28 August 2019

WISDOM ------ किमाश्चर्यम परम ?

  महाभारत  में  धर्मराज  युधिष्ठिर  और  यक्ष  के  मिलने  की  कथा  है  l  इस  कथा में  यक्ष  ने  युधिष्ठिर  से  कई  प्रश्न  पूछे  l  इन्हीं  में  से  एक  प्रश्न  यह  भी  पूछा  गया  --- " इस  संसार  का  परम  आश्चर्य    क्या  है  ?  किमाश्चर्यम  परम  ?  " 
  युधिष्ठिर  ने  यक्ष  को  उत्तर  दिया ----- " सबसे  बड़ा  आश्चर्य  यह  है  कि  मृत्यु  को  सुनिश्चित  घटना   के  रूप  में  देखकर    भी मनुष्य  इसे  अनदेखा  करता  है  l  वह  मृत्यु  की  नहीं ,  जीवन  की   तैयारी  कुछ  इस  अंदाज  में  करता  है  ,  जैसे  विश्वास  हो  कि  वह कभी  मरेगा नहीं   l  उसे  सदा - सदा जीवित  रहना  है "
         इसके  लिए   क्या  कुछ   नहीं  किया  जाता  l अनगिनत  युक्तियाँ ,   अनेकों   षड्यंत्र  ,  यहाँ  तक  कि  बर्बर  हत्याएं  भी  l  लाख  आलीशान  इमारतें  ,  महल   और किले बनवा  लें  ,  पर  अंतिम  आश्रय  सभी  को  कब्र  में   ही   मिलता  है  l  बेशकीमती  सौन्दर्य  प्रसाधनों  से  सजाये  जाने  वाले  शरीरों  को  भी   शमशान  में  में   राख  के  ढेर  में  बदलने  के  लिए  विवश  होना  पड़ता  है  l  कोई  दूसरी मंजिल  नहीं   !  भगवान  ने  गीता  में कहा भी  है ----- '  सब  जन्म मुझी    से  पाते  हैं  ,   फिर  लौट  मुझी  में  आते   हैं  l  '
   कितना  ही  कोई  इकट्ठा  कर  ले ,  कितनी  ही  उपलब्धियां ,    सोची - विचारी  व  क्रियान्वित  की  गई  असंख्य  योजनाएं,   इस मृत्यु  में जाकर  समाप्त  हो  जाती  हैं   l   मृत्यु  से  बचने  की  सभी  कोशिशें   नाकाम  हो  जाती  हैं    l
 पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने लिखा  है  ---- '  प्रयास    किए   जाने  चाहिए    मृत्यु   को  सार्थक  करने  के  ,   लेकिन    दुर्बुद्धि   के कारण    प्रयास  ऐसे  किए  जाते  हैं   ,  जिनसे  यह  जीवन   पूरी तरह  से निरर्थक   हो  जाता  है   l  '     

26 August 2019

WISDOM -------

पं  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  का  कहना  है ---" आत्मविश्वासी  के  लिए  स्वाधीन  और  स्वावलम्बी  होना  आवश्यक  है  l   जो  कुछ  करने  से  पहले  , कुछ  कहने  से  पहले   दूसरों  की  प्रतिक्रिया  का  ही  अनुमान  लगाता   रहता  है  ,  जिसे  दूसरों  की  खुशामद  का  ध्यान  रखना  पड़ता  है  , वह  कभी  भी  आत्मविश्वासी  नहीं   बन   सकता   l   आत्मविश्वास  का  एक  ही  आधार  है  ---- बोलने  में  ,  काम  करने  में  ,  अपना  मार्ग  चुनने  में  ,  अपना  जीवन  ढालने   में   अपनी  अंतरात्मा  का  आदेश  प्राप्त  करे ,  अपने  दिल  और  दिमाग  के  निर्णय  पर  पहुंचे  और  फिर  जो  सही  हो  उसे  करे , उसे  कहे  l   "

25 August 2019

WISDOM-----

  प्रतिशोध  की   आग  इतनी  तीव्र  होती  है  की  व्यक्ति उसका  परिणाम  नहीं  सोचता   l   द्रोपदी  के   चीर हरण  के  लिए  दु:शासन  उसके  केश  पकड़  कर  उसे  घसीटते  हुए   सभा  में    लाया  था  l  तभी  से  द्रोपदी  अपने  बाल  खुले  रखती  थीं  l  द्रोपदी  ने  प्रतिज्ञा  की  थी  कि  जब  तक  दु:शासन  के  खून  से  अपने  केश  नहीं  धो  लेगी  तब  तक  वह  अपने  लम्बे  सुन्दर  केश  नहीं  बांधेगी  l
  इस  घटना  के  बाद  जब  भी   कृष्ण  आते  वह  आँखों  में  आंसु  भरकर  अपने  खुले  केश  उन्हें  दिखाती  कि  कब  मेरा  प्रतिशोध  पूरा  होगा  ?  कब  इन  केशों  को  बांधूंगी  l 
 श्रीकृष्ण  द्रोपदी से कहते  हैं ---- " कृष्णा  ! तुम्हारे  खुले  बालों  की कीमत  सहस्त्रों  सैनिकों  की  बलि  नहीं  हो  सकती  l  दु:शासन   को मारने की  तुम्हारी  प्रतिज्ञा  से  मैं  बंधा  नहीं  हूँ   l  मैं  धर्म  की  संस्थापना  के  लिए  ,  अधर्म  का  निवारण  करने  आया  हूँ  l  "  श्रीकृष्ण  के  व्यक्तित्व  की  सम्पूर्णता  से  द्रोपदी  परिचित  नहीं  थी  ,  इसलिए  अपनी  सीमित  द्रष्टि  से  ही  योगेश्वर  को  देखती  थी  

24 August 2019

WISDOM ------

  ईरान  का  बादशाह   नौशेखां  एक  दिन  शिकार  खेलते - खेलते  दूर  निकल  गया   l  दोपहर  का  समय  हो  जाने  से  गाँव  में  डेरा  डालकर  भोजन  की  व्यवस्था  की  गई  l  भोजन  बनाने  वालों  को  जब  ज्ञात  हुआ  कि  साथ  लाये   सामान  में  नमक  नहीं  है  तो  वे   निकट  के  घर  से  थोड़ा  सा  नमक  ले  आये  l  बादशाह  ने  उनसे  पूछा  ---- " नमक  के  दाम  दे  आये  ? "  सेवक  बोला --- "  बादशाह  !  थोड़े  से  नमक  का  क्या  दाम  देना   ? "  नौशेखां  तुरंत  बोले ---- " जाओ  !  और  तुरंत  नमक  के  दाम  देकर  आओ  l बदनीयती  की  शुरुआत  ऐसी  ही  छोटी  भूलों  से  होती  है   l  यदि  आज  मैं   छोटी  सी  चीज   बिना  कीमत  दिए  लूँगा  तो  कल  मेरे  कर्मचारी  मूल्यवान  वस्तुएं  भी  मुफ्त  में  लेना  शुरू  कर  देंगे   और  राज्य  में  अराजकता  फ़ैल  जाएगी   l  "    अपने  आचरण  से  सीख  देने  वाले  ही  दूसरों  के  लिए   उदाहरण  बनते  हैं   l

23 August 2019

WISDOM ---- प्रकृति मनुष्य के अहंकार को बरदाश्त नहीं करती

 प्राचीन  काल में   विद्वान, वैज्ञानिक , ऋषि - मनीषी  आदि  अपनी  क्षमता   एवं   प्रतिभा   आदि  का  उपयोग  जन  समुदाय  के  कल्याण  कार्यों  व  समाज  के  उत्थान  में  करते  थे  लेकिन  आज  स्थिति   सर्वथा  विपरीत  हो  गई  है   l  आज की  वैज्ञानिक  एवं  राजनीतिक  प्रतिभा  अपनी  क्षमताओं  का  दुरूपयोग   विनाश  के  साधन  जुटाने  में   करती  है   l  सुविख्यात  मनीषी  कार्ल   मेनीन्जर  का  कहना  है  ---- अपने  अहंकार  की  पूर्ति  के  लिए  जिस  तरह  एक  देश   दूसरे  देश  को  नीचा  दिखाने  के  लिए  परमाणु  हथियारों  का  उपयोग  करता  है  l  उसके  प्रभाव  से  वह  सारा  क्षेत्र  जीवन  विहीन  हो जाता है   और  वातावरण  में   विकिरण  की विषाक्तता  और  स्वास्थ्य  संहारक  विषाणुओं  की  फौज  ही  शेष  रह  जाती  है   l  यह  कार्य  उन  संस्थाओं  या   सरकारों  का  होता  है   जिन्हें  जनता  नियमित  रूप  से   तरह - तरह  के  उपायों  से  कर   चुकती  है  l   
 प्रकृति   मनुष्य  के  इस  अहंकार  को  बर्दाश्त  नहीं  करती   और  मनुष्य के  दुष्कृत्यों  से  विक्षुब्ध  होकर
 ' जैसे  को  तैसा '  का  पाठ   पढ़ाने  को  आतुर   दीखती  है  l बाढ़ , सूखा, चक्रवात , तूफान , भूकंप , ज्वालामुखी  विस्फोट , जंगलों  में  आग , कैंसर , एड्स  जैसी  घातक  बीमारियाँ , हत्या , अपराध , आत्महत्या  की  बढ़ती  प्रवृतियां  --- इन  सबके  पीछे  अप्रत्यक्ष  रूप  से  प्रकृति  की  नाराजगी  ही  है  l  श्रेष्ठ विचार  , 'जियो  और  जीने  दो '  की  भावना  से  ही  समस्याएं  हल  होंगी  l 

22 August 2019

WISDOM -------

  महाराजा  सगर  की  दोनों  रानियों  ने  तप  किया  और  वरदान  मांगने  के  अवसर  पर   एक  ने  हजार  पुत्र  मांगे  और  दूसरी  ने  एक   l  समुचित  भावनात्मक  पोषण  के  अभाव  में   हजारों  पुत्र  झगड़ालू , उपद्रवी  और  अनाचारी  निकले  l   अंततः  अपने  दर्प  एवं  दुर्बुद्धि  के  कारण  महर्षि  कपिल  के  साथ  अन्याय  कर  बैठे   और  मारे  गए   l  दूसरी  रानी  का  जो  एकमात्र  अकेला  पुत्र था  ,  उसने  समुचित  भावनात्मक  पोषण  , मार्गदर्शन  प्राप्त  कर  महर्षि  कपिल  को  भी  प्रसन्न  कर  लिया   तथा  राज्य  का    समुचित  संचालन  भी  किया  एवं  कीर्ति  का  भागीदार  भी  बना  l  नीतिशास्त्र  में  इसीलिए  कहा  भी  गया  है -----
   वरमेको  गुणी  पुत्रो ,  न  च  मूर्खा:  शतान्यपी  l  एकश्चन्द्रस्तमो  हन्ति ,  न  तु  तारा  सहस्त्रशः  l
  अर्थात  सैकड़ों  मूर्ख  बेटों  की  अपेक्षा  एक  ही  गुणी  पुत्र  श्रेष्ठ  है   l  जैसे  अकेला  चाँद  अंधकार  को  दूर  करता  है  ,  हजारों  तारे  नहीं   ल  उसी  प्रकार  एक  गुणी  पुत्र   समाज  में   अंधकार  दूर  करता  व  प्रकाश  फैलाता  है   l

21 August 2019

WISDOM -----

  रूस  के  संत  गुरजिएफ  का  कहना  था  कि  अगर  इस  सारी  धरती  को  धार्मिक   बनाना  हो  तो  केवल  एक  उपाय  है ----   अपने  इस  उपाय के  बारे  में  उनका  कहना  था  कि  वैज्ञानिकों  को  सारी   चिंता  छोड़कर   एक मशीन  खोज  लेनी  चाहिए  , जो  बिलकुल  घड़ी  की  तरह  हो  l  जिसे  हर  आदमी  के  हाथ  पर  बाँध  दिया   जाये  l  जो  हमेशा  बाँधने  वाले  को  बताती  रहे   कि अब  मौत  कितने  करीब  है     उसका   काँटा  निरंतर  घूमता  रहे   l यह   अनुसंधान कठिन  जरुर  है  पर  असंभव  नहीं   "

20 August 2019

WISDOM------

 एक  बार  एक  राज्य  में  एक  राजा ने   धन  संचय  के  उद्देश्य  से  प्रजा  पर बहुत   सारे  कर  लगा  दिए  , जिससे  प्रजा  की  आर्थिक  स्थिति  खराब  हो  गई  l  कुछ  समय  बाद  राज्य  में  सुखा  पड़ा  , लोग  भूखों  मरने  लगे  ,  किन्तु  राजा  का मन  तब  भी  द्रवित  नहीं  हुआ  l  वह  अपने  संचित  धन  में  से  कुछ  भी  खर्च  करना  नहीं  चाहता  था  l उन्ही  दिनों  एक  महात्मा  उस  राज्य  में  पहुंचे  l  प्रजा  की  दुर्दशा  देखकर  वे  राजमहल  में  राजा  से  मिलने  पहुंचे  l  महात्मा  को  देखकर  राजा  बोला --- महात्मन  ! मैं  आपकी  क्या  सेवा  कर  सकता  हूँ  ? " 
 महात्मा  बोले ---- "राजन  ! मेरा  अंतिम  समय  निकट  आ  गया  है  और  मेरी  इच्छा  है  कि  परलोक  जाकर  वैभवपूर्ण  जीवन  व्यतीत  करूँ  l "  राजा  बोला --- " महात्मन  !  आप  इतना  भी  नहीं जानते  कि  परलोक  में  कुछ  भी  नहीं  लेकर  जाया  जा  सकता  है  ? "
 महात्मा  मुस्कराते  हुए  बोले  --- " आप  ठीक  कहते   हैं  राजन  !  वहां  खाली  हाथ  ही  जाना  पड़ता  है  , परन्तु  फिर  आप  क्यों  धन  संचय  कर  रहे  हैं   ?  आप  प्रजापालक  हैं  , प्रजा  भूखों  मर  रही  है  l  यदि  यह  धन  उसके काम  न  आ  सका   तो  इसे  धन  का  क्या  लाभ  ? "
 साधु  की बात  सुनकर  राजा  को  अपनी  भूल का   एहसास  हो  गया  l  उसने   महात्मा  से  क्षमा  मांगी   और  धन - सम्पदा  को  प्रजा  के  कल्याण  में  खर्च  करना  आरम्भ  कर  दिया   l

19 August 2019

WISDOM -----

  एक  बार  विधाता  ने  जय  और  विजय  को  एक  जिम्मेदारी  सौंपी  l  जाओ  !  पता  लगाकर  आओ  कि  धरती  पर  स्वर्ग  का  सच्चा  अधिकारी  कौन  है  l  उनने   सब  ओर  भ्रमण  किया  पर  सभी  को   कामना वश   पूजा - उपासना  में  लिप्त  पाया  l  एक  घनघोर  जंगल  से एक  मार्ग  गुजरता  था   l  वहां  उन्होंने  एक  वृद्ध   को  देखा  जो  दीपक  जलाये  बैठा  था  l  कुछ  जल  के   पात्र    भी  रखे  थे  l  उधर  से  निकलने  वालों  को  वह  रास्ता  भी  दिखाता  और  जल भी  पिलाता  l  सारी  रात  पथिकों को  मार्ग  दिखने  वाले  उस  वृद्ध  से उन्होंने  प्रात:काल  पूछा  --- " आप  प्रात:  की  उपासना  नहीं  करते   ? "  वृद्ध ने  कहा  -- मैं  यह  नहीं  जनता  - " यह  क्या  होती  है  ,  मैं  तो  यह  भी  नहीं   जानता    कि  उपासना  से  स्वर्ग मिलता  है  l मेरी  तो  सारी  रात  राहगीरों  को   राह  दिखाने   में   बीत  जाती है और  दिन  विश्राम  करने  में  l " 
  दोनों  ने  विधाता  के  पास  जाकर सारा  विवरण   सुनाया  , जब  विधाता  इस  वृद्ध  के  विषय  में पढ़ने  लगे  तो  दोनों बोले  --- ' इस  वृद्ध  को  पूजा - उपासना  कुछ  नहीं  मालूम  ,  इसे  छोडिए  l"
विधाता  बोले ---- "  जय - विजय  !  मेरी  द्रष्टि  में  एकमात्र  यही  व्यक्ति  स्वर्ग  का  अधिकारी  है  l  ईश्वर  का  नाम  लेने  की  अपेक्षा  उसकी  व्यवस्था  में  हाथ  बंटाना  अधिक  पुण्य  देता  है  l "  

14 August 2019

WISDOM ----- धर्म - परिवर्तन

  धर्मांतरण  के  राजनीतिक  और  सामाजिक  अर्थ  जो  भी  हों  , भारतीय  परंपरा  मानती  है  कि  आध्यात्मिक  द्रष्टि  से  यह  असंभव  कर्म  है  l  इस विषय  पर  ' गाँधी  वाड्मय ' में  गांधीजी  के  विचार  बिखरे  पड़े  हैं  l   गांधीजी  मानते  थे  कि  धर्म  बदलने  का अर्थ  है  ---- व्यक्ति की  अंतरात्मा  को  बदलना  l  अंतरात्मा  कोई  वस्त्र  या  आभूषण  नहीं  जिसे  बदला    या  पहना  और  उतारा  जा  सके   l  यह  पिछले  जन्मों  के  संस्कारों  का   सम्मुचय  है  l  संस्कार  ही   वह  प्रमुख  कारण  है   जिसके  कारण  धर्म - परिवर्तन  असंभव  और  प्रकृति  विरुद्ध  कर्म  है  l  '
 महात्मा  गाँधी   ने  लिखा  है  कि  माता - पिता  की  भांति  धर्म  भी  व्यक्ति  को  जन्म  के  साथ  ही  मिलता  है  l  माता - पिता  को  जैसे  नहीं  बदला  जा  सकता  ,  उसी  प्रकार  धर्म  भी  नहीं  बदला  जा  सकता  l उन्होंने  कहा   कि  धर्म  परिवर्तन  के  प्रयत्न  सफल   नहीं  होते  और  व्यक्ति  कहीं  का  नहीं  रह  जाता  l  महात्मा  गाँधी  ने  यह  बात  अपने  छोटे  पुत्र  हरिलाल  के  संबंध  में  कही  थी  l  संगति - दोष  के  कारण  हरिलाल  में  कई  बुरी  आदतें  आ   गईं  थीं  , उसके  दुर्व्यसनों  के  कारण  महात्मा  गाँधी  भी  उसे  पसंद  नहीं  करते  थे  l  कुछ  अवसरों  पर  तो  उन्होंने  अपने  इस  बेटे  को  स्वीकार  करने  से  भी  मना  कर  दिया  था  l दुर्व्यसनों  और  कुटेवों  के  कारण  हरिलाल  पर  कर्ज  भी  चढ़  गया  था   l
  धर्म - परिवर्तन  के  काम  में  जुटी  संस्थाओं  ने   हरिलाल  को  इस  शर्त  पर  आर्थिक  सहायता  दी  कि  वह  अपना  धर्म  छोड़कर  दूसरा  धर्म  अपना  लेगा  l  हरिलाल   ने    यह  शर्त  स्वीकार   कर  ली  l  महात्मा  गाँधी  से  उस  अवसर  पर  पत्रकारों  ने  पूछा   कि  अब  आपका  क्या  कहना  है  ,  आपका  पुत्र  धर्म  बदल  रहा  है  l  गांधीजी  ने  कहा  था   कि  जो  लोग  धर्मांतरण  को  सही मान  रहे  हैं  ,  वे  गलत  हैं   l  हरिलाल  यदि  किसी  प्रलोभन  के  कारण  धर्मांतरण  कर  रहा  है  , तो  कल  कुछ  और  संस्थाएं   उसे  वापस  भी  ला  सकती  हैं   l  कुछ  महीनों  बाद  सनातन  धर्म  के  नेताओं  ने   हरिलाल  को  समझा - बुझाकर   वापस  हिन्दू  बना  लिया   l  ' धर्मांतरण '  और  ' परावर्तन '  के  काम  में  लगीं  संस्थाओं  को  महात्मा  गाँधी ने  समानधर्मा  कहा  है  l  उनमें  भी  ' परावर्तन '  करने  वाली  संस्थाओं  को  सराहा  है  क्योंकि  वे  एक  भूल  को  सुधारने  में  लगी  हुई  हैं   l  

13 August 2019

WISDOM -----

  एक  दिन  बर्नार्ड  शा  के  यहाँ  कोई  हिन्दुस्तानी  गया  l  वह  बताने  लगा  कि  हिंदुस्तान  की  पुरानी  संस्कृति  ऐसी  थी,  पुराने  लोग  ऐसे  थे  l  इस  पर   बर्नार्ड  शा  ने  कहा --- बस  साहब  !  यहीं  रहने  दीजिए  l  अगर  आप  ज्यादा  पुरानी  बात   कहेंगे  ,  तो  आपको  यह  भी  कहना  पड़ेगा  की  हम  बन्दर   की  संतान  थे  l
पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य  ने  अपने  एक  प्रवचन  में  कहा  है ---'  पुरानी  बात  तो  बूढ़े  आदमी  करते  हैं  l  जिनका  एकाग्र मन   बुढ़ापे  में  डूब  गया  है  ,  वे  पुरानी  बातों  का  रस  ले - लेकर  के  जिन्दा  रहते  हैं  l  हम  अपनी  मानसिकता  को  परिपक्व  बनायें  l   स्वयं  को  ईश्वर  की  संतान  माने  ,  ईश्वर  ने  हमें  इस  धरती पर  श्रेष्ठ कार्य  करने  के  लिए  भेजा  है  l  वर्तमान  का  सदुपयोग  करें ,  जो  वर्तमान  को  साध  लेता  है ,  वह  अगला , पिछला  सभी  को  साध  लेता  है  l '

12 August 2019

WISDOM ----

पुराणों  की  कथाएं  हमें  बहुत  कुछ  सिखाती  हैं   l  ईश्वर  हमारे  सामने  वरदान  देने  आ  भी  जाएँ  , व्यक्ति  उनसे  वही  मांगता  है  जैसी  उसकी  प्रवृति ,  उसके  आचार - विचार  होते  हैं  ,  सद्बुद्धि  न  होने  के  कारण  उसको  मिला  हुआ  वरदान  ही  उसके  नाश  का कारण  बन  जाता  है   l  कथा  है ----
          भस्मासुर  ने   कठिन  तपस्या  की  ,  शिवजी  प्रसन्न  होकर  उसे  वरदान  देने  आये   l  वह  चाहता  तो  बहुत  कुछ  अच्छा  मांग  सकता  था   लेकिन  स्वयं  की  प्रवृति  दूषित होने  के  कारण  दुर्बुद्धि  हावी  हो जाती  है  ,  भगवान  से  मांग  बैठा  कि  जिसके  सिर  पर  हाथ  रख  दे  वह  भस्म  हो  जाये  l  शंकरजी  तो भोलेनाथ  हैं  ,  कह  दिया  तथास्तु  !   इस  वरदान  से  भी  वह  चाहता  तो  दुष्टों का  दमन  करता  ,  लोगों  का  कल्याण  कर  के  राज्य  में  सुख - शांति  स्थापित  करता  लेकिन  वह  तो  इस वरदान  के  बल पर  अपने  को महा शक्तिशाली  बताना  चाहता  था  l  उसने  लोगों  को  भस्म  करना  शुरू  कर  दिया ,  चारों  और  त्राहि - त्राहि  मच  गई  l  अनेक  विचारशील  लोगों  ने  मिलकर  सलाह  की  कि  कैसे  इस  अत्याचारी  से  छुटकारा  मिले  ?
उन्होंने  भस्मासुर  को  सलाह  दी --- '  इस  तरह  लोगों  को  भस्म  कर  के  उसे  क्या  मिलेगा  ?  इससे  अच्छा  है  कि  शंकरजी  के  सिर  पर हाथ  रख  दो , उन्हें  भस्म  करके  पार्वतीजी  से  विवाह  कर  लो ,  कैलाश पर्वत  भी  तुम्हारा  होगा  l '   दुर्बुद्धिग्रस्त  भस्मासुर  को  यह  सलाह  बड़ी  पसंद  आई  l  वह  चला  शिवजी  के  सिर  पर  हाथ  रखने ----  जिसने  वरदान  दिया  उन्ही  को  भस्म  करने  चला   l  कथा  आगे  है  ----   शिवजी  स्वयं  अपने  वरदान  के  आधीन  थे  ,  अत:  अपनी  रक्षा  के  लिए  विष्णु लोक  पहुंचे    और  विष्णुजी  को  अपने  वरदान  की  बात  बताई  कि  अब  वह  यहाँ  भी  पहुँच  रहा  है   l------- जब  भस्मासुर  वहां  पहुंचा  तो  विष्णु  भगवान  ' मोहिनी ' रूप  में  उसके  सामने  थे   l  ' मोहिनी '  का  अप्रतिम   सौन्दर्य    देखकर  वह  अपनी  सुध - बुध  खो  बैठा  ,  मोहिनी  रूपधारी  भगवान  ने  उससे  कहा  ---जैसा  मैं  नृत्य  करूँ  ,  वैसा  ही  तुम  करो  l  बेसुध  होकर  भस्मासुर  उनके  जैसी   नृत्य  की  मुद्रा  में  नृत्य  करने  लगा  l  नृत्य  करते - करते  जब  मोहिनी  ने  अपने  सिर  पर  हाथ  रखा  तो  भस्मासुर  ने  भी  अपने  सिर  पर  हाथ  रखा  और  वरदान  के  अनुसार  उसी  समय  जलकर  भस्म  हो  गया   l
कथा  का  अभिप्राय  यही  है कि  सद्बुद्धि  के  आभाव  में   व्यक्ति  स्वयं  को  मिले  हुए  सुख - साधनों  का  दुरूपयोग  करता  है  और
  

11 August 2019

WISDOM ------

 खलील  जिब्रान  ने   अपने  ' निफ्स  ऑफ  वेली ' नामक  संग्रह  में  लिखा  है ---- " अपने  को  सभ्य  कहने  वाला  मनुष्य   आज  कितना  बनावटी  हो  चला  है   l  बात - बात  पर  अभिनय  करने  वाला  , समय - समय  पर   भिन्न - भिन्न  मुखौटे   ओढ़ने  की  विडम्बना  में   फंसा  हुआ  आज  का  मनुष्य   बोता  तो  बहुत  है   किन्तु  काटता  कुछ  नहीं  l  उसके  जीवन  का  सारा  रस  ही  इस  दोहरेपन  ने  चूस  लिया  है   l " 
    खलील  जिब्रान  ने  एक  छोटी  सी  कथा  लिखी  है  ----- उनका  एक  मित्र  अचानक  एक  दिन  पागलखाने  में  रहने  चला  गया  l  वह  जब  उससे  मिलने  गए   तो  उन्होंने  देखा  उनका  वह  मित्र  पागलखाने  के  बाग  में   एक  पेड़  के  नीचे   बैठा  मुस्करा  रहा  था  l  पूछने  पर  उसने  कहा  ---- " मैं  यहाँ  पर  बड़े  मजे  से  हूँ  l  मैं  बाहर  के  उस  बड़े  पागलखाने  को  छोड़कर  इस  छोटे  पागलखाने  में  शांति  से  हूँ  l  यहाँ  पर कोई  किसी  को परेशान  नहीं  करता  l  किसी  के  व्यक्तित्व  पर  कोई  मुखौटा  नहीं  है  l  जो  जैसा  है ,  वह  वैसा  है   l    न  कोई  आडम्बर  है  ,  न  कोई  ढोंग  l " 

10 August 2019

WISDOM -------

 छोटी - छोटी  नैतिक  व  चारित्रिक  दुर्बलताएं  जीवन  की  बड़ी - बड़ी  त्रासदियों  और  दुर्भाग्यों  को  जन्म  देती  हैं  l  इच्छा  शक्ति  की  दुर्बलता  के  कारण  ही  व्यक्ति  छोटे - छोटे  प्रलोभनों एवं  दबावों  के  आगे  घुटने  टेक  देता  है   और  उतावलेपन  में  ऐसे   दुष्कृत्य  कर  बैठता  है  कि  बाद  में   पश्चाताप  के  अतिरिक्त  कुछ  हाथ  नहीं  लगता  l 
  महाभारत में  प्रसंग  है ---- भगवान  कृष्ण  दुर्योधन  को  समझाने  के  लिए  हस्तिनापुर  जाते  है   l  कहते  हैं  सिर्फ  पांच  गाँव  पांडवों  को  दे  दो  ,  यह  युद्ध  टल   जायेगा   l  लेकिन  दुर्योधन  सुई  की  नोंक  बराबर  भूमि  भी  देने  को  तैयार  नहीं  होता   l बार - बार  समझाने  पर  भगवान  श्रीकृष्ण  से  कहता  है ---
           जानामि  धर्मं  न  च   मे  प्रवृति:  l    जानाम्यधर्मं  न   च  मे  निवृति :   l
 '  धर्म  को ,   क्या  सही  है  ,  इसको  मैं  जानता  हूँ    किन्तु  इसको  करने  की   ओर   मेरी  प्रवृति  नहीं  होती  l 
  इसी  तरह  अधर्म  को  ,   जो  अनुचित  व  पापमय  है  ,  इसको  भी मैं  जानता  हूँ    किन्तु  इसको  करने  से   मैं  नहीं  रोक   सकता   l  '  
  जब  व्यक्ति   पर  दुर्बुद्धि  हावी  होती  है  ,  व्यक्ति  जिद्दी  व  अहंकारी  होता  है   तब  साक्षात्  भगवान  भी  उसे  समझाने  आयें ,  जीवन  की  सही  दिशा  दिखाएँ ,  तब  भी  वह  नहीं  समझता  l   दुर्योधन  की  तरह   गलत  राह  चुनता  है   l 
आज  मनुष्यों  पर  ऐसी  ही  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  है   l   ईश्वर  से   सद्बुद्धि  की प्रार्थना  करने  से  जब  विवेक  जागेगा , सद्बुद्धि  होगी  तभी  एक  सुन्दर  और  स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  होगा  l 

8 August 2019

WISDOM ------ शक्ति का सदुपयोग जरुरी है

  पुराणों  की  एक  कथा  है ---- श्रुतायुध  के  पास  शंकर जी  के  वरदान  से  प्राप्त  एक  अमोघ  गदा  थी  l  उसके  तप  से  प्रसन्न  होकर  भगवान  ने  यह  गदा उसे  इस  शर्त  पर  दी  थी  कि  वह    उसका  प्रयोग  अनीति पूर्वक  नहीं  करे   l     यदि  वह  ऐसा  करेगा  तो  वह  लौटकर   उसी  का  विनाश  कर  देगी  l   महाभारत  के  युद्ध  में   जब  श्रुतायुध  को  अर्जुन  से  युद्ध  करना  पड़ा  l  तब  सारथी  का  कार्य  करते  हुए   भगवान  कृष्ण  किसी  बात  पर  हँस  पड़े  l  श्रुतायुध  को  लगा  कि   वे  उसकी  कुरूपता  पर  हँस  रहे  हैं  l  उसने  आवेश  में  आकर  अपनी  अमोघ  गदा   श्रीकृष्ण  पर   फेंक  चलाई  l  उसे  यह  भी  ज्ञात  न  रहा  कि  उसके  साथ  क्या  शर्त  जुड़ी  है  l  गदा कृष्ण  तक  न  पहुंची  और  बीच  से  ही  वापस  लौटकर  श्रुतायुध  पर  गिर  पड़ी  l  उसका  शरीर  क्षत - विक्षत  होकर  भूमि  पर  गिर  पड़ा   l  महाभारत  के  युद्ध  को  संजय  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से  देख  रहे  थे  l  यह  समाचार  सुनाते  हुए  बोले  ---- ' राजन  !  मनुष्य  को  समस्त  शक्तियां  श्रुतायुध  की  गदा  की  तरह   सदप्रयोग  के  लिए  मिली  हैं  , जो  उन्हें  अनीति पूर्वक    प्रयोग  करते  हैं  ,  वे  अपने  पाप  से  आहत   होकर    इसी  तरह  स्वयं  ही  विनाश  को  प्राप्त  होते  हैं  l  

WISDOM -----

 मनुष्य  कितने  बड़े  संकल्प  कर  सकता  है  और  उन  संकल्पों  को  साकार  भी  कर  सकता  है  l  लेकिन  यदि  यह  सब  अपने  अहम्  की  तृप्ति  के  लिए  किया  है  तो  यह  मनुष्य  की  बहुत  बड़ी  भूल  है  l  जब  कोई  संकल्प  दूसरों  के  हित  का  ध्यान  रखकर  किया  जाता  है  , उसमे ' बहुजन  हिताय , बहुजन  सुखाय '  का  सपना  होता  है   तो  उसकी  दिशा  सही  मानी  जाती  है  , उसके  लिए  किये  गए  प्रयासों  में  सफलता  मिलती  है  और  जीवन  सार्थक  होता  है  l  संकल्प  के  पीछे  यदि  स्वार्थ  और  अहंकार  है   तो  जीवन  के  सार्थक  होने  का  प्रश्न  ही  नहीं  होता  l 

7 August 2019

WISDOM ---- सामाजिक जीवन में फैले हुए अनाचार , भ्रष्टाचार और दुष्प्रवृत्तियों को रोका जाये और उनसे लड़ा जाये

पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग  में  लिखा  है --- " पाप  और  दुष्प्रवृति  को  जड़  से  काटने  के  लिए  क्रांति  और  संघर्ष  करना  पड़ता  है  l  बढ़ती  हुई  दुश्चरित्रता , दंगा - फसाद , लूट - पाट, दहेज - के  लिए क्रूरता , अन्धविश्वास  आदि  के  समाचार  तो  लोग  पढ़ -सुन  लेते  हैं  पर  अर्द्ध - मृत  जीव  की  तरह  उनकी  इतनी  भी  हिम्मत  नहीं  होती  कि  कम  से  कम  अपने  ही  क्षेत्र  में  उस  दुष्प्रवृति  को  मिटाने  का  प्रयत्न  करें  l  दुष्प्रवृत्तियों  के  विरुद्ध  संघर्ष और  सत्याग्रह  के  इस  अभाव  के  कारण  ही    आज  संसार  में  बुराइयाँ  पनप  रही  हैं  l   "
 अमेरिका  में   राष्ट्रपति  कैनेडी  के  शासन  के  समय  एटार्नी  बैंजहाफ  ने  जब ' धूम्रपान  का  स्वास्थ्य  पर  प्रभाव '  की  रिपोर्ट  पढ़ी  तो  वे  अकेले  ही  ' सिगरेट  छोड़ो ' अभियान  चलाने  के  लिए  उठ  खड़े  हुए  l  अमेरिका  जैसे  देश  में  जहाँ  सिगरेट  उद्दोग  बड़े - बड़े  पूंजीपतियों  के  हाथ  में  है  , उन्होंने  यह  साहस  किया  l  उन्होंने  नारा  दिया  ---- चढ़ती  आयु और  शक्ति  का  तकाजा  यह  नहीं  कि  हम  अपने  लिए  कितना  कर  लेते  हैं   वरण  शान  इसमें  है  कि   हम  सदाचार , सत्प्रवृति  और  मानवता  की  रक्षा  के  लिए  कितना  त्याग  और  उत्सर्ग  कर  सकते  हैं  l  '
wisdom

5 August 2019

WISDOM

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  लिखा  है  --- 'इस  दुनिया में  सुखी  और  संतुष्ट  जीवन  जीने  के  लिए  व्यवहार  करने  की  कला  सीखनी  चाहिए  l सांसारिक  व्यक्तियों  की  वृत्तियाँ  दूषित  होती  हैं , इस  कारण  उनका  व्यवहार  कभी  अच्छा  और  कभी  बुरा  होता  है  l उनसे  रिश्ता  निभाने  का  सही  तरीका  यही  है  कि उनसे  उनके  अच्छे भावों  व  विचारों  के  बारे  में  ही  बातचीत  की  जाये  , कभी  भी  किसी  के  प्रति  बुराई  को  अपनी  चर्चा  का  विषय  न  बनाया  जाये  l   हम  किसी  भी  व्यक्ति  की  बुराई  के  कारण  उस  व्यक्ति  से  नफरत  करने  लगते  हैं , उसके  प्रति नकारात्मक  सोचने  लगते  हैं  , उससे  क्रोधित  होते  हैं  l  इस  तरह  दूसरे  व्यक्ति  की  बुराई  तो  यथावत  रहती  है  , लेकिन  उसकी  लगातार  निंदा  करने  के  कारण  हम  अपनी  वृत्तियाँ  भी  दूषित कर  लेते  हैं  l  हम  अपने  अन्दर  की  नकारात्मकता  को  दूर  करते  हुए  सकारात्मकता  को  बढ़ावा  दें  l  

4 August 2019

WISDOM -----

संसार  में  युद्ध  के  विरुद्ध  मैत्रीपूर्ण  शांति  का  प्रयास  करने  वाले   फ्रांस  के  फ्रैडरिक  पासी  को  शांति  का  नोबेल  पुरस्कार  दिया  गया  l   वह  कहते  थे ---- "  युद्ध  मनुष्य  की  सबसे  पाशविक  वृत्ति  है  l  वह  इसे  स्वयं  रचता  है    और  अपना  विनाश  करता  है   l   मनुष्य  मूल  रूप  से  शांति प्रिय  है  l  वह  युद्ध  , संघर्ष  तथा  रक्तपात  नहीं  चाहता  l  संसार  में  कुछ  थोड़े  से  स्वार्थी , अहंकारी  अथवा  कुसंस्कारी  व्यक्ति  ही  इस  विभीषिका  को  जन्म  देते  हैं  l  "
  अपनी  आलोचना  करने  वालों  को  वे  कहते  थे  ---- "  पैसा  ही  संसार  में   सब  कुछ  नहीं  है  l  असत्य  के  आधार  पर  अमीर  होने  की  अपेक्षा   सत्य  के  आधार  पर   गरीब  रहना  मैं   हजार  गुना  अच्छा  समझता  हूँ  l  दूसरों  को  लूटने - खसोटने  तथा  दुःख  देने  में  बुद्धि  का  प्रयोग  करना  मेरे  विचार  से  सबसे  बड़ी  मूर्खता  है   l  "  

3 August 2019

WISDOM -----

 संस्कृत  भाषा  में  एक  सुभाषित  है  कि  ' धनवान  अथवा  राजा  तो  अपने  देश  में  ही  पूजा  जाता  है  l ' पर  विद्वान्  सर्वत्र  पूजनीय  होता  है  l  जिन  दिनों  भारत  गुलाम  था  और  गोरी  जातियां  भारतीयों  को  उपेक्षित  और  अपमानित  करती  थीं  उस  समय  भी  विश्व कवि  रवीन्द्रनाथ टैगोर   विश्व भ्रमण  पर  जिस  भी  देश  में  गए  उन्हें  राजा - महाराजाओं  जैसा  सम्मान  मिला  l  उस  समय  की  ब्रिटिश  सरकार  ने  उन्हें  'सर '  अथवा  ' नाइट '  की  उपाधि  दी  l
  विश्व  कवि    भारत वासियों  पर  होने  वाले  सरकारी  अन्याय  का  खुलकर  विरोध  करते  थे  l  ' जब  जलियांवाला  बाग  का  हत्याकांड  हुआ  तब  उन्होंने  ' सर ' की  पदवी  को  वापस  कर  दिया  l   इस  अवसर  पर  उन्होंने  वाइसराय लार्ड  चेम्सफोर्ड  को  एक  लम्बा  पत्र  लिखा  ,  जिसमे  कहा  गया  ---- "  हमारी  आँखें  खुल  गईं  हैं  कि  हमारी  अवस्था  कैसी  असहाय  है  l  अभागी  भारतीय  जनता  को  इस  समय  जो  दंड  दिया  गया   उसका  उदाहरण  किसी  सभ्य  सरकार  के  इतिहास  में  नहीं  मिल  सकता  l  पर  हमारे  शासक  इस  कृत्य  के  लिए  अपने को  शाबाशी   दे  रहे  हैं  कि  उन्होंने  भारत वासियों  को  अच्छा  सबक  सिखा  दिया  l  अधिकांश  ऐंग्लो इंडियन  समाचार  पत्रों  ने  इस  निर्दयता  की  प्रशंसा  की  है   और  उनमे  से  कुछ  ने  तो  पाशविकता  की  सीमा  पर  पहुंचकर  हमारी  यातनाओं  का  उपहास  भी  किया  ---- जनता  के  साथ  सहानुभूति  रखने  वाले   भारतीय  समाचार  पत्रों  का  गला  दबाया  l   इस  अवसर  पर  कम  से  कम  इतना  तो  कर  ही  सकता  हूँ  कि  अपने  उन  करोड़ों  देशवासियों  की  विरोध  की  भावना  को  व्यक्त  करूँ , जो  आतंक  और  भय  के  कारणचुपचाप  सरकारी  दमन  को  सह  रहे  हैं  l  सरकार  द्वारा  प्रदत्त  ' सम्मान  के  पट्टे ' राष्ट्रीय  अपमान  के  साथ  मेल  नहीं  खाते  l  अत:  मैं  विवश  होकर  सादर  प्रार्थना  करता  हूँ  कि  आप  मुझे  ' सम्राट  की  दी  हुई  नाईट  की  उपाधि से  मुक्त  कर  दें  l  "  महाकवि  ने  यह  दिखला  दिया  कि  जहाँ  मानवता  और  राष्ट्रीयता  का  प्रश्न  उपस्थित  हो  ,  वहां  प्रत्येक  क्षेत्र  के  व्यक्ति  को  आगे  बढ़कर  अन्याय  का  विरोध  कर   अपना  दायित्व  निभाना  चाहिए  l  

2 August 2019

WISDOM ----

स्वामी  दयानन्द  सरस्वती के  जीवन  का  सर्वोपरि  उद्देश्य  हिन्दू  जाति  में  प्रचलित  हानिकारक  विश्वासों , कुरीतियों  को  मिटाना  l  अलीगढ़ में  मुसलमानों  के  सबसे  बड़े  नेता  सर  सैयद  अहमद  खां  स्वामीजी  से  भेंट  करने  कई  बार  आये  l  एक  दिन  उन्होंने  कहा ---- "  स्वामीजी, आपकी   अन्य  बातें  तो  युक्ति युक्त   जान  पड़ती हैं  ,  पर  यह  बात  कि  थोड़े  से  हवन  से   वायु  का  सुधार  हो  जाता  है  , युक्ति संगत  नहीं  जान  पड़ती  l "
 स्वामीजी  ने  पूछा --- " आपके  यहाँ  कितने  मनुष्यों  का  भोजन  बनता  है  ?
 उत्तर  मिला ---- कोई  पचास - साठ  का  l '  स्वामीजी  ने  फिर  कहा --- "  आपके  भोजन  में  दाल  कितने  सेर  पकती  होगी  ?  "   उन्होंने  कहा --- "  यही  कोई  छह - सात  सेर  l " 
स्वामीजी  ने  फिर  पूछा --- "  इतनी  दाल  में  कितनी  हींग  का  छौंक  दिया  जाता  होगा  ? " 
 उत्तर मिला  --- " माशा  भर  से  कम  तो  हींग  न  होती  होगी  l  "
 तब  स्वामीजी  ने  सर  सैयद  को  समझाया  कि  जिस  तरह  माशा  भर  हींग  पचास  आदमियों  की  दाल  को  सुगन्धित  बना  देती  है  उसी  प्रकार  थोड़ा  सा  हवन   भी   वायु  को  सुगन्धित  बना  देता  है  l  स्वामीजी  के  इस  तर्क  से  सभी  श्रोता  प्रभावित  हो  गए  और  सर  सैयद  भी  उनकी  स्तुति  करते  हुए  अपने  घर  गए   l    स्वामीजी  जो  कुछ  करते  थे  उसमे  मानव  कल्याण  की  भावना  होती  थी  l
            एक  लेख  में  उन्होंने  लिखा  था ---- " जो  सज्जन  सार्वजनिक  हित  को  लक्ष्य  में  रखकर  कार्य  में  प्रवृत  होता  है   उसका  विरोध  स्वार्थी  जन  तत्परता  से  करने  लग  जाते  हैं  l  उनके  मार्ग  में  अनेक  प्रकार  की  विध्न - बाधाएं  डालते  हैं  l  परन्तु  सत्यमेव  जयते   के  अनुसार   सदा - सर्वदा  सत्य  की  विजय  होती  है   और  असत्य  की  पराजय  होती  है  l  सत्य  से  ही  विद्वानों  का  मार्ग  विस्तृत   हो  जाता  है  l  इस  द्रढ़  निश्चय  के  अवलंबन  से   आप्त  लोग  परोपकार  करने  से  उदासीन  नहीं  होते   l  

1 August 2019

WISDOM -----

 स्वार्थ  के  वशीभूत  मनुष्य  इतना  लालची  हो  जाता  है  कि  उसे  घ्रणित  दुष्कर्म  करने  में  भी  लज्जा  नहीं  आती   l  तृष्णा  के  वशीभूत  होकर  लोग  अनीति  का  आचरण  करते  हैं  और  वह  अनीति  ही  अंततः  उनके  पतन  एवं  सर्वनाश  का  कारण  बनती  है  l  
  कोई  कितना  ही  शक्तिशाली  , बलवान  क्यों  न  हो  ,  स्वार्थपरता  और  दुष्टता   का  जीवन बिताने  पर  उसे  नष्ट  होना  ही  पड़ता  है  l 
 रावण   के  बराबर  पंडित , वैज्ञानिक , कुशल  प्रशासक  , कूटनीतिज्ञ  कोई  भी  नहीं  था  , लेकिन  परस्त्री  अपहरण , राक्षसी  आचार - विचार एवं  दुष्टता  के  कारण  कुल  सहित  नष्ट  हो  गया  l 
  कंस  ने  अपने  राज्य  में  हा हाकार  मचवा  दिया  l  अपने  बहन  और  बहनोई  को  जेल  में  बंद  कर  उनके  नवजात  शिशुओं  को  पटक - पटक  कर  मार  डाला  l  उसके  राज्य  में  छोटे - छोटे  बालक  भी  सुरक्षित  नहीं  थे  l  लोगों  में  भय  और  आतंक  का  वातावरण  पैदा  किया   अंत  में  वह  भगवान  कृष्ण द्वारा  बड़ी  दुर्गति  से  मार  दिया  गया  l  
   हिरन्यकश्यप  और  हिरण्याक्ष  जैसे  बलवान  योद्धाओं  को  आसुरी  वृतियों  के  कारण    नष्ट  होना  पड़ा  l
 दुर्योधन  ने  अपने  भाइयों  का  हक़  छीना,  उन्हें  कभी  सुख - चैन  से  रहने  नहीं  दिया  l  अंत  में  वह  अपने  शक्तिशाली  भाइयों  समेत  मारा  गया  l 
 पुराणों  में , इतिहास  में  ऐसी  अनेकों  गाथाएं  भरी  पड़ी  हैं  कि  कैसे  अत्याचारी , अन्यायी  राजाओं , सम्राटों   और  आक्रमणकारियों  का  बुरा  अंत  हुआ  l  महत्वपूर्ण बात  यह  है  कि  किसी  भी  अत्याचारी  का  अंत  अकेले  नहीं  हुआ  ,  जिसने  भी  उसका  साथ  दिया  , वह  उन  सबको  अपने  साथ  ले  डूबा  l  
 लोगों  पर  दुर्बुद्धि   इस  कदर  हावी  हो  जाती  है  कि  वे  छोटे - छोटे  लालच  व  स्वार्थ  के  लिए  अत्याचारी  का  साथ  देते  हैं  और  अपने  साथ  अपने  परिवार  को  भी  संकट  की  स्थिति  में  डाल  देते  हैं  l