3 August 2020

WISDOM ------

 श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  अर्जुन  से  कहते  हैं --- तू  तो  केवल  निमित्त मात्र  बन  जा  l
इसका  अर्थ  है  कार्य  का   कर्ता    भगवान  को  मानना   और  स्वयं  को  उनकी  शक्ति  का  स्रोतवाहक  समझना  l      जब  व्यक्ति   कर्ता   बनकर  किसी  कार्य  को  करता  है   तो  उसका  अहं   जाग्रत  हो  जाता  है   और  यह  अहंकार  व्यक्ति  को   क्षुद्र  बना  देता  है  l
अहंकारी  व्यक्ति  बाहर  से  तो  बहुत  शक्तिशाली  दीखता  प्रतीत  होता  है   लेकिन  वह  अंदर  से  बहुत  कमजोर  होता  है   क्योंकि  उसका  अहंकार  बार - बार  चोटिल  होता  है   जिससे  वह  अपमानित  और  क्रोधित  होता  है  l
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- इस  संसार  में  थोड़ा - बहुत  अहंकार   सभी  पालते  हैं   और   अहंकार  की  खास  बात  यह  होती  है   कि   वह  दूसरों  के  अहंकार  को  सहन  नहीं  कर  पाता  और  स्वयं  को  श्रेष्ठ  साबित  करने  में   उसके  लड़ाई - झगड़े   होते  हैं  l  श्रेष्ठता  इस  बात  में  नहीं   कि   किसका  अहंकार   कितना  बड़ा  है  ,  बल्कि  इस  बात  में  है  कि   किसका  व्यक्तित्व  ज्यादा  महान  है   l   जिस  व्यक्ति  में  अनगिनत  शक्तियों , विभूतियों   और  प्रतिभाओं   के  साथ  विनम्रता   होती  है , वही  सबसे  श्रेष्ठ  व्यक्ति  है   l