तृष्णा का अंत नहीं है l व्यक्ति वृद्ध होता जाता है लेकिन उसकी कामनाएं समाप्त नहीं होतीं l स्थिति तब और विकट हो जाती है जब बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति अपनी असीमित कामनाओं को तृप्त करने के लिए दूसरों की खुशियां छीनता है l पुराणों में एक कथा है ---- महाराज ययाति बूढ़े हो गए लेकिन उनकी कामनाएं समाप्त नहीं हुईं l उन्होंने अपने पुत्रों से उनका यौवन माँगा l उनके चार पुत्रों ने तो मना कर दिया किन्तु छोटे पुत्र ने पिता की इच्छाओं के आगे अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया l अपना यौवन उन्हें देकर उन का बुढ़ापा ले लिया l हजारों वर्षों तक भोग भोगने के बाद भी उन्हें शांति नहीं मिली l
आज संसार की स्थिति कुछ ऐसी ही है युवा लोगों की नौकरी , उनकी उमंगें छिन गईं l ययाति आज भी हैं , एक नहीं अनेक हैं l हमारे पूर्वजों ने इसलिए आश्रम व्यवस्था की थी l एक निश्चित आयु के बाद वानप्रस्थ आश्रम की व्यवस्था थी ताकि नई पीढ़ी को आगे बढ़ने का , परिवार की और युग की जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिले लेकिन मनुष्य की असीमित इच्छाओं , लालच , तृष्णा ने सब कुछ ध्वस्त कर दिया l
आज संसार की स्थिति कुछ ऐसी ही है युवा लोगों की नौकरी , उनकी उमंगें छिन गईं l ययाति आज भी हैं , एक नहीं अनेक हैं l हमारे पूर्वजों ने इसलिए आश्रम व्यवस्था की थी l एक निश्चित आयु के बाद वानप्रस्थ आश्रम की व्यवस्था थी ताकि नई पीढ़ी को आगे बढ़ने का , परिवार की और युग की जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिले लेकिन मनुष्य की असीमित इच्छाओं , लालच , तृष्णा ने सब कुछ ध्वस्त कर दिया l