21 November 2019

WISDOM ------ गोस्वामी तुलसीदास जी

  राम  कथा  उनसे  पहले  भी  प्रचलित  थी ,  लेकिन  संस्कृत  में  ही  l   जान साधारण  को  उससे  न  तो  प्रेरणा  मिलती  थी  और  न  ही  दिशा  l   गोस्वामी जी  ने   रामकथा  के  इर्द - गिर्द  खींची  गई  इन  रेखाओं  को  मिटाया  और  उसे  सार्वजनीन  बनाया  l   तुलसीदास जी  ने  मध्यकाल  के  उस  अंधकार  युग  में    रामकथा  को  संबल   बनाया   और  उसमे  आश्रय  ग्रहण  करने  की  प्रेरणा  दी  l  लोगों  ने  उस  आश्रय  को  ग्रहण  भी  किया  l   तुलसी  की  राम कथा  किसी  भी  समय , परिस्थिति  और  समस्या  में  उपचार  की  तरह  सामने  आती  है  l 
  हिंदू   और  इस्लाम   दोनों  ही  धर्मों  के  लोग  उनका  सम्मान  करते  थे  l   अब्दुर्रहीम  खानखाना   से  उनकी  मित्रता  विख्यात  थी   l  रहीम  ने  मानस  के  संबंध   में  कुछ  पद  भी  रचे    और  कहा  यह  काव्य  हिन्दुओं  के  लिए  वेद  और  मुसलमानों  के  लिए  कुरान  है  '  हिन्दुआन   को  वेदा सम , तुरुकहि   प्रगट  कुरान  l '
 अकबर  के  नवरत्नों  में  से  टोडरमल  तुलसीदास जी  के  प्रति  अगाध  श्रद्धा  रखते  थे  l   उनके  सहयोग  से  ही   गोस्वामी जी  ने   राम जन्म  भूमि   स्थल  के  दक्षिण द्वार   के  पास    बैठकर   राम कथा  कही  थी  l 
  उनके   कुछ  विरोधियों  ने  मानस  को  नष्ट  करने  की  चेष्टा  की ,  चुराने  के  लिए  चोर  भेजे  l   जन  श्रुति  है  कि  चोर  जब  उनकी  कुटिया  में  घुसने  लगे    तो  दो  धनुर्धारियों  को  पहरा  देते  देख  वापस  चले  गए  l   ये  धनुर्धारी  राम  और  लक्ष्मण  ही  थे  l   अपने  इष्ट  को  पहरा  देते  देख   उन्हें  कष्ट  नहीं  होने   देने  के  लिए    गोस्वामी जी  ने  मानस  की  प्रति    राजा  टोडरमल  के  यहाँ  रखवा  दी  l   ऐतिहासिक  तथ्य  है  कि   विरोध  का   समाहार  करने  के  लिए   गोस्वामी जी  को  टोडरमल , रहीम ,  आचार्य  मधुसूदन  आदि   विद्वद्जनों  ने  सहायता  की  थी  l
एक  स्थान  पर  तुलसीदास जी  नाथपंथियों  की  आलोचना  भी  करते  हैं  l  उनका  कहना  था  कि   योगतंत्र  और  शरीर  साधनाओं  में  ऊर्जावान  चित , स्थिर  मन: स्थिति  और  सुदृढ़  मनोभूमि  चाहिए   l  सौ   में  से  एक - दो  साधक  ही  यह  स्थिति  अर्जित  कर  पाते  हैं   l   इसलिए  जन  सामान्य  भक्ति मार्ग  अपनाकर  ही   अपना  आत्मिक  विकास  कर  सकता  है  l
  तुलसीदास जी  का  यह  दोहा  प्रख्यात  है ----
      हम  चाकर  रघुवीर  के ,  पट्यौ   लिख्यौ   दरबार 
      तुलसी  अब  का  होहिंगे ,  नर  के  मनसबदार   l