स्वामी रामतीर्थ उन दिनों अमेरिका में थे l उनके पास एक महिला आई , बड़ी गुमसुम सी , इतनी अवसाद में थी कि कुछ बोल नहीं पा रही थी l l स्वामी रामतीर्थ उसे करुणापूर्ण नेत्रों से निहार रहे थे , और वह रोती जा रही थी l भरे हुए गले से उसने अपनी कथा सुनाई l कथा का सार इतना ही था कि वह प्रेम में छली गई l तन - मन - धन - जीवन सब कुछ निस्सार करने के बाद धोखा मिला , निराशा मिली l उसकी सारी बातें सुनने के बाद स्वामी रामतीर्थ गंभीर भाव से बोले ----- " बहन ! यहाँ हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार ही व्यवहार करता है l जिसके पास जितनी शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक एवं भावनात्मक क्षमता है , वह उसी के अनुसार व्यवहार करने के लिए विवश हैं l जिनकी भावनाएं स्वार्थ व कुटिलता में सनी हैं , वे तो बस केवल क्षमा के पात्र हैं l बड़े ही विवश हैं वे बेचारे !
महिला ने पूछा--- : '" तब क्या जीवन में सच्चा प्रेम पाना असंभव है ? " स्वामी रामतीर्थ ने कहा ----- " नहीं ऐसा नहीं है , सच्चा प्रेम मिलता है पर उन्हें जो सच्चा प्रेम करना जानते हैं | "
उस महिला ने कहा ---- " मेरा प्रेम भी तो सच्चा था l " स्वामीजी ने कहा ----- " नहीं बहिन ! तुम्हारे प्रेम में स्वार्थ की मांग थी , उसमे किसी न किसी अंश में वासना की विषाक्तता घुली थी जबकि सच्चा प्रेम तो सेवा , करुणा व श्रद्धा के रूप में ही प्रकट होता है l "
रामतीर्थ की बातों का मर्म उसकी समझ में आ गया l वह समझ गई कि वासना , कामना , अहंता से मुक्त भावनाओं का नाम प्रेम है l वह अस्पताल में नर्स बन गई , निष्काम सेवा से उसके व्यक्तित्व में अनोखी चमक व तृप्ति थी l
महिला ने पूछा--- : '" तब क्या जीवन में सच्चा प्रेम पाना असंभव है ? " स्वामी रामतीर्थ ने कहा ----- " नहीं ऐसा नहीं है , सच्चा प्रेम मिलता है पर उन्हें जो सच्चा प्रेम करना जानते हैं | "
उस महिला ने कहा ---- " मेरा प्रेम भी तो सच्चा था l " स्वामीजी ने कहा ----- " नहीं बहिन ! तुम्हारे प्रेम में स्वार्थ की मांग थी , उसमे किसी न किसी अंश में वासना की विषाक्तता घुली थी जबकि सच्चा प्रेम तो सेवा , करुणा व श्रद्धा के रूप में ही प्रकट होता है l "
रामतीर्थ की बातों का मर्म उसकी समझ में आ गया l वह समझ गई कि वासना , कामना , अहंता से मुक्त भावनाओं का नाम प्रेम है l वह अस्पताल में नर्स बन गई , निष्काम सेवा से उसके व्यक्तित्व में अनोखी चमक व तृप्ति थी l