8 January 2020

WISDOM ----

  इनसान   का  जीवन  लक्ष्य  इनसानियत   के  अतिरिक्त    और कुछ  नहीं  हो  सकता  l   इसी  को  गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  धर्म  की  परिभाषा  के  रूप  में  स्वीकार  किया  है  ---- पर  हित   सरिस   धर्म  नहीं  भाई ,
 पर  पीड़ा  सम   नहीं  अधमाई  l '   जिसे  दूसरे  की  पीड़ा  को  देखकर  स्वयं  भी  पीड़ा  का  अनुभव  होता  है  ,  उसे  देखकर   ही  यह  कहा  जा  सकता  है  कि   इसके  भीतर  इनसानियत   है  l  यह  इनसानियत   की  भावना  ही  हमें   जानवरों  से  भिन्न  करती  है   और  हमें , हमारे  जीवन  लक्ष्य  से  परिचित  कराती  है  l  इसी  को  ध्यान  में  रखकर  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  प्रज्ञा  पुराण  में  लिखा  है --- " परोपकार रहित  मनुष्य  के  जीवन  को  धिक्कार  है  ,  उसकी  तुलना  में  तो  पशु  श्रेष्ठ  हैं  -- उसका  कम - से - कम  चमड़ा  तो  काम  आ  जायेगा  ,  परन्तु  मानवता रहित  मनुष्य  का  जीवन  तो  किसी  के  भी  उपयोग  का  नहीं  रहता  l   हमें  इनसानियत   को  ही  अपना  जीवन  लक्ष्य   मानकर  जीवन  जीना  चाहिए  l "
   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' परमात्मा  ने  मनुष्य  को  जिस  विशेष  गुण   से  नवाजा  है  उसका  नाम  है ---- संवेदना  l   भाव - संवेदना  ही  मनुष्य  की  आत्मिक  प्रगति  की  सच्ची  कसौटी  है   l   मनुष्य  यदि  संवेदना  की  विभूति  से  आभूषित  नहीं  है   तो  उसका  जीवन  मृतप्राय  ही  कहा  जा  सकता  है  l  '  इनसान   होकर  भी  जिसमे  इनसानियत   का  अभाव   है  ,  दूसरे  मनुष्यों  को  , पशु - पक्षियों  को  पीड़ित  करता  है   , वह  पैशाचिक  प्रवृति   का  मनुष्य  है  l   आचार्य जी  लिखते  हैं --- जो  लोग  दुर्जनों  की  तरह  व्यवहार  कर  रहे  हैं   एवं    प्राणीमात्र   को  संताप  देते  दिखाई  पड़ते  हैं  , उन्हें  स्वयं  से  यह  प्रश्न  पूछने  की  आवश्यकता  है  कि   उनका  आचरण  पशुओं  के  समान   है  या  सत्पुरुषों  के  समान  ! '