18 September 2022

WISDOM -----

 मनुष्य  के  जीवन के  विभिन्न  पक्ष  हैं  ,इनमें  सबसे  महत्वपूर्ण  है  आर्थिक  पक्ष  l  आर्थिक  क्षेत्र  में  विकार  आ  जाने  से  ही  जीवन  का  प्रत्येक  पक्ष  गड़बड़ा  जाता  है  l  संसार  में  जो  बड़ी -बड़ी  क्रांतियाँ  हुई  हैं  उनके  मूल  में  जो  कारण  था  वह --आर्थिक  था  l  एक  समय  था  जब  केवल  व्यापार  -व्यवसाय  में  हानि -लाभ  देखा  जाता  था  l  आज  संसार  में  इतनी  अधिक  समस्याएं  इसलिए  हैं  कि  जीवन  का  प्रत्येक  क्षेत्र  व्यवसाय  बन  गया  है  , इस  कारण  उस  क्षेत्र  की  पवित्रता  समाप्त  हो  गई  है  l  ईमानदारी  ,सच्चाई  से  काम  करने  वाले  बहुत  हैं   लेकिन  उनकी  तुलना  में  दीमक  की  प्रकृति  की  संख्या  बहुत  अधिक  है  l  अमीर  और  गरीब  को  देखने  का  नजरिया  भी  भिन्न  है   l  एक  वृद्ध  व्यक्ति  मजदूरी  करे , ठेला  चलाए ,  बहुत  मेहनत  कर  के  परिवार  का  पालन पोषण  करे  तो  वह  दया  का  पात्र  है  लेकिन  वह    व्यक्ति  जिसने  जीवन  में  नौकरी  कर  के  पर्याप्त  धन  कमा  लिया , उसके  पास  जमा -पूंजी   आदि  सब  कुछ  है  लेकिन  फिर  भी  वह  और  धन  कमाने  के  लिए  , समाज  में  अपनी  पहचान  बनाये  रखने  के  लिए   या  समय  व्यतीत  करने  के  लिए  कहीं  न  कहीं  जुड़ा  है  ,  अब  क्योंकि  वह  समर्थ  है  इसलिए  उसके  प्रति  कोई  भाव  नहीं  है  जबकि  सत्य  ये  है  कि  ऐसे  व्यक्ति  कहीं  काम  कर  के  युवा  पीढ़ी  का  हक  छीन  रहे  हैं  l  धन  को  ही  स्टेटस  सिम्बल  माना  जाने  के  कारण  अब  ऐसे  व्यक्ति  समाज  को  अपने  ज्ञान  का  लाभ  नहीं  देते  बल्कि  सारे  गुर ,  सभी  बारीकियां  समझ  आ  जाने  के  कारण   भ्रष्टाचार  में  बड़ा  योगदान  देते  हैं  l  इन  सबके  पीछे  सबसे  बड़ा  कारण  है  ---दुर्बुद्धि  l  दुर्बुद्धि  के  कारण  ही  संसार  में  सारी  समस्याएं  हैं  l 

WISDOM ----

 तुलसीदास जी  ने  कहा  है ----  'कर्मप्रधान  विश्व  करि  राखा  l जो  जस  करहि  सो  तस  फल  चाखा  l   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---' यह  कर्मफल  कभी -कभी  तुरंत  ही  इसी  जन्म  में  मिल  जाता  है  , परन्तु  कभी -कभी  ऐसा  भी  होता  है  कि  दुष्ट  कर्म  करने  वाले  तो  सुखी  और  संपन्न  दिखाई  देते  हैं  तथा  त्यागी , तपस्वी  दुखी  होते  हैं  तो  विश्वास  डगमगा  जाता  है  l  मनुष्य  सोचता  है  कि  जब  दुष्ट  व्यक्ति  आराम  का  जीवन  जीते  हैं  और  सज्जन  कष्ट  पा  रहे  हैं  तो  फिर  त्याग -तपस्या  का  जीवन  क्यों  जिएं  ? यह  भावना  मनुष्य  को  उद्दंड  और  नास्तिक  बना  देती  है  l  विधाता  ने  मनुष्य  को  कर्म  करने  की  छुट  दी  है  , परन्तु  फल  को  अपने  हाथ  में  रखा  है  l  यदि  झूठ  बोलते  ही  मनुष्य  की  जीभ  काटकर  गिर  जाती  , चोरी  करते  ही  हाथ  कट  जाते  तो  व्यक्ति  दुष्कर्म  करने  से  डरता  , किन्तु  कर्म  का  फल  विधि  के  विधान  के  अनुसार  मिलता  है   तो  पापी  व्यक्ति  को  फलता -फूलता  देखकर  मनुष्य  आस्थाहीन  हो  जाता  है  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं --यह  बात  निश्चित  है  कि  ईश्वर  के  यहाँ  देर  है , अंधेर  नहीं  l ''    कर्म  का  फल  कब  और  कैसे  मिलेगा  , यह  काल  निश्चित  करता  है  l एक  कथा  है ------  एक  स्त्री  नि:संतान  थी  l  किसी  तांत्रिक  ने  उसे  बताया  कि  किसी  बच्चे  को  मरवाकर  गड़वा  दे  तो  उसके  संतान  होगी  l  उसने  दूर  गाँव  के  किसी  गरीब  बच्चे  के  साथं  ऐसी  ही  निर्दयता  की  l   ईश्वर  की  लीला  देखिए  उसके  दो  पुत्र  हुए  l  दोनों  ही  बहुत  सुन्दर  और  होनहार   l  उस  स्त्री  के  कर्म  का  जिन्हें  पता  था  , वे  सब  यहो  कहते  थे  कि  देखो  इस  औरत  ने  कितना  नीच  कर्म  किया  और  भगवान  ने  इसको  सजा  देने  के  बदले  दो -दो  बेटे  दे  दिए  l  ईश्वर  के  यहाँ  कितना  अंधेर  है  ?  बच्चे  बड़े  हुए , पढ़ने -लिखने  में  बहुत  होशियार , देखने  में  सुंदर  लेकिन  एक  दिन  दोनों  नदी  में  नहा  रहे  थे  , अचानक  एक  का  पैर  फिसला  l  दूसरा  उसे  बचाने  के  लिए  आगे  बढ़ा  तो  वह  भी  संभल  नहीं  सका  और  दोनों  नदी  में  डूब  गए  l  तब  वह  रो -रोकर  सब  से  यही  कह  रही  थी थी  कि  भगवान  में  मेरे  पाप  की  सजा  मुझे  दे  दी  l  ईश्वर  के  घर  देर  है , अंधेर  नहीं  l '  कर्मफल  का  नियम  स्वयं  ईश्वर  पर  भी  लागू  होता  है  l  भगवान  राम  ने  बालि  को  छिपकर  बाण  मारा  था  ,  अगले  जन्म  में  वे  कृष्ण  बने  और  बालि  बहेलिया  और  उसने  उसी  प्रकार  उसी  बाण   को  उन्हें  मारा  और  उनकी  जीवन  लीला  समाप्त  हुई  l  राजा  दशरथ  ने  श्रवण कुमार  को  तीर  मारा  था  ,  उसके  माता -पिता  की  मृत्यु  पुत्र -शोक  में  हो  गई  l  उनके  शाप  के  कारण  राजा  दशरथ  की  मृत्यु  भी  पुत्र -शोक  में  हुई  l  गीता  में  भगवान  ने  कहा  है --- 'गहना  कर्मणोगति  l '