10 August 2022

WISDOM -----

   न्यूयार्क  के   पत्र   " नेशन "  ने  बहुत  वर्ष  पहले   महात्मा  गाँधी   के  वास्तविक  महत्त्व  को  समझ  कर  लिखा  था ------ " वर्तमान  युग  में   जब  संसार  के  लोग  वैज्ञानिक  चमत्कारों  पर  ही  विशेष   जोर  दे  रहे  हैं  ,  भारतवर्ष  का  यह  वीर   और  तपस्वी  नेता   अपने  सात्विक  गुणों   और  आत्मशक्ति  के  कारण   देश  और  विदेश  में  अत्यधिक  सम्मान  प्राप्त  कर  रहा  है  l  जिस  समय  पाश्चात्य    सभ्य  राष्ट्र   अपनी  प्रतिष्ठा  बनाए  रखने  के  लिए   युद्ध  के  अतिरिक्त   और  कोई  मार्ग  जानते  ही  नहीं   उस  समय  महात्मा  गाँधी   अपने  राष्ट्रीय  आन्दोलन  को   ' अहिंसात्मक  असहयोग  '  के  पथ  पर  चला  रहे  हैं   l  वे  कहते  हैं  कि  भारत  को  रक्तपात  से  ही  स्वराज्य   मिल  सकता  है  ,  तो  हम  दूसरों  के  बजाय   अपना  ही  रक्त  क्यों  न  बहाएं   ? "    गाँधी जी  कहते  थे   ---'हम  दूसरों  को  न   मारकर  ,  स्वयं  अपने  ही  प्राण  देकर   स्वतंत्रता  को  प्राप्त  करेंगे   l '  गाँधी जी  की  यह  घोषणा  सुनकर  ब्रिटिश  सरकार   तो  क्या  पूरा  संसार  ही  चक्कर  में  आ  गया  l   वे  वर्तमान    राजनीति  और  युद्धनीति  को  बदल  देना  चाहते  थे   l  महापुरुष  टालस्टाय  लिखते  हैं ---- " वर्तमान  काल  में   एकमात्र  गाँधी जी   ईश्वरीय  प्रतिनिधि  हैं    l  

WISDOM -----

    अनमोल  मोती  -----  रक्षाबंधन  का  पुनीत  पर्व  l  बीकानेर  नरेश  का  दरबार  लगा  हुआ  था  l  राजद्वार  पर  ब्राह्मणों  की  लम्बी  कतार  थी   l  उन्ही  ब्राह्मणों  के  मध्य  पं. मदनमोहन  मालवीय जी  भी  एक  नारियल  लिए  खड़े  थे   l  प्रत्येक  ब्राह्मण  नरेश  के  पास  जाकर  राखी  बाँधता   और  दक्षिणा    लेकर  ख़ुशी -ख़ुशी  घर  लौटता  जा  रहा  था   l  मालवीय  जी  का  नंबर  आया  तो   वे  नरेश  के  समक्ष  पहुंचे  ,  राखी  बाँधी  , नारियल  भेंट  किया   और  संस्कृत  में  स्वरचित  आशीर्वाद  दिया   l  नरेश  के  मन  में   इस  विद्वान्  ब्राह्मण  का  परिचय  जानने  की  जिज्ञासा  हुई   l  जब  उन्हें  मालूम  हुआ  कि   यह  तो  मालवीय जी  हैं   तो  वह  बहुत  प्रसन्न  हुए  और  मन  ही  मन   अपने  भाग्य  की  सराहना  करने  लगे   l   मालवीय  जी  ने  विश्वविद्यालय  की  रसीद  बही  उनके  सामने  रख दी  l  उन्होंने  भी  तत्काल  एक  सहस्त्र  मुद्रा  लिखकर  हस्ताक्षर  कर  दिए   l   नरेश  अच्छी  तरह  जानते  थे  कि  मालवीय  जी  द्वारा  संचित  किया  हुआ   सारा  द्रव्य   विश्वविद्यालय   के  निर्माण  में  ही  व्यय  होने  वाला  है   l  मालवीय जी  ने  विश्वविद्यालय  की  समूची  रुपरेखा  नरेश  के  सम्मुख  रखी   l  उस  पर  संभावित  व्यय   तथा  समाज  को  होने  वाला  लाभ  भी  बताया   तो  नरेश  मुग्ध  हो  गए   और  सोचने  लगे   इतने  बड़े  कार्य  में   एक  सहस्त्र  मुद्राओं   से  क्या   होने  वाला  है  ,  उन्होंने  पूर्व  लिखित  राशि  पर   दो  शून्य  और  बढ़ा  दिए  ,  साथ  ही  अपने  कोषाध्यक्ष  को   एक  लाख  मुद्राएँ  देने  का  आदेश  प्रदान  किया   l