, गाँधी वाड्मय ' में धर्म परिवर्तन पर गांधीजी के विचार बिखरे पड़े हैं l उन्होंने लिखा है कि जनक - जननी को जैसे नहीं बदला जा सकता है , उसी प्रकार धर्म भी नहीं बदला जा सकता l यदि कोई धर्म - परिवर्तन का प्रयास करता है , तो वह प्रकृति के विरुद्ध जाता है l महात्मा गाँधी ने यह बात अपने पुत्र हरिलाल के सम्बन्ध में कही थी l संगति - दोष के कारण हरिलाल में अनेक बुरी आदतें घर कर गईं थीं l हरिलाल के दुर्व्यसनी होने के कारण गांधीजी उसे पसंद नहीं करते थे l कुछ अवसरों पर गांधीजी ने अपने इस बेटे को स्वीकार करने से भी मना कर दिया था l दुर्व्यसनों के कारण हरिलाल पर कर्ज भी चढ़ गया था और कर्ज से मुक्ति पाने की उनकी स्थिति नहीं थी l
धर्म - परिवर्तन के नीम पर जुटी संस्थाओं ने इस शर्त पर आर्थिक सहायता दी कि वह अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेगा l हरिलाल ने यह शर्त स्वीकार कर ली l महात्मा गाँधी से उस वक्त पत्रकारों ने पूछा था कि अब आपका क्या कहना है , आपका पुत्र धर्म बदल रहा है l
गांधीजी ने कहा था कि जो लोग धर्मांतरण को सही मान रहे हैं , वे गलत हैं l हरिलाल यदि प्रलोभन के कारण धर्मांतरण कर रहा है तो कल कुछ और संस्थाएं उसे वापस भी ला सकती हैं l ऐसा ही हुआ , धर्म सभा के नेताओं ने हरिलाल को समझा - बुझाकर पुन: हिन्दू बना लिया l आध्यात्मिक द्रष्टि से धर्मांतरण असंभव कर्म है l
धर्म - परिवर्तन के नीम पर जुटी संस्थाओं ने इस शर्त पर आर्थिक सहायता दी कि वह अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेगा l हरिलाल ने यह शर्त स्वीकार कर ली l महात्मा गाँधी से उस वक्त पत्रकारों ने पूछा था कि अब आपका क्या कहना है , आपका पुत्र धर्म बदल रहा है l
गांधीजी ने कहा था कि जो लोग धर्मांतरण को सही मान रहे हैं , वे गलत हैं l हरिलाल यदि प्रलोभन के कारण धर्मांतरण कर रहा है तो कल कुछ और संस्थाएं उसे वापस भी ला सकती हैं l ऐसा ही हुआ , धर्म सभा के नेताओं ने हरिलाल को समझा - बुझाकर पुन: हिन्दू बना लिया l आध्यात्मिक द्रष्टि से धर्मांतरण असंभव कर्म है l