10 August 2018

WISDOM --- माता - पिता की भांति धर्म भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिलता है ----- महात्मा गाँधी

 ,  गाँधी  वाड्मय '  में  धर्म  परिवर्तन  पर   गांधीजी  के  विचार  बिखरे    पड़े  हैं  l  उन्होंने  लिखा  है  कि  जनक - जननी  को   जैसे    नहीं  बदला  जा  सकता  है  ,  उसी  प्रकार   धर्म  भी  नहीं  बदला जा  सकता  l  यदि  कोई  धर्म - परिवर्तन  का  प्रयास  करता  है  ,  तो  वह  प्रकृति  के  विरुद्ध  जाता  है  l   महात्मा  गाँधी  ने  यह  बात   अपने  पुत्र  हरिलाल   के  सम्बन्ध  में  कही  थी  l  संगति - दोष  के  कारण   हरिलाल  में   अनेक  बुरी  आदतें  घर  कर  गईं  थीं   l  हरिलाल  के  दुर्व्यसनी  होने  के  कारण  गांधीजी  उसे  पसंद  नहीं  करते  थे   l  कुछ  अवसरों  पर  गांधीजी  ने   अपने  इस  बेटे  को  स्वीकार  करने  से  भी  मना  कर  दिया  था  l  दुर्व्यसनों  के  कारण  हरिलाल  पर   कर्ज  भी  चढ़  गया  था  और  कर्ज  से  मुक्ति  पाने  की उनकी   स्थिति  नहीं  थी  l 
 धर्म - परिवर्तन  के  नीम  पर  जुटी  संस्थाओं   ने  इस  शर्त  पर  आर्थिक  सहायता  दी  कि  वह  अपना  धर्म  छोड़कर   दूसरा  धर्म  अपना  लेगा   l  हरिलाल ने  यह  शर्त  स्वीकार  कर  ली   l  महात्मा  गाँधी  से  उस  वक्त   पत्रकारों  ने  पूछा  था  कि  अब  आपका  क्या  कहना  है  ,  आपका  पुत्र  धर्म  बदल  रहा  है   l
 गांधीजी  ने  कहा  था  कि  जो  लोग  धर्मांतरण  को  सही  मान  रहे  हैं  ,  वे  गलत  हैं  l  हरिलाल  यदि  प्रलोभन  के  कारण    धर्मांतरण  कर  रहा  है  तो  कल  कुछ  और  संस्थाएं  उसे  वापस  भी  ला  सकती  हैं  l  ऐसा  ही  हुआ  ,  धर्म  सभा  के  नेताओं  ने  हरिलाल  को  समझा - बुझाकर  पुन:  हिन्दू  बना  लिया  l   आध्यात्मिक  द्रष्टि  से  धर्मांतरण  असंभव  कर्म  है  l