l  आसुरी  प्रवृति  के  कारण  ये  संवेदनहीन  होते  हैं   और  अत्याचार  व  अन्याय  कर  के  लोगों   को  अपने  नियंत्रण  में  रखते  हैं  l  आसुरी  प्रवृति  के   लोगों  में  अमरता  की  बड़ी  गहरी  चाह   होती  है   जैसे  रावण , हिरण्यकशिपु , भस्मासुर   आदि  अनेक   असुरों  ने   भगवान   की कठोर  तपस्या  कर   अमरता  का  वरदान  माँगा  l  अमर  होना  तो  प्रकृति  के  नियमों  के  विरुद्ध  है  ,  इसलिए  जब  भगवान  ने  उन्हें  अमर  होने  का  वरदान   नहीं दिया   तो  उन्होंने  वे  सारे  विकल्प  मांग  लिए  जिससे  मृत्यु  को  उनके  पास  आने  का  अवसर  न  मिले  l   वरदान  की  शक्ति  से  स्वयं  को  अमर  समझकर   उन्होंने  लोगों   पर  अत्याचार  करना , अपने  आतंक  से  उन्हें  भयभीत  करना  शुरू  कर  दिया  l   भस्मासुर   तो      जिसके      सिर   पर      हाथ     रख      देता   था   , वही     भस्म       हो  जाता   था  l  यही  असुरता  है   l   असुरता   यही  चाहती  है  कि   उसका  अस्तित्व  बना  रहे  ,  लोग  चाहे  मरें   या  त्राहि - त्राहि  करें   l   इस    संसार  में  शुरू  से  ही  देवत्व  और  असुरता  में  संघर्ष  रहा  है   l  जब  युद्ध  में  देवता  हारने  लगते  हैं   तो  असुरों  से  अपने  प्राण  बचाने  के  लिए  भगवान   की शरण  में  जाते  हैं   तब  भगवान  उन्हें  यही  कहते  हैं   तुम  लोग  जागरूक  हो ,  संगठित   हो  l   जब  देवत्व  प्रबल  होगा  तो  असुरता  अपने  आप  पराजित  होगी   l 

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  - " मनुष्य  की  सबसे  बड़ी  भूल  है   स्वयं  को  बंदर   की   औलाद   समझना   l   इस  कारण  हम  अपने  स्वरुप , कर्तव्य  और  उद्देश्य  को  भूल  गए  l जब   हम  स्वयं  को  ईश्वर  की  श्रेष्ठ   संतान   मानेंगे   तभी  हमारे  कर्म  , हमारा  आचरण  श्रेष्ठ  होगा  और  उसके  परिणाम   भी सुखदायी  होंगे '           विकास  की  प्रक्रिया  में  हमने  यह  माना  कि  हम  अपनी  प्रारम्भिक  अवस्था  में  बंदर   थे  ,  विकसित  होकर  इस  रूप  में  आ  गए  l   ऐसा  मानकर  हमने  भौतिक  प्रगति   तो  बहुत  की  l   विज्ञान   ने  हमें  इतनी  सुख - सुविधाएँ  दीं   जिसकी  किसी  ने  कल्पना  भी  नहीं  की  होगी  l   लेकिन  चेतना  के  स्तर  पर   हम  कहाँ  पहुंचे  हैं   ?  संसार  में   बढ़ते  अपराध , आतंक ,  युद्ध ,  छीना  - झपटी -------   -------------------------------------    आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' जब  अपने  से  बड़ी  शक्ति  के  साथ   संबंध   जोड़ने  की  महत्ता  को   छोटे  बच्चे  तक  समझते  हैं  ,  फिर  मनुष्य  भगवान  को  घनिष्ठ  बनाने  में   इतनी  उपेक्षा  क्यों  बरतता  है    l '  केवल   कर्मकांड    कर  के  ही    मनुष्य   अपने  आस्तिक  होने   का  दिखावा  करता  है  ,  आंतरिक  परिष्कार  नहीं  करता  l