महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर और यक्ष के मिलने की कथा है l इस कथा में यक्ष ने युधिष्ठिर से कई प्रश्न पूछे l इन्हीं में से एक प्रश्न यह भी पूछा गया --- " इस संसार का परम आश्चर्य क्या है ? किमाश्चर्यम परम ? "
युधिष्ठिर ने यक्ष को उत्तर दिया ----- " सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मृत्यु को सुनिश्चित घटना के रूप में देखकर भी मनुष्य इसे अनदेखा करता है l वह मृत्यु की नहीं , जीवन की तैयारी कुछ इस अंदाज में करता है , जैसे विश्वास हो कि वह कभी मरेगा नहीं l उसे सदा - सदा जीवित रहना है "
इसके लिए क्या कुछ नहीं किया जाता l अनगिनत युक्तियाँ , अनेकों षड्यंत्र , यहाँ तक कि बर्बर हत्याएं भी l लाख आलीशान इमारतें , महल और किले बनवा लें , पर अंतिम आश्रय सभी को कब्र में ही मिलता है l बेशकीमती सौन्दर्य प्रसाधनों से सजाये जाने वाले शरीरों को भी शमशान में में राख के ढेर में बदलने के लिए विवश होना पड़ता है l कोई दूसरी मंजिल नहीं ! भगवान ने गीता में कहा भी है ----- ' सब जन्म मुझी से पाते हैं , फिर लौट मुझी में आते हैं l '
कितना ही कोई इकट्ठा कर ले , कितनी ही उपलब्धियां , सोची - विचारी व क्रियान्वित की गई असंख्य योजनाएं, इस मृत्यु में जाकर समाप्त हो जाती हैं l मृत्यु से बचने की सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने लिखा है ---- ' प्रयास किए जाने चाहिए मृत्यु को सार्थक करने के , लेकिन दुर्बुद्धि के कारण प्रयास ऐसे किए जाते हैं , जिनसे यह जीवन पूरी तरह से निरर्थक हो जाता है l '
युधिष्ठिर ने यक्ष को उत्तर दिया ----- " सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मृत्यु को सुनिश्चित घटना के रूप में देखकर भी मनुष्य इसे अनदेखा करता है l वह मृत्यु की नहीं , जीवन की तैयारी कुछ इस अंदाज में करता है , जैसे विश्वास हो कि वह कभी मरेगा नहीं l उसे सदा - सदा जीवित रहना है "
इसके लिए क्या कुछ नहीं किया जाता l अनगिनत युक्तियाँ , अनेकों षड्यंत्र , यहाँ तक कि बर्बर हत्याएं भी l लाख आलीशान इमारतें , महल और किले बनवा लें , पर अंतिम आश्रय सभी को कब्र में ही मिलता है l बेशकीमती सौन्दर्य प्रसाधनों से सजाये जाने वाले शरीरों को भी शमशान में में राख के ढेर में बदलने के लिए विवश होना पड़ता है l कोई दूसरी मंजिल नहीं ! भगवान ने गीता में कहा भी है ----- ' सब जन्म मुझी से पाते हैं , फिर लौट मुझी में आते हैं l '
कितना ही कोई इकट्ठा कर ले , कितनी ही उपलब्धियां , सोची - विचारी व क्रियान्वित की गई असंख्य योजनाएं, इस मृत्यु में जाकर समाप्त हो जाती हैं l मृत्यु से बचने की सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने लिखा है ---- ' प्रयास किए जाने चाहिए मृत्यु को सार्थक करने के , लेकिन दुर्बुद्धि के कारण प्रयास ऐसे किए जाते हैं , जिनसे यह जीवन पूरी तरह से निरर्थक हो जाता है l '