19 April 2023

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " चिन्तन  परिक्षेत्र  बंजर  हो  जाने  के  कारण  कार्य  भी  नागफनी , बबूल  जैसे  हो  रहे  हैं  l  इससे  मानवता  का  कष्ट पीड़ित  होना  स्वाभाविक  है  l   कार्य  में  श्रेष्ठता  की  अभिव्यक्ति  होना   तभी  संभव  है  ,  जब  उसके  मूल  में  चिन्तन  की  उत्कृष्टता  हो  l  "         आचार्य जी  लिखते  हैं --- " प्रत्येक  व्यक्ति  समाज  पर  अपना  भला -बुरा  प्रभाव  छोड़ता  है  ,  किन्तु  सुगंध  की  अपेक्षा  दुर्गन्ध  का   विस्तार  अधिक  होता  है  l  एक   नशेड़ी   , जुआरी  , दुर्व्यसनी  , कुकर्मी    अनेकों  संगी  साथी   बना  सकने  में  सफल  हो  जाते  हैं   लेकिन  आदर्शों  का  , श्रेष्ठता  का   अनुकरण  करने  की  क्षमता  हल्की  होती  है   l  गीता  पढ़कर   उतने  आत्मज्ञानी  नहीं  बने   , जितने  कि   दूषित  साहित्य , अश्लील  द्रश्य   , अभिनय  से  प्रभावित  होकर   कामुक  अनाचार  अपनाने  में  प्रवृत्त  हुए  l    समाज  में  छाए  हुए  अनाचार , असंतोष   और  दुष्प्रवृतियों  का   मात्र  एक  ही  कारण  है  कि   जन -साधारण  की  आत्मचेतना  मूर्च्छित  हो  गई  है  l  "