12 March 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----  " मनुष्य  की  आत्मा  में   विवेक  का  प्रकाश  कभी  भी  पूर्णतया  नष्ट  नहीं  हो  सकता  l  इसलिए  पाप  का  पूर्ण  साम्राज्य  कभी  भी    छा    नहीं  सकेगा  l  विवेकवान  आत्माएं  अपने  समय  की   विकृतियों  से  लड़ती  ही  रहेंगी   और  बुरे  समय  में  भी  भलाई   की  ज्योति  चमकती  रहेगी  l "         लघु -कथा ----  शिष्य  ने  प्रश्न  किया  --- " गुरुदेव  !  जब   संसार  में  सभी  आदमी  एक  ही  तत्व  के   एक  से  बने  हैं  ,  तो  यह  छोटे -बड़े  का  भेदभाव  क्यों  है  ? "  गुरु  ने  उत्तर  दिया  ---- "  वत्स  !  संसार  में  छोटा -बड़ा  कोई  नहीं  ,  यह  सब  अपने -अपने  आचरण  का  खेल  है  l  जो  सज्जन  हैं  वे   बड़े  हो  जाते  हैं  ,  जबकि  नेकी  और  सज्जनता  के  अभाव   में  वही  छोटे  कहलाने   लगते  हैं  l  "    शिष्य  की  समझ  में  यह  बात  आई  नहीं  l    तब  गुरुदेव  ने  उसे  समझाया  कि   युधिष्ठिर  अपने  आचरण  के  कारण  ही  धर्मराज  कहलाए  l  जब  महाभारत  का  युद्ध  हो  रहा  था    तब  युधिष्ठिर  शाम  को  वेश  बदलकर   कहीं  जाते  थे  l  भीम  अर्जुन  आदि  की  इच्छा  हुई   कि   देखें   आखिर  वे  वेश  बदलकर   कहाँ  जाते  है  l   शाम  को  युद्ध  विराम  होने  पर  जब  युधिष्ठिर  वेश  बदलकर  निकले  तो  चारों  पांडव  छुपकर  उनके  पीछे  चल  दिए  l   उन्होंने  देखा  कि  युधिष्ठिर  युद्ध  स्थल  पहुंचे  और  वहां  घायल  पड़े  लोगों  की  सेवा  कर  रहे  हैं   l   घायल    व्यक्ति  कौरव  पक्ष  का  हो  या  पांडव  पक्ष  का  वे  बिना  किसी  भेदभाव  के  सबको  अन्न -जल    खिला -पिला  रहें  हैं  l  किसी  को   घायल  अवस्था  में  अपने  परिवार  की  चिंता  है  तो  उसे  आश्वासन  दे  रहे  हैं  l  अपने  निश्छल  प्रेम  और  करुणा  से   वे  घायलों   व  मरणासन्न  लोगों  के  कष्ट  कम  कर  रहे  हैं  , उनकी  उपस्थिति  ही  सबको  शांति  दे  रही  है  l   रात्रि  के  तीन  पहर  बीत  जाने  पर  जब  वे  लौटे   तो  अर्जुन  ने  पूछा  ---- ' आपको  छिपकर , वेश  बदलकर  आने  की  क्या   जरुरत  थी  ? "   युधिष्ठिर  ने  कहा  --- तात !   इन  घायलों  में  से  अनेक  कौरव  दल  के  हैं  ,  वे  हम से  द्वेष  रखते  हैं  l   यदि    मैं  प्रकट  होकर  उनके  पास  जाता   तो  वे  अपने  ह्रदय  की  बातें  मुझसे  न  कह  पाते   और  मैं  सेवा  के  सौभाग्य  से  वंचित  रह  जाता  l "  भीम  ने  कहा  --- "  शत्रु  के  सेवा  करना क्या  अधर्म  नहीं  है  ? "   युधिष्ठिर  ने  कहा --- "  बन्धु  !  शत्रु  मनुष्य  नहीं  पाप  और  अधर्म  होता  है  l  आत्मा   से  किसी  का  कोई  द्वेष  नहीं  होता   l  मरणासन्न  व्यक्ति   के    मृत्यु  के  कष्ट  को  यदि  हम  कुछ  कम  कर  सकें  तो  यह  हमारा  सौभाग्य  होगा  l "   नकुल  ने  कहा --- "  लेकिन  महाराज  ,  आपने  तो  सर्वत्र  यह  कह  रखा  है   कि   शाम  का  समय   आपकी  ईश्वर -उपासना  का  है  ,  इस  तरह  झूठ  बोलने  का  पाप  आपको  लगेगा  l  "  युधिष्ठिर  बोले  --- " नहीं  नकुल  !   भगवान  की  उपासना  जप , तप  और  ध्यान  से  ही  नहीं  होती  ,  कर्म  भी  उसका  उत्कृष्ट  माध्यम  है  l  यह  विराट  जगत  उन्ही  का  प्रकट  रूप  है  l  जो  दीन -दुःखी  हैं   ,  उनकी  सेवा  करना ,  जो  पिछड़े  और  दलित  हैं   उन्हें  आत्म कल्याण  का  मार्ग  दिखाना   भी  भगवान  का  ही  भजन  है  l  इस  द्रष्टि  से  मैंने  जो  किया  वह  ईश्वर  की  उपासना  ही  है  l    सत्य  और  धर्म  का  आचरण  करने  के  कारण  ही  वे  धर्मराज  कहलाए  l