12 July 2019

WISDOM ----- धर्म का सच्चा स्वरुप

 चैतन्य  महाप्रभु  ने कहा  है --- जो  लोग केवल  धार्मिक  ग्रन्थ  पढ़  लेने   अथवा  थोड़ा  सा  पूजा - पाठ  कर   कर  लेने  को  धर्मात्मा  का  लक्षण  मान  बैठते  हैं   वे  धार्मिक  नहीं  माने  जा  सकते  l  जब  तक  मनुष्य  नैतिक , चारित्रिक  और  व्यावहारिक  द्रष्टि  से  अपना  सुधार  नहीं  करेगा  तब  तक  वह  धर्मात्मा  कहलाने  का  अधिकारी  नहीं  हो  सकता  l   धर्म  का  पालन  करने  वाला  वही  हो  सकता  है  जो   अन्य  मनुष्यों  का   हित  साधन  करे  ,  किसी  को  शारीरिक , मानसिक  पीड़ा  नहीं  पहुंचाए  l  '
 महात्मा  गाँधी     के  धार्मिक  विचार  थे ---- ' मनुष्य  का ,  चाहे  वह  कितना  ही  महान  क्यों  न  हो  ,  कोई  काम  तब  तक  सफल  और  लाभदायक  न  होगा  ,  जब  तक  उसको  कोई  प्रमाणिक  धार्मिक  आधार न  मिले  l  यहाँ  धर्म  से  मेरा  तात्पर्य  उस  धर्म  से  नहीं  , जो  आप  संसार  के  समस्त  धर्म - ग्रंथों  को  पढ़कर  सीखते  हैं  l  जिस  धर्म  से  मेरा  तात्पर्य  है  उसका  सम्बन्ध  ह्रदय  से  है  l  इस  धर्म  भावना  को  चाहे  हम  किसी  बाहरी  सहायता  से  प्राप्त  करें   और  चाहे  आत्मिक  उन्नति  से  जाग्रत  करें  ,  पर  यदि  हम  किसी  काम  को  उचित   रीति  से  करना  चाहें  तो  हमको  यह  धर्म  भाव  अवश्य  जागृत  करना  पड़ेगा   l  "
   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' सांस्कृतिक  चेतना  के  उन्नायक '  में  लिखा  है ---- ' जो  लोग  थोड़ा  बहुत   ऊपरी   क्रिया - कांड  कर  के  ही  अपने  को  धार्मिक  मानने  लग  जाते  हैं  ,  वे  या  तो  दम्भी  होते  हैं  या  मूढ़  l  सत्य  धर्म  का  सम्बन्ध  ह्रदय  से  ही  रहता  है   और  जो  उसे  समझ  लेता  है  ,  वह  फिर  किसी  धर्म  का  विरोध  या  अपमान  नहीं  करता   l  वह  स्वयं   अपने  समाज  के  अनुसार  ही  बाह्य  आचरण  करता  है  और  अपनी  नियमित  प्रणाली  द्वारा   ईश्वर  की  पूजा , उपासना  भी  करता  रहता  है  , पर  उनके  कारण  न  तो  वह  किसी  का  विरोधी  बनता  है   और  न  कोई  ऐसा  कार्य  करता  है  ,  जिससे  अन्य  लोग  उसके  विरोधी  बन  जाये  l   वह  सदैव  इस  बात  को   द्रष्टि  में  रखता  है  ,  कि  जब  सब  लोगों  का   ईश्वर  एक  ही  है  ,  तो  फिर  आपस  में  वैर - विरोध  रखने  की  क्या  आवश्यकता  है   ? '