24 January 2021

WISDOM ------

  जीवन  में  सफलता  के  लिए  लक्ष्य  पर  ध्यान  केन्द्रित   होना  जरुरी  है  l    महाभारत  और  रामचरितमानस   के  अनेक  प्रसंग   जो  हमें  शिक्षण  देते  हैं    कि   हमें  अपने  लक्ष्य  से  नहीं  भटकना  चाहिए  l  रामचरितमानस  में  प्रसंग  है  ---- जब  श्री हनुमानजी  सीता जी  की  खोज  में  लंका  जा  रहे  थे   तब  उनका  सामना  सुरसा  नाम  की  राक्षसी  से  हुआ   l   उन्हें  खाने  के  लिए   उस  राक्षसी  ने  अपना  मुंह  बहुत  बड़ा  कर  खोला   तो  हनुमान जी  ने  भी  अपने  रूप  को  बड़ा  कर  लिया    और  फिर   छोटे    बनकर     उसके  मुँह   में  प्रवेश  कर  बाहर  निकल  आए   l   इस   आचरण  से  उन्होंने  यह  बताया  कि   जीवन  में  किसी  से  बड़े  बनकर  जीता  नहीं  जा  सकता   l   लघुरूप  होने  का  अर्थ  है   नम्रता  ,  जो  सदैव  विजय  दिलाती  है   l   हनुमान जी  चाहते  तो  सुरसा  से  युद्ध  कर  सकते  थे  ,  उसे  पराजित  कर  सकते  थे  l   लेकिन  उन्होंने  विचार  किया  कि   मेरा  लक्ष्य  इससे  युद्ध  करना  नहीं  है      क्योंकि  ऐसा करने  से  समय  और  ऊर्जा  दोनों  नष्ट  होंगे   ,   इस समय  लक्ष्य  है  --सीता  माता  की  खोज    और  अभी  इस  पर  ध्यान  देने  की   अधिक  जरुरत  है   l   अधिकांश  लोग  अपनी  जिंदगी   में  अपने  लक्ष्य  को  भूल  जाते  हैं  और  लड़ने - भिड़ने  में  लग  जाते  हैं  l    पं.  श्री राम   शर्मा  आचार्य   जी  लिखते  हैं   ---- अपने  अहंकार  के  कारण   स्वयं  को  श्रेष्ठ  और  बड़ा  सिद्ध  करने    में  मनुष्य   अपने  लक्ष्य  से  तो  भटकता  ही  है  ,  साथ  ही  दूसरों  की  नजरों  में  भी   बड़ा  नहीं  बन  पाता  ,  क्योंकि  बड़े  वे  होते  हैं  ,  जो  लोगों  के  दिलों    जीतते  हैं  ,  लोगों  के  दिलों  पर  राज   करते हैं   l '

WISDOM -----

       धार्मिक  कर्मकांडों     और  अपने   ईश्वर  की  पूजा  की   सार्थकता     तभी  है  जब  हम  उनके  बताए   मार्ग  पर  चलें   अन्यथा  ' मुँह   में  राम  बगल  में  छुरी  '  की  उक्ति    की  सत्यता  स्पष्ट  होती  है   l    मनुष्य   जैसा  आचरण   करता  है  वैसा  ही  संदेश   प्रकृति  में  जाता  है   l   इसका  परिणाम  यह  होता  है  कि   जो  बात   परदे  के  पीछे  होती  है  ,  प्रकृति  उसे   प्रकट  कर  देती  है  l   जैसे    संसार  का  एक  विशाल  जन    समुदाय   अपने - अपने     भगवान  की  पूजा  अपने  तरीके  से  करता  है   लेकिन   सभी   धर्मग्रंथों  में    मनुष्य  के  लिए  जिन  मानवीय  मूल्यों   को  अपनाने  और  सन्मार्ग   पर चलने  की  बात  कही  गई  है  उसे  कोई  नहीं  मानता  l   लड़ाई - झगड़ा , अपराध , पापकर्म ,  संवेदनहीनता  , भ्रष्टाचार  , शोषण , अत्याचार , अन्याय   का  ही  बोलबाला  है  l   यह  सब   मनुष्य  के  नास्तिक  होने  के  लक्षण  है  ,    इस  कारण  प्रकृति  को   यह  संदेश   जाता  है   मनुष्य  को  ऐसी  नास्तिकता  ही  पसंद  है   l   प्रकृति  मनुष्य  को  उसकी  पसंद   अपने  तरीके  से  देती  है  l   संभवत:  विज्ञान   का  इतना  शक्तिशाली  हो  जाना   मनुष्य  की  संवेदनहीनता   और   आस्तिकता  के  ढोंग  का  प्रकट  रूप  है  l  विज्ञान  ने  मनुष्य  के  बनावटी  व्यवहार  को   वास्तविक  रूप  दे  दिया  l   वैज्ञानिक  अनुसंधानों  की  वजह  से  हमें  हर  प्रकार  की  भोजन  सामग्री  ,  चिकित्सा सामग्री ,  मांस  आदि  सब  कुछ  सिंथेटिक,     प्रयोगशाला   निर्मित   उपलब्ध  है   l   विज्ञानं  ने  काम  करने  के  लिए  नौकर  भी  कृत्रिम  दिए  हैं   l   यदि  असुरता  को  मिटाना  है   तो  मनुष्य  को  अपने  आचरण  से   अपने  आस्तिक  होने  का  संदेश   प्रकृति  को  देना  होगा   l